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धूम्रपान याने मौत-खतरों को देखते हुये प्रतिबंधित किया जाना अत्यावश्यक

भारत में सेकेन्डहेंड स्मोकिंग (अप्रत्य धूम्रपान) पर हुये अध्ययनों से पता चला है कि कितनी भी कम मात्रा में हो, उसका स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है। यह चैंका देने वाली और हैरान कर देने वाली खबर है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मत है कि देश में 29 फीसदी वयस्क (26.7करोड़) तम्बाकू का सेवन करते हैं। इसमें खैनी गुटखा, तंबाकू, जर्दा, बीड़ी, सिगरेट व हुक्का शामिल है।

भारत में अप्रत्यक्ष धूम्रपान के आर्थिक बोझ को लेकर हुये पहले वैज्ञानिक अध्ययन के माध्यम से यह नुकसानदायक तथ्य की सच्चाई सामने आ सकी है। ‘जर्नल ऑफ निकोटिन एंड टोबैको रिसर्च’ में प्रकाशित इस अध्ययन-शोध के अनुसार 15 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को अप्रत्यक्ष धूम्रपान के जरिये जो बीमारियाँ ज्यादातर प्रभावित करती हैं, उनसे देश को प्रतिवर्ष लगभग 567 अरब रूपयों की राशि व्यय करना पड़ती है। इससे प्रभावित होने वाली महिलाओं का औसत पुरूषों के मुकाबले दुगुुना है।

विशेषज्ञों के अनुसार सेकेन्ड हैंड धूम्रपान की कोई सुरक्षित सीमा नहीं है। अर्थात् कम मात्रा होने पर भी नुकसान निश्चित है। सख्त कानून के जरिये ही इस पर प्रतिबंध लगाकर लाखों-करोड़ों बर्बाद होने जा रहीं जिन्दगियों को बचाया जा सकता है साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने बोझ को कम किया जा सकता है। सीधा और सरल उपाय यही है कि सार्वजनिक स्थानों को धूम्रपान से सख्ती के साथ मुक्त रखा जाये।

‘जर्नल ऑफ निकोटिन एंड औबैको रिसर्च’ में प्रकाशित एक शोध का निष्कर्ष यह है कि सरकार को तम्बाकू उत्पादों की बिक्री से टेक्स के रूप में जो राशि मिलती है, वह है वार्षिक 538 अरब रूपये और अप्रत्यक्ष धूम्रपान अर्थात् सेकेन्डहैंड स्मोकिंग से देश पर 567 अरब रूपये की राशि व्यय करना पड़ती है। इसका सीधा साधा अर्थ यह है कि तम्बाकू उत्पादन न सिर्फ लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहा है वरन् देश और व्यक्ति को कंगाली की तरफ ले जा रहा है। इस पहले वैज्ञानिक अध्ययन और शोध से यह सच्चाई भी उजागर हो सकी है कि धूम्रपान नहीं करने वाले वयस्क पर भी 705 रूपये प्रतिवर्ष अनावश्यक बोझ पड़ रहा है। यह राशि उस व्यय की कुल आठ प्रतिशत है, जो सरकार द्वारा स्वास्थ्य पर खर्च की जाती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का यह स्पष्ट मत है कि अप्रत्यक्ष धूम्रपान कितनी भी कम मात्रा में हो, उसका स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता ही है।

इस शोध से यह भी पता चलता है कि धूम्रपान से लगभग 10 लाख लोगों की जानें जातीं हैं। WHO और यू.एस. की एफ.डी.ए. का एक आंकलन बताता है कि एक करोड़ से भी अधिक धूम्रपान करने वाले व्यक्ति निम्न और मध्यम आय वाले देशों में निवास करते हैं। इस प्रकार धूम्रपान एक महामारी से भी भयंकर खतरनाक है, जिसके कारण अनजाने में लाखों  लोग मौत के मुँह में समा रहे हैं।

शोध के अनुसार आठ लाख लोगों की मृत्यु सीधे तम्बाकू सेवन करने से होती है। करीब डेढ़ लाख से अधिक ऐसे भी हैं, जो धूम्रपान तो नहीं करते लेकिन अप्रत्यक्ष धूम्रपान के कारण नुकसान उठाते हैं। अमेरिकिन जोरनल ऑफ प्रिवेंटिव मेडिसिन के अनुसार आदतन सिगरेट पीने वालों का प्रतिशत 30 से 40 के बीच है। इन्हें धूम्रपान न करने वालों की तुलना में टाईप-2 डायबिटीज होने की संभावना बनी रहती है।

