ध्वनि – प्रदूषण: खतरनाक परिणाम – डाॅ. किशन कछवाहा
शोर-शराबे कोलाहल के दायरे के लगातार बढ़ते जाने से यह अब रोजमर्रे की जिन्दगी का हिस्सा बनता चला जा रहा है, जबकि पहले यह शादी-विवाह या विशेष त्यौहारों तक सीमित था। नगरों-महानगरों की वर्तमान जीवन शैली में अत्यधिक वाहनों के उपयोग, जीवन जीने के तरीकों में आ रहे बदलावों, देर रात क्लबों, रेस्ट्रां या मनोरंजन के उद्देश्य से बने स्थानों, मनोरंजनों के उपयोग में आने वाले विविध यंत्रों के उपयोग, तेज ध्वनियों पर नाचना-गाना, यातायात, रेल्वे स्टेशनों का शोर हवाई अड्डों, औद्योगिक ईकाईयों, इंजनों, सड़क निर्माण में उपयोग आने वाली मशीनों से उत्पन्न कर्कश-ध्वनि, तेज ध्वनि उत्पन्न करने वाले फटाकों का उपयोग, लाऊड स्पीकर, ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करने वाले अन्यान्य वाहक तत्वों द्वारा ध्वनियाँ मनुष्य एवं जीवों में अनेक प्रकार की विकृतियाँ उत्पन्न कर रहीं हैं, जिसे लोग जाने-अनजाने या मजबूरी वश झेल रहे हैं।
वैज्ञानिकों, मनोविज्ञान विशेषज्ञों तथा ध्वनि से संबंधित विशेषज्ञ चिकित्सकों का मानना है कि यदि मनुष्य के कानों में इस प्रकार की ध्वनियों का स्तर 90 डेसिबल से अधिक दस मिनिटों तक असर करता है, तो वह श्रवण शक्ति को अत्यधिक हानिकारक सिद्ध हो सकता है। जबकि बड़े- बड़े शहरों में सड़क यातायात के दौरान इस ध्वनि को 70 से 110, हवाई अड्डों पर वायुयानों के लोडिंग के समय ध्वनि की मात्रा 108 तक होती है। आश्चर्य तो इस बात का है चिकित्सा संस्थानों, अस्पतालों में जहाँ मरीज को अव्यधिक शांति की आवश्यकता होती है, वहाँ भी उसका स्तर 60 सं 70 तक पाया जाता है।
आम तौर पर जब प्रदूषण विषय पर चर्चा होती है, तब वायु और जल संबंधी प्रदूषण को लेकर लम्बी चर्चायें छिड़ जाती हैं, लेकिन ध्वनि प्रदूषण और रेडियेशन के मामले को नजर अन्दाज कर दिया जाता है, इससे होने वाली क्षति पर कम ही चर्चा होती है। जबकि यह विषय भी उतना ही भयावह बन चुका है। इससे न केवल मानव वरन् अन्यान्य जीव जन्तु भी सर्वाधिक प्रभावित होते देखे जा रहे हैं। सामान्य आयु के एक और 60 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ जन इससे गंभीर रूप से प्रभावित होकर सुनने की शक्ति को खोते चले जा रहे हैं। वरिष्ठ जन तो इसे केवल अधिक आयु का होना मानकर ही चलते हें, लेकिन विशेषज्ञ इसे विशेष खतरा मानकर चेताते चले आ रहे हैं।
दिल्ली के प्रख्यात ई.एन.टी. विशेषज्ञ डाॅ. राजीव का मत है कि उच्चस्तरीय ध्वनि-तरंगें मनुष्य की श्रवण शक्ति को तो बुरी तरह प्रभावित करती ही हैं। कभी-कभी कान के भीतरी हिस्से पर भी गंभीर किस्म की क्षति पहुँचा देती हैं और व्यक्ति की श्रवण क्षमता शक्ति हमेशा के लिये समाप्त हो जाती है। इस किस्म की क्षति से बच्चे और गर्भधारण करने वाली महिलायें भी प्रभावित हो रही हैं। अभी हाल ही में हुये शोध से पता चला है कि इस प्रकार की तेज ध्वनि से (90 डेसिबल से अधिक) स्मरण शक्ति पर भी बुरा प्रभाव अनुभव में आया है।
ऐसी हानिकारक ध्वनियों के परिणाम स्वरूप मानव क्रमशः अन्यान्य प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से भी घिरता चला जाता है। देखने में आता है कि बहुतायत से औद्योगिक संस्थानों में भी तेज ध्वनियाँ उत्पन्न करने वाली मशीनों के कारण लगातार काम करते रहने के दौरान, या सम्पर्क में रहने से वे कर्मचारी अधिकारी एवं अन्य जन अनेकानेक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में उलझते चले जाते हैं, जिनको इस कारण से बचने की कोई हिदायत भी नहीं रहती।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी स्वीकार किया है कि 75 डेसीबल से अधिक तेज ध्वनि गंभीर किस्म की स्वास्थ्य संबंधी समस्यायें पैदा करती हैं। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (ब्च्ब्.13) ने इस तथ्य को स्वीकार करते हुये यह रहस्योद्घाटन किया है कि अनेक औद्योगिक व्यापारिक संस्थानों में यह ध्वनि प्रदूषण स्वीकृत मानकों से अधिक हैं। यद्यपि पर्यावरण मंत्रालय ने सुरक्षा की दृष्टि से कदम उठाते हुये प्रदूषण के मामले में नये मानक लागू कर अच्छी शुरूआत कर दी है।
