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भागवत के विचारों से टूटेगी मतभेद की दीवारें

‘‘संघ क्या है? 90 वर्षों से लोगों को पता है संघ सबको जोड़ता है। हम जो करेंगे, उससे सबका भला होगा, किसी का बुरा नहीं होगा। यह मुसलमानों का वोट पाने का प्रयास भी नहीं है, क्योंकि संघ उस वोट की राजनीति, पार्टी पॉलिटिक्स में नहीं पड़ता। राष्ट्र के बारे में हमारे कुछ विचार हैं, राष्ट्र में क्या होना चाहिये, क्या नहीं। हम राष्ट्रहित के पक्षधर हैं, उसके खिलाफ जाने वाली बात कोई भी करे, हम उसका विरोध करेंगे।’’

उक्त उद्गार गत दिवस मुस्लिम राष्ट्रीय मंच द्वारा आयोजित ‘मीटिंग ऑफ माईंड ए ब्रिजिंग इनेशिएटिव’ पुस्तक का विमोचन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत ने व्यक्त किये आपने आगे कहा कि संघ के जन्मकाल से ही यह निश्चित किया हुआ है कि वोट बैंक पॉलिटिक्स में नहीं जाना है। मनुष्यों को जोड़ने का काम राजनीति से होने वाला नहीं है-ऐसी हमारी मान्यता है।

पुस्तक का विमोचन करते हुये श्री मोहन भागवत जी ने कहा कि ‘ख्वाजा साहब’ की इस पुस्तक में एक प्रामाणिक आह्वान है, उन सब बातों का विस्तार से उनके उद्बोधन में आ भी गया है। उनका आव्हान है कि ‘भाई हम एक हैं’ हमको एक होना है क्योंकि राष्ट्र की प्रगति संगठित समाज के अस्तित्व के बिना नहीं होती है।’

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आपने आगे कहा कि ‘जाकि रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी’ – यह विवाद का विषय है ही नहीं। अनेक भाषाओं के बोलने वाले लोग, अनेक धर्मों को मानने वाले लोग इस देश में लम्बे समय से रहते आ रहे हैं। देश में राजनैतिक दृष्टि से राजसत्ता के लिये प्रजातांत्रिक प्रणाली को अपनाया गया है, जिसमें सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं। ऐसे समय में वोटों के लिये विष बोये जाने के परिणाम स्वरूप कतिपय मतभेद और विचारधाराओं में टकराव के दृश्य उपस्थित भी हो जाते हैं।

इन परिस्थितियों में दुनिया के सबसे बड़े गैर राजनैतिक संगठन के प्रमुख द्वारा यह कहा जाना कि अल्पसंख्यक कहे जाने वाले देश के मुसलमानों का डी.एन.ए. भी एक है। यह कथन अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाता है जिसे लेकर देश में कतिपय तत्वों द्वारा वोट बैंक की लालच में विषबेल बोये जाने का जब तक प्रयास होता रहता है। श्री भागवत द्वारा इस अवसर पर यह कहा जाना उस भ्रम को दूर करना है जिसके माध्यम से हिन्दु-मुसलमानों के बीच धर्म को लेकर दीवाल खड़ी करने की कोशिश की जाती रही है।

उन्होंने यह भी स्पष्ट दो टूक शब्दों में कहा है कि ‘‘हमारे देश में ये परम्परा नहीं है कि आपकी पूजा पद्धति अलग है’’, इसलिये आप अलग हैं। उन्होंने अति प्राचीन धर्मग्रंथ अथर्वेद की इस ऋचा का उल्लेख किया ‘‘जनं विभ्रति बहुधा विवाचसम, नाना धर्माणम् पृथ्वी यथौकसम्।’’

 इस विशाल देश में अनेक भाषाओं को बोलने वाले, अनेक धर्मों के मानने वाले निवास करते हैं। यह बात आज कही जा रही है ऐसा नहीं है। इन तमाम सारभूत बातों का उल्लेख सदियों से अतिप्राचीन धर्मग्रंथों में सन्निहित है।

