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देश के विपक्षी नेताओं को अवैध घुसपैठियों से सहानुभूति क्यों है?

अवैधानिक तरीके से घुसपैठ कर भारत में निवास कर रहे रोहिंग्या मुसलमानों को जम्मू कश्मीर से भगाकर भारत से बाहर कर देने का भारत सरकार का फैसला सामयिक और सराहनीय है। इन रोहिंग्याओं को एक साजिश के तहत देश भर में करोड़ों की संख्या में योजना पूर्वक बसाया गया है। ये जहाँ-जहाँ बसाये गये हैं, उन सभी स्थानों पर तस्करी सहित अनेकानेक गैर कानूनी-और गम्भीर अपराधों की संख्या में वृद्धि हुयी है।
इसके साथ ही स्थानीय शांति व्यवस्था को भी खतरा पहुँचा है। अन्य स्थानीय रहवासी इन्हें खतरे की घण्टी मानने लगे हैं। जम्मू-कश्मीर में योजना पूर्वक बसाया जाकर इन्हें आधार कार्ड और राशन कार्ड तक उपलब्ध कराये जा चुके हैं। सरकार ऐसे तत्वों की पहचान कर साजिश कर्ताओं के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करे। इस साजिश में स्थानीय लोग भी मदद कर्ताओं के रूप में शामिल हैं।

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सुरक्षा की दृष्टि से यह मामला अत्यन्त गम्भीर किस्म का है। समय रहते इस पर कार्यवाही होना ही चाहिये। लम्बे समय से देशभर में रोहिंग्याओं को बसाने की साजिश चल रही थी। इन घुसपैठियों को राशन कार्ड और आधार कार्ड मिलना तो और भी गम्भीर कृत्य है। एफ.आई.आर. दर्ज कर कड़ी कार्यवाही तो होना ही चाहिये उत्तरप्रदेश में भी इन अवैध घुसपैठियों को बसाने की साजिशों की पर्तें खुलने लगी हैं।
रोहिंग्याओं और बंगलादेशियों के अवैध रूप से भारत में प्रवेश कराकर बसाने की साजिश के तार पुलिस को मिले हैं जिसके आधार पर ए.टी.एस. ने अपनी जांच का दायरा बढ़ा दिया है। कुछ दिनों पहले पकड़े गये रोहिंग्या और बंगलादेशियों से पूछताछ के दौरान इस साजिशी घुसपैठ के मामले में एक सिंडीकेट के सूत्र हाथ लगे हैं। ऐसी कार्यवाही एवं सतर्कता समय की माँग है।
अवैध घुसपैठ और रोहिंग्या तथा उनके बसाने की साजिश एक बड़ी समस्या बन चुकी है। अतः यह सुनिश्चित किया जाना अत्यन्त आवश्यक हो गया है कि ऐसे तत्वों को जो वैध- अवैध तरीके से देश में आ गये वे आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज कैसे प्राप्त कर सके अब तक बंगलादेश से आये ऐसे अनेक  लोग पकड़े जा चुके हैं। कतिपय ऐसे भी हैं, जिनके पास पासपोर्ट भी है।
प्रश्न यही है कि ऐसे तत्वों को यह सुलभ कैसे हो गया? यह तो स्पष्ट है कि यह एक योजना बद्ध गहरी साजिश है, जिसके तहत हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर ये घुसपैठिये जम्मू-कश्मीर तक पहुँच गये। इतना ही नहीं इन्हें मुस्लिम बस्तियों और सीमा के पास सहजता से बसा भी दिया गया। यह तो और भी आश्चर्य जनक है कि कई लोग जिनमें कई बड़े नेता भी शामिल हैं, इनकी तरफदारी करने सामने आ गये हैं।
इससे तो साजिश की बात स्वयं स्पष्ट हो रही है कुछ ऐसी ही साजिशों में विदेशी मीडिया का एक हिस्सा भी शामिल है ऐसा प्रतीत हो रहा है। ये नेता मानवीयता का आधार ढूँढ रहे हैं। क्या इसका तात्पर्य यह निकाला जाय कि भारत तक धर्मशाला है जिसमें षड़यंत्र कारियों और देश के दुश्मनों को खुली छूट मिलती रहे। भारत पहले ही बाँग्लादेश से अवैध रूप से घुस आये लाखों लोगों का बोझ ढो रहा है। एक सीमा तक उदारता बरती जा सकती है लेकिन इसके साथ भारत के संसाधनों पर भी तो बोझ बढ़ता है जिसकी कीमत आखिर कार देश की जनता को ही चुकाना होती है।
अतः सरकार का यह कदम सराहनीय है और समय रहते देश भर में अवैध रूप से बसे रोहिंग्याओं की पहचान की उन्हें वापिस जाने के लिये मजबूर किया जावे। यह सही समय है जब उनकी पहचान तथा षड़यंत्र की गहराई तक जाकर उन कारणों की भी खोज की जाय जिनके सहारे पूर्वोत्तर राज्यों में बसाये गये रोहिंग्याओं को न केवल बाहर का रास्ता दिखाया जाय ताकि ऐसे तत्व दुबारा भारत में प्रवेश न कर सकें- ऐसे सभी ठोस प्रयास भी कर लिये जायें।
विगत अनेक वर्षों से यह अवैध घुसपैठ जारी है। पिछली सरकारों द्वारा देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा आवश्यक कार्यवाही किये जाने के निर्देश दिये जाने के बावजूद अनदेखी की गयी। यद्यपि यह बात भी सुस्पष्ट तरीके से अब तक सामने आ चुकी है कि इस अवैध घुसपैठ में मदद करने वाली ताकतों और अनेक जिहादी तत्वों एवं संगठनों की सक्रियता को देखा और समझा जाता तो रहा है।
इसके बावजूद इनके आपराधिक कृत्यों पर या तो पर्दा डाला जाता रहा है या वोट बैंक मानकर अनदेखी की गयी। आश्चर्य तो इस बात का है कि इन्हें देश का शत्रु और देशद्रोही नहीं माना गया जबकि इनको देश के बाहर किया जाना अत्यन्त आवश्यक हो गया था। आज भी जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला अपनी सहानुभूति व्यक्त करते नजर आ रहे हैं।