वर्तमान समय में भवनों या सड़क निर्माण आदि से संबंधित कार्य रात्रि में भी होने लगे हैं, ताकि यातायात प्रभावित न हो सके और होने वाली भीड़ के कारण व्यवधान भी उपस्थित न हो सके लेकिन खुदाई, पत्थर काटने, रोड़ी-बजरी आदि मिलाने आदि के काम में आने वाली मशीनों से इतनी तेज और कर्कश आवाजें निकलती हैं, जिसके कारण आसपास निवास करने वाले व्यक्तियों की नींद में खलल तो पड़ता ही है। लोग अक्सर इस तथ्य से अवगत ही नहीं हैं या इसे नजर अंदाज कर देते हैं कि जहरीले धुयें से फैलने वाले प्रदूषण की तुलना में ध्वनि प्रदूषण कम खतरनाक है।
नवीन शोध एवं अध्ययनों के अनुसार प्रदूषण और बहरापन आपस में जुड़े हुये विषय हैं दोनों मामलों से बुरी तरह प्रभावित 50 बड़े शहरों की सूची गतवर्ष जारी हुयी थी। उस सूची के अनुसार सबसे अधिक कोलाहल उत्पन्न होने वाले शहरी क्षेत्रों में गुआँग झाऊ, दिल्ली, काहिरा और इस्ताँबूल शीर्ष पर थे। इन शहरों के निवासियों की श्रवण क्षमता सबसे कम बतलायी गयी थी।
जर्मन कम्पनी मिमी हियरिंग टेक्नोलाॅजी ने फोन के माध्यम से दो लाख लोगों के सुनने की क्षमता की जाँच के बाद उक्त संबंधित सूची जारी की थी। सूची में ध्वनि प्रदूषण से कम प्रभावित शहरों में ज्यूरिख, वियना, औस्लो और म्यूनिख शामिल किये गये थे। इन शहरों में बहरापन का स्तर सबसे कम पाया गया था। स्टाक होम, सियोल, एक्सटर्डन और स्टरगार्ड ऐसे शहरों में शामिल थे, जहाँ शोरगुल कम पाया गया था। जबकि शंघाई, हाँगकाँग और वर्सिलोना तेज शोरगुल वाले शहर थे। यूरोप की घनी आबादी वाले शहरों में शामिल पेरिस तीसरा सबसे अधिक शोरगुल वाला शहर था।
शोध में आयु के हिसाब से सुनने की क्षमता के आधार पर परिणाम भी तय किये गये। बहरेपन के मामलों में औसतन शांत शहरों की तुलना में भारी कोलाहल वाले शहरों के लोग औसतन दस साल से अधिक उम्र के पाये गये।
डब्ल्यू.एच.ओ. ने सन् 2017 में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में ही स्वीकार किया था कि विश्व के लगभग पाँच प्रतिशत से अधिक लोगों की ध्वनि प्रदूषण के कारण सुनने की कम होती समस्या से जूझना पड़ रहा है। इनकी अनुमानित संख्या उस समय 1.1 बिलियन बतलायी गयी थी। ये 12 से 35 वर्ष आयु वर्ग के हैं। इनकी सुनने की क्षमता पर शहरी शोर का नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। लगातार मोबाईल पर बातचीत करने के कारण यह श्रवण-क्षमता संबंधी क्षमता प्रश्न चिह्न बनती चली जा रही है। ऐसा विशेषज्ञों का मानना है। आडियो मेटिक टेस्ट भी इसे वायरल इन्फेक्शन भी बता रहे हैं, जिसकी बजट से अनेकों व्यक्तियों की सुनने की क्षमता तीस प्रतिशत तक शेष रह गयी है।
अध्ययनों के माध्यम से इस तथ्य का भी खुलासा हुआ है, कि बड़े-बड़े शहरों में निरन्तर बढ़ता जा रहा शोर-कोलाहल इसी तरह के इन्फेक्शन का कारण बन रहा है। इसके लिये सिर्फ वाहनों और कारखानों एवं संयत्रों से उत्पन्न शोर ही शामिल नहीं है, वरन् ध्वनि विस्तारक यंत्र और हेडफोन का शोर भी शामिल है।
ध्वनि विशेषज्ञों द्वारा किये गये अनुसंधान रिपोर्टों से यह तथ्य भी सामने आया है कि उच्चस्तरीय शोर (नवरात्रि के अवसरों पर होने वाले गरबा एवं युवा संगीत कार्यक्रमों के दौरान भी उसकी बढ़ती अत्यधिक सीमा, दीपावली जैसे अन्य अवसरों पर फटाकों के अधिक उपयोग के समय उपस्थित रहने वाले व्यक्ति भी आगामी 30-40 वर्ष के दौरान सुनने की क्षमता में कमी महसूस करने लग सकते हैं।
इन रिपोर्टो में यह तथ्य भी उजागर हुआ है कि ऐसे युवा टिनोटिस नाम की समस्या से ग्रसित हैं। यह पहला और आरंभिक लक्षण है, जिसे बहरेपन की संभावना के रूप में खतरनाक माना गया है। इसके अलावा कान की सेहत के लिये नाईटक्लब उसमें होने वाले डिस्को और राक कंसर्ट जैसे तेज ध्वनि उत्पन्न करने वाले स्थानों पर अधिक समय तक रहने से बचने की भी जरूरत है।
लेखक:- डॉ. किशन कछवाहा
सम्पर्क सुत्र:- 9424744170