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“बजरंग बली के सम्मुख बाली (बालि) ने किया था त्राहि माम”

-डाॅ. आनंद सिंह राणा

महाकाल के 11 वें रुद्र अवतार बजरंग बली सृष्टि में सर्वशक्तिमान हैं और चिरंजीवी हैं। ऐतिहासिक और पौराणिक साक्ष्यों के परिप्रेक्ष्य में बजरंग बली सदैव राम भक्ति में लीन रहते हैं परंतु यदि कोई उन्हें अनावश्यक छेड़ता है तो फिर उसकी दुर्दशा हो जाती है। इस संदर्भ में अनेक दृष्टांत उपलब्ध हैं।वर्तमान परिदृश्य के आलोक में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के चलते बजरंग दल को काँग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में प्रतिबंधित करने को कहा है अर्थात् बजरंग बली के भक्तों को पर सीधा निशाना साधा है जिसका सीधा तात्पर्य है कि बजरंग बली को ताले में बंद करना। यह कहीं कांग्रेस पर भारी न पड़ जाए क्योंकि अब कर्नाटक का विधानसभा चुनाव बजरंग मय हो गया है।

इतिहास साक्षी है कि बजरंग से जिसने भी बैर मोल लिया है उसका पराभव ही हुआ है। इस संदर्भ में एक कथा उल्लेखनीय है ,कि बजरंग बली से एक प्रलयंकारी युद्ध में वानरराज किष्किंधा नरेश बाली किस प्रकार मरते-मरते बचे थे।ये युद्ध क्यों हुआ और बालि की क्या दुर्दशा हुई? कभी – कभी वरदान भी अभिशाप बन जाता है।

उपाख्यान इस प्रकार है कि बाली और सुग्रीव वानर राज ऋक्ष के पुत्र थे। बालि और सुग्रीव के धर्म पिता क्रमशः इंद्र और सूर्य थे। किष्किंधा नरेश बाली को भगवान् ब्रम्हा से, सामने वाले किसी भी प्राणी की आधी शक्ति प्राप्त करने का देवीय वरदान हुआ था। बाली ने रावण जैंसे योद्धाओं को न केवल पराजित किया वरन् रावण को 6 माह तक अपनी कांख दबा के रखा था। एक दिन बाली अपनी शक्ति में मदांध होकर राज्य की सीमावर्ती पहाड़ियों में पेड़ – पौधे उखाड़ फेंक रहा था और हुंकार भर रहा था, वहीं दूसरी ओर बजरंग बली तपस्या में लीन थे लेकिन बाली के कारण विघ्न पड़ रहा था। इसलिए हनुमान जी ने बाली को समझाते हुए कहा कि आप सर्वशक्तिमान वानरराज हैं आपको ये शोभा नहीं देता और मेरी तपस्या में विघ्न पड़ रहा है, बाली ने उपहास उड़ाते हुए हनुमान जी के आराध्य प्रभु राम का भी शक्ति के मद में उपहास उड़ाया। फिर क्या था! बहुत ही जरंग बली को क्रोध आ गया और उन्होंने अगले दिन बाली को युद्ध की चुनौती दी। ये सुनकर भगवान् ब्रम्हा भयभीत हो गये क्योंकि वो जानते थे कि हनुमान रुद्र अवतार के रुप में हैं और बाली उनको नहीं संभाल पायेगा और मारा जायेगा, मेरा वरदान ही अभिशाप बनेगा। इसलिए ब्रम्हा ने हनुमान जी से युद्ध न करने की प्रार्थना की, परंतु हनुमान जी नहीं माने उन्होंने कहा कि मेरे आराध्य भगवान् श्रीराम का बाली ने अपमान किया है, इसलिए युद्ध अब अनिवार्य है। तब ब्रह्मा ने प्रार्थना की, कि आप अपनी शक्ति का, दसवाँ अंश लेकर युद्ध में और नब्बे प्रतिशत अपने आराध्य श्री राम को समर्पित करके जायें। बजरंग बली मान गये। अगले दिन प्रातः युद्ध आरंभ हुआ, जैंसे ही बाली हनुमान जी के सामने आए और भिड़े वैंसे ही हनुमान जी की आधी शक्ति वानरराज बाली में समाने लगी जिससे बाली की हालत बिगड़ने लगी उसके शरीर का तापमान और आंतरिक दवाब इतना बढ़ गया कि शरीर फटने की स्थिति में आ गया। अपनी ऐंसी दुर्दशा देखकर इधर उधर भागने लगा तभी ब्रम्हा ने प्रकट होकर बाली को समझाया शीघ्र ही हनुमान जी के सामने शरणागत् हो जा पुत्र नहीं तो आज तुम्हारा अंत निश्चित है। बाली दौड़ा और हनुमान जी चरणों में गिर गया क्षमा मांगी तब हनुमान जी ने बाली को जीवन दान दिया। एतदर्थ वरदान और शक्तियों का सदुपयोग होना चाहिए और श्री बजरंग को कभी नहीं छेड़ना चाहिए।