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इन घुसपैठियों को जम्मू-कश्मीर में बसाने के कतिपय गैर सरकारी संगठनों (छण्ळण्व्ण्) को माध्यम बनाया गया था, जिसे नेशनल काँफ्रेंस और महबूबा मुफ्ती का पार्टी पीडीपी के नेताओं का संरक्षण मिलता रहा है। यही कारण है कि स्थानीय प्रशासन के संरक्षण और सहयोग से आधार कार्ड और राशन कार्ड आदि सुविधायें इन्हें उपलब्ध हो सकी।
सन् 2000 से अब तक लगभग 30,000 से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमानों को जम्मू के विभिन्न क्षेत्रों में योजना पूर्वक बसाया गया, जबकि कश्मीर में इन घुसपैठियों की संख्या बहुत ही कम है। इस सबके पीछे इनकी जिहादी सोच है। ये देश की सुरक्षा की दृष्टि से तो खतरनाक हैं ही – ये देश की अर्थव्यवस्था पर भी भारी बोझ हैं। इनमें से अधिकतर कानून-व्यवस्था को चुनौती देने में सक्रिय हैं।
यही हाल बंगाल में है, जहां ममता बनर्जी जैसी प्रान्त की मुखिया वोटों की लालच में और अपनी सत्ता की भूख मिटाने की कोशिश में इन्हें भारत का पक्का नागरिक मानने से भी परहेज नहीं कर रहीं। सेकुलर नेताओं द्वारा तरह-तरह की दलीलें इनके पक्ष में दी जाती हैं। दिल्ली के एक बड़े वकील प्रशान्त भूषण ने इनके पक्ष मेंसर्वोच्च न्यायालय में अभी हाल में सरकार के खिलाफ गुहार लगायी है।
अवैध घुसपैठिया और शरणार्थी में अंतर होता है। रोहिंग्या या बंगलादेशी घुसपैठिये कट्टर इस्लामी सोच को लेकर भारत आते हैं। उससे देश की सुरक्षा को खतरा पैदा होता है। इसी कट्टर सोच और जनसंख्या का गणित बताकर पूर्व में पाकिस्तान का निर्माण कराया गया था। सन् 1946 में डायरेक्ट एक्शन प्लान के अंतर्गत भीषण हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया गया था जिसमें देश के 25000 से भी ज्यादा निर्दोष व्यक्तियों की हत्यायें हुयीं थीं,

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लाखों महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था। अंततः देश का विभाजन भी हुआ, जिसमें करोड़ों लोगों का सदी की भारी त्रासदी झेलने को मजबूर होना पड़ा था। पश्चिम बंगाल और दिल्ली के ही जिन क्षेत्रों में ये रोहिंग्या और बंगलादेशी निवास कर रहे हैं, वहां अपराध तो बढ़े ही हैं, वहां अनेक प्रकार के आतंकी संगठन भी खड़े हो गये हैं। इस कारण स्थानीय लोगों को न केवल खतरनाक स्थितियों से गुजरना पड़ रहा है,
वरन् देश की सुरक्षा को भी बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है। इस तथ्य से भी आँखें मूंद कर नहीं रखी जा सकती कि इन अवैध घुसपैठियों के कारण दंगे, चोरी, डकैती जैसे विभिन्न जघन्य अपराध, बम विस्फोट जैसे कृत्यों में भारी वृद्धि हुयी है। इसके साथ ही साथ जमात-उल-मुजाहिदीन, हूजी, इण्डियन मुजाहिदीन मुस्लिम यूनाईटेड फ्रंट ऑफ़ असम, इस्लामी लिबरेशन आर्मी ऑफ़ असम, मुस्लिम सेक्यूरिटी फोर्स, हजरत-उल-मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों को पनपने का अवसर मिला हुआ है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि विपक्षी राजनीतिक दलों को देश के नागरिकों की सुरक्षा की चिन्ता नहीं है, जो इनके रहते खतरे के निशान को पार चुकी है। इन तथा कथित अपने आपको जनता का रहनुमा और सेकुलर कहे जाने वाले नेताओं को अवैध घुसपैठियों के प्रति ज्यादा प्रेम उमड़ रहा है- क्यों? वे हमेशा इन घुसपैठियों के पक्ष में तरह-तरह की दलीलें देते नजर आते हैं। खुफिया सुत्रों का यह भी मानना है।
कि ऐसे तमाम तत्वों के सूत्र जे.एस.बी. नाम आतंकवादी संगठनों, लश्करे तौयब एवं आई.एस.आई. से भी हैं इन तत्वों के द्वारा बंगलादेश में रह रहे हिन्दू भारी संख्या में प्रताड़ित हो रहे हैं। प्रतिदिन औसतन 700 हिन्दू बंगला देश छोड़ने मजबूर हैं। बतलाया जाता है कि 1964 से 2013 तक लगभग एक करोड़ तेरह लाख हिन्दु हिंसा और अत्याचारों के चलते बंगलादेश छोड़ने मजबूर हुये हैं। यह दावा ढाका विश्वविद्यालय के एक प्रख्यात प्रोफेसर द्वारा किया गया है।
वरिष्ठ लेखक:- डॉ. किशन कछवाहा
संपर्क सूत्र:- 94247 44170