अभी हाल में डाॅ. स्मिलजनिक स्तशा द्वारा एक लेख प्रकाशित हुआ था, जिसमें संकेत दिये थे, कि पहला यह प्रत्येक वर्ष के दौरान सात लाख लोग धूम्रपान के कारणों से मृत्यु के ग्रास बन जाते हैं, जबकि साढ़े पाँच लाख अमेरिकन युवक भी ऐसी खतरनाक स्थिति से गुजरने को मजबूर हो जाते हैं। इसी प्रकार विश्वभर में सेकेन्डहैंड स्मोकिंग के कारण एक लाख से अधिक मौतें होती हैं।

धूम्रपान दुनिया का सबसे खतरनाक शौक है। इस खतरे को पहचान कर दस में से सात इस  शौक से मुक्त पाना चाहते भी हैं। यदि 155 हस्ताक्षकर्ता देश धूम्रपान निषेध, इससे संबंधित विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाकर, चेतावनियाँ जारी कर कड़े उपायों को सख्ती के साथ काम में लायें तो इस भयानक मौतों को लाने वाली महामारी से लोगों को असमय मरने से बचाया जा सकता है।

भारतीय परिदृश्य –

भारत कम आय समूह के देशों से बाहर निकलकर प्रगतिशील देशों की श्रेणी में आ खड़ा हुआ है, यहां भी 138 करोड़ की आबादी में 120 लाख से अधिक धूम्रपान करने वालों की संख्या अनुमानित है। यहां अनेक प्रजातियों की धूम्रपान की वस्तुयें जैसे मरिजुआना, चरस, हशीश, गाँजा और भाँग आदि। इनका सेवन करने वालों के अलग-अलग प्रकार के विचित्र अनुभव सुनने को मिलते हैं। लेकिन ये  शौकिया नशा पैदा करने वाली वस्तुयें अन्ततः नुकसान दायक ही सिद्ध हुयीं है।

अन्ततः यही निष्कर्ष उपयोगी है कि तम्बाकू जैसी वस्तुओं के उत्पादन को ही कड़ाई के साथ प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिये। उनहित एवं मानवता की भलाई देखते हुये यही बेहतर होगा। इन पर कन्ट्रोल नहीं, उत्पादन और उपयोग को ही कड़ाई के साथ प्रतिबंधित किया जाकर जुर्माना लगाया जाना चाहिये। अनेक देशों की सरकारों ने सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान को प्रतिबंधित करने के कानून तो बना दिये हैं, लेकिन अभी उस पर कड़ाई से अमल किया जाना शेष हैं। समाजसेवी संस्थाओं की ओर से ऐसी माँग भी उठायी जानी चाहिये।

बढ़ती मच्छरों की संख्या –

मच्छरों से निजात पाने के लिय लगभग हर घर से क्वाईल आदि विविध प्रकार के मच्छर मारने या भगाने के नाम पर साधन उपलब्ध हैं, जिन्हें घर लाकर प्रतिदिन हर व्यक्ति द्वारा भारी मात्रा में प्रतिदिन उपयोग में लाया जाता है। यह धूम्रपान से उत्पन्न होने वाले धुयें और सेकेन्डहैंड स्मोकिंग से भी ज्यादा खतरनाक है। इसका कारण म्युनिसिपैलिटियों द्वारा नाले-नालियों की नियमित सफाई की ओर ध्यान न दिया जाना ही मुख्य कारण है। इतनी तेज गर्मी से शुरूआत होने वाले इस साल में भी मच्छरों की भारी संख्या के कारण लोगों को इन मच्छरमारक दवाओं या साधनों का उपयोग करने मजबूर होना पड़ रहा है। इस ओर भी विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। व्यापारियों द्वारा भी इन ‘‘मास्किटो-क्वाइल’’ टाईप संसाधनों का रिकार्ड तोड़ बिक्री और माँग का दावा किया जा रहा है।

लेखक – डाॅ. किशन कछवाहा
सम्पर्क सुत्र – 9424744170