Trending Now

पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए भी प्रेरणा स्रोत हैं पं. दीनदयाल उपाध्याय

भारत की राजनीति आज जिस मुकाम पर है उसे बनाने के पीछे कई महान लोगों का योगदान रहा है और इन्हीं महान लोगों में से दीनदयाल उपाध्याय भी थे। उन्होंने हमारे देश को एक मजबूत राजनीतिक पार्टी देने का कार्य किया है। उन्होंने पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े हुए लोगों के लिए भी एक प्रेरणा स्त्रोत के तौर पर कार्य करते हुए एक निडर एवं निर्भीक पत्रकारिता की मिसाल को कायम रखा। 1940 के दशक में उन्होंने लखनऊ से प्रकाशित होने वाले राष्ट्रधर्म नामक अखबार के लिए काफी लेख लिखे। उन्होंने साप्ताहिक पांचजन्य और दैनिक स्वदेश नामक दो अखबार भी शुरू किए थे। इसके अलावा इन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य पर एक नाटक भी लिखा था और शंकराचार्य के जीवन पर एक किताब लिखी। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. के.बी. हेडगेवार की जीवनी का मराठी से हिन्दी में अनुवाद किया। सम्राट चन्द्रगुप्त, अखंड भारत क्यों है, राष्ट्र जीवन की समस्याएँ, राष्ट्र चिन्तन आदि लिखे।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक महान विचारक और एक राजनेता थे और भारतीय जनसंघ पार्टी को बनाने में इनका अहम योगदान रहा। इन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में ही राजनीति में आने का निर्णय ले लिया था और बेहद ही कम समय में इन्होंने कई उपलब्धियाँ हासिल कर ली थी।

25 सितम्बर 1916 को उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले के नगला चन्द्रभान गांव में पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म हुआ। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय तथा माता का नाम रामप्यारी था। उनके पिता रेलवे में एक सहायक स्टेशन मास्टर थे और उनकी माता गृहिणी थी। मात्र 3 वर्ष की आयु में उनके पिता का निधन हो गया था। जब वह 7 वर्ष के थे उनकी माता का भी देहान्त हो गया।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय 18 वर्ष के थे तो उस समय इनके छोटे भाई का भी निधन हो गया था। इसके बाद से ये एक दम अकेले हो गए थे। जिस वक्त इनके भाई का निधन हुआ था उस वक्त ये नौंवी कक्षा में पढ़ते थे। पंडित दीनदयाल ने हाई स्कूल की शिक्षा राजस्थान के सीकर जिले में प्राप्त की।

वे मेधावी छात्र थे, जिसके कारण सीकर के तत्कालीन राजा ने उनको एक स्वर्ण पदक, पुस्तकों के लिए 250 रू. और 10 रू. की मासिक छात्रवृत्ति पुरस्कार में दी थी। उन्होंने अपनी इंटर की परीक्षा पिलानी से उत्तीर्ण की, जहां उन्होंने बी.ए. की की परीक्षा कानपुर के सनातन धर्म कॉलेज से प्राप्त की। 1937 में अपने मित्र बलवंत महाशब्दे के कहने पर वह संघ में सम्मिलित हो गए। एमत्रएत्र की पढ़ाई करने के लिए वह आगरा चले गए।  लेकिन उनकी चचेरी बहन रमा देवी की मृत्यु हो जाने के कारण परीक्षा नहीं दे पाए।

1951 में जब डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की तो उन्होंने पं. दीनदयाल उपाध्याय को प्रथम महासचिव नियुक्त किया। उन्होंने यह पद दिसम्बर, 1967 तक सम्भाला। वह संघ के कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। उनकी मेहनत देखकर डॉ. श्यामा प्रसाद  को उन पर गर्व होने लगा। इसके बाद 1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आकस्मिक निधन होने से पार्टी की जिम्मेदारी पं. दीनदयाल जी के कंधों पर आ गई।

दिसम्बर, 1967 में कालीघाट में हो रहे पार्टी के 14वें वार्षिक अधिवेशन के दौरान पं. दीनदयाल जी को अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने ही अन्त्योदय का नारा दिया। वह चाहते थे कि लोग राष्ट्रवाद और भारतीय संस्कृति को भलीभांति समझें। उनका मानना था कि लोग देश की जड़ों से जुड़कर ही देश का विकास कर सकते हैं।

पं. दीनदयाल जी को जनसंघ का आर्थिक नीति का रचनाकार कहा जाता है। उनका कहना था कि भारत का आम नागरिक सुखी हो तभी भारत का आर्थिक विकास होगा। उनका कहना था कि भारतीय राष्ट्रवाद का आधार इसकी संस्कृति है। इस संस्कृति में निष्ठा रहने पर ही भारत एकात्मक रहेगा।

उन्होंने अपनी पुस्तक ‘‘एकात्म मानववाद’’ में साम्यवाद और पूंजीवाद दोनों ही विषयों पर अपने विचार प्रकट किए हैं। उनका मानना है कि हिन्दू कोई धर्म या सम्प्रदाय नहीं बल्कि भारत की राष्ट्रीय संस्कृति है। अध्यक्ष बनने के मात्र 43 दिनों बाद 11 फरवरी 1968 की रात्रि में मुगलसराय स्टेशन पर पं. दीनदयाल संदिग्ध को प्राप्त हुए। उनकी पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। उन्होंने समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए उत्कृष्ट कार्य किए और नए विचारों का स्वागत किया। उन्हें भाजपा का पितृ पुरूष भी कहा जाता है।

– विष्णु चौहान