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नारी शक्ति वंदन अधिनियम और भारतीय दर्शन

प्राचीन भारत की वैज्ञानिक सामाजिक और आध्यात्मिक व्यवस्था का मूल आधार मनुस्मृति को माना गया किंतु स्वाधीन भारत के पूर्व अंग्रेजों ने जॉन वुड्रोफ (जिनका छद्म नाम ऑथर एवलाॅन था) के माध्यम से भारत के लगभग 20 संस्कृत ग्रंथों का अनुवाद कराया गया जिसमें मनु स्मृति भी एक थी इन ग्रंथों के अनुवाद के पीछे का मूल उद्देश्य भारतीय सांस्कृतिक शैक्षणिक विरासत की मुख्य श्रृंखला “सामाजिक एकता” को खंड-खंड करना था । इसके माध्यम से वह अपने “फूट डालो शासन करो” की नीति को भारतीय समाज में प्रतिपादित करने में सफल रहे।

परिणाम स्वरुप धीरे-धीरे हिंदू समाज विघटित होता गया और समाज की सर्वश्रेष्ठ शिल्पी स्त्री का शोषण कर उसे वेद पुराण के अध्ययन से वंचित कर दिया गया । उन्हें ज्ञात था यदि समाज में स्त्रियों का स्थान नगण्य कर दिया तो भारतीय समाज आपने अस्तित्व को खो देगा । यह मूल तथ्य भारतीय जन मानस विस्मृत कर गया। क्योंकि प्राचीन काल के धर्म ग्रंथों में लगभग 23 विदुषियों के नामश: प्रमाण मिलते हैं जिनकी बुद्धि विवेक ज्ञान कौशल और दूरदर्शिता ने भारतीय संस्कृति, चिंतन ज्ञान-विज्ञान का युगानुकूल सर्वोत्तम संरक्षण किया और समाज ने इसे सहर्ष स्वीकार कर मान्य किया ।

आज स्वाधीनता के 75 वर्षों पश्चात भारतीय मातृशक्तियों को शोषण, कुंठा और दमनकारी विचारों के ऊपर उठा कर नारी, शक्ति, वंदन विधायक के माध्यम से राष्ट्र के विकास की मुख्य धारा में उन्हें जोड़ा गया है ।
आज हम गर्व से कह सकते हैं, कि मनु स्मृति में वास्तव में नारी शक्ति के लिए जो भी कहा गया वह आज विश्व पटल पर सत्यापित हो रहा है ।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता…

तात्पर्य- जहाँ स्त्रियों की पूजा की जाती है वहाँ देवताओं का निवास होता हैं और वहांँ दिव्या गुणों से सम्पन्न उत्तम संतति जन्म लेती है, किंतु जहाँ पर नारी का अपमान किया जाता है, उससे कलह की जाती है, वहांँ सभी कार्य जैसे -पूजा पाठ सभी फल से विहीन हो जाते हैं निरर्थक हो जाते हैं ।
क्यों ?
क्योंकि मनुस्मृति कहती है

नारी अस्य समाजस्य कुशलवास्तुकारा अस्ति।।

नारी समाज की कुशल शिल्पकार है। कल्याण की कामना नारी सम्मान पर ही निर्भर है । जहाँ स्त्रियों को कष्ट होता है वहाँ कुल, वंश सभ्यता का नाश होता है ।
…..इसीलिए भारत में विदेशी आक्रांताओं द्वारा नारी को छला गया, शोषित किया गया । परिणाम भारत आपने उत्कृष्ट वैशिष्ट्य को विस्मृत कर गया ।

आज नारी के सम्मान के साथ भारत का नए रूप में अभ्युदय हो रहा है ।

यह बिल लगभग 27 वर्षों से आधार में लटका था ।
1996 में प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा जी ने इस बिल को रखा था ।
1998 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी ने सदन में इस बिल को रखा था ।
1999 में भी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई सरकार ने पुनः यह बिल को पारित करने का प्रयास किया
2002 2003 में भी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने यह बिल सदन में रखा ।
2008 में यूपीए सरकार द्वारा यह बिल सदन में रखा गया ।
2010 में भी यूपी सरकार द्वारा यह बिल राज्यसभा में प्रस्तुत किया गया ।
किंतु
2023 में माननीय नरेन्द्र मोदी जी के द्वारा यह बिल नवीन संसद भवन में दूसरे दिन पारित किया गया और 454 मत प्राप्त करके सर्वसम्मति से इस बिल्कुल पारित कर दिया गया। नये संसाद भवन में नारी को अग्रणी मानकर उसकी सर्वश्रेष्ठ भूमिका को स्वीकार कर उसे स्वर्णिम उपहार दिया है ।

जब राष्ट्र की सत्ता सशक्त हाथों में विश्व बंधुत्व के भाव को लेकर जन कल्याण के उद्देश्य की पूर्ति हेतु संभाली जाती है । तब ऐसे उत्कृष्ट कार्य संपन्न होते हैं ।

निश्चित ही संपूर्ण विश्व शीघ्र ही इसका अनुकरण करेगा ।

 


लेखिका –
डॉ नुपूर निखिल देशकर