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पुरुषोत्तम एकादशी

भारत में प्रत्येक व्रत, उपवास, त्यौहार आदि पंचांग पर आधारित होते हैं। यहाँ पंचांग से तात्पर्य हमारे दैनिक मार्गदर्शिका (कैलेंडर) से है जिसमें पाँच अंगों का सम्मिश्न किया जाता है। यह पाँच अंग है वार, तिथि, नक्षत्र, कारण और योग। हिंदू पंचांग तीन अलग-अलग धाराओं से प्रभावित हैं जिन्हें हम विधा भी कह सकते हैं इसमें पहली विधा चंद्रमा पर आधारित पंचांग है ,दूसरी नक्षत्र पर आधारित पंचांग और तीसरा सूर्य पर आधारित पंचांग है।आज भी भारत में कुछ स्थानों पर सूर्य आधारित पंचांगों के आधार पर गणना की जाती है और कुछ स्थानों पर चंद्रमा से आधारित पंचांग पर व्रत तिथियाँ निर्भर करती है। सूर्य आधारित पंचांग में संक्रांति का विशेष महत्व होता है अर्थात सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है, वह दिन संक्रांति काल के रूप में जाना जाता है । जबकि चंद्रमा जिस राशि में प्रवेश करता है, वह माह के रूप में जाना जाता है। जैसे चैत मास का राशि स्वामी मेष है, वैशाख माह का राशि स्वामी वृष है… इस प्रकार पंचांग में 12 संक्रांति और 12 माह होते हैं।

भारत की वर्ष गणना इस वैज्ञानिकता पर आधारित है – जहाँ पर पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा लगभग 365 दिनों में पूर्ण करती है और चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा लगभग 377 दिनों में पूर्ण करता है अर्थात चंद्रमा को पृथ्वी की परिक्रमा करने में लगभग 11 दिन, 3 घड़ी , 48 पल का अतिरिक्त समय लगता है क्योंकि चंद्रमा अपनी 16 कलाओं के साथ घटता बढ़ता है जिसमें एक दिन अमावस्या को चंद्रमा का पूर्ण लोप हो जाता है। इस कारण चंद्रमा को पृथ्वी की परिक्रमा करने में इतने दिनों का अतिरिक्त समय लगता है।

प्रतिवर्ष के अतिरिक्त 11 दिनों का तीन वर्षों में कुल योग 33 होता है जो एक माह की अवधि का समय है अतः इस माह को अधिक मास कहा गया। इस माह का कोई राशि स्वामी ने होने के कारण इसे मलमास कहा जाता है। इस माह किसी भी प्रकार के शुभ कार्य वर्जित होने के कारण अधिक मास द्वारा भगवान विष्णु जी से प्रार्थना की गई। भगवान ने प्रसन्न होकर इसे अपना “पुरुषोत्तम” नाम दिया अतः इस माह को पुरुषोत्तम मास के नाम से ही जाना जाता है। दिनांक 12 अगस्त 2023 को एकादशी की तिथि है। इसे पुरुषोत्तम एकादशी कहा जाता है, इस प्रकार श्रवण अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पुरुषोत्तम एकादशी कहते हैं। यह एकादशी प्रत्येक 3 वर्षों में एक बार आती है अतः इस एकादशी का विशेष महत्व है।

जिन जातकों ने सनातनी पद्धति से अपने बेटी का विवाह किया है,वे सभी इस माह में अपनी बेटी दामाद को विशेष रूप से वस्तु, द्रव्य, वस्त्र आदि देकर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं। पुरुषोत्तम एकादशी के दिन बेटी दामाद को लक्ष्मीनारायण का स्वरूप मानकर उन्हें वस्त्र , स्वर्ण आभूषणों , ताम्र पात्रों के साथ (33 दिनों का माह होने के कारण) 33 संख्या में मालपुए, अनरसे, अंजीर या छिद्र युक्त खाद्य-पदार्थों को दान में देते हैं। पुरुषोत्तम एकादशी के दिन संध्या काल में मंदिरों में, पवित्र नदियों के तटों पर दीप दान किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि भारत के सनातनी संकल्प लेकर अपने दिवंगत माता पिता की पवित्र आत्मा की मोक्षयात्रा के लिए इस एकादशी से पावन व्रत श्रद्धा पूर्वक प्रारंभ करते हैं जो एक वर्ष तक किया जाता है।

           लेखिका
डॉ नुपूर निखिल देशकर