हिन्दू-मुसलमान एकता का विचार आज का हो सकता है, जिसे स्वयं श्री मोहन भागवत जी, भ्रामक मानते हैं। उनका मानना है कि ये दो वर्ग है, ही नहीं। फिर ये एकता की बात कहाँ से आ गयी, ये तो तार जुड़े हुये हैं। जब यह माना जाने लगता है कि हम जुड़े नहीं हैं, तब विचारों में संकट की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

इस सभा में उनका यह कथन अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाता है कि ऐसी जो हमारी तहजीब है, वह हमारी अपनी मातृभूमि के कारण प्राप्त है, यही हमारा सुदृढ़ प्रथम आधार है, और प्राचीन काल से चली आ रही परम्परा दूसरा आधार है, तीसरा अत्यन्त महत्वपूर्ण आधार यह है जो विज्ञान द्वारा आधारित है कि ‘‘हम चालीस हजार साल पहले से ही हम सब भारत के लोगों का डी.एन.ए. समान है। जब इन तथ्यों की ओर नजर दौड़ाते हैं और विचार करते हैं तो स्वाभाविक तौर पर अपनेपन की भावना अनुभव में आती है। संघ की पहले से ही यही मान्यता है कि राजनीति के आधार पर ऐसा अपनेपन का आधार नहीं बन सकता।’’

आपने यह भी स्पष्ट रूप से कहा कि अल्पसंख्यक जिन्हें कहा जाकर भ्रम फैलाया जाता है, वह एक ही समाज है, हमारे अपने समाज के भाई हैं- ये वास्तविकता है। संघ ने कभी भी भाषा, प्रान्त, धर्म सम्प्रदायों के नाम पर कम या ज्यादा, किसी को नहीं माना। लेकिन ‘माइनारिटी’ को लेकर तथा कथित अल्पसंख्यकों के मन में संघ के बारे में डर भरा गया है।

आपने कहा कि हिन्दुस्तान एक राष्ट्र है। यहाँ हम सब लोग हैं, सबके इतिहास अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन पूर्वज सबके समान हैं, स्वार्थ, अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन समाज एक हैं, स्वार्थों और सौदे पर एकता नहीं होती।

महापुरूषों, गुरूनानकदेव, छत्रपति शिवाजी महाराज के समकालीन तुकाराम महाराज और रामदास स्वामी के अभंगों का उल्लेख करते हुये भी एकता के प्रयासों का आपने उल्लेख किया।

डॉ. मोहन भागवत विश्व के सबसे बड़े गैर-राजनैतिक संगठन के प्रमुख हैं। उनके द्वारा हिन्दु- मुस्लिम एकता के प्रयासों पर बल देते हुये अपने उद्गार व्यक्त किया जाना, एक अति उत्साही मामला माना जाना चाहिये। भले ही उनका संगठन हिन्दुओं की एकजुटता की बात करता हो लेकिन मुस्लिमों से इस देश में कोई नफरत न करे – इस प्रयास की तो प्रशंसा होनी ही चाहिए। यह एक अत्यन्त साहसिक है एवं सराहनीय प्रयास है।

वैसे भी पिछले अनेक वर्षों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महत्वपूर्ण एवं अति वरिष्ठ प्रचारक इन्द्रेश कुमार के संरक्षण में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच इस दिशा में प्रयासरत भी हैं। आगामी वर्ष इस संगठन ने आजादी की 75 वीं वर्षगांठ के अवसर पर मुस्लिम संगठनों के माध्यम से देशभर में 500 कार्यक्रमों के आयोजन की एक बड़ी महत्वाकांक्षी योजना बनायी है। इन कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को समझाया जाना है कि हमारी पूजा पद्धति भले ही अलग-अलग हो, लेकिन हम सब एक हैं। यही एक बड़ी संकल्पना है।

आश्चर्य तो इस बात का है कि अपने देश में शांतिनाशक तत्वों की इतनी खरपतवार पैदा हो गयी है कि सीधी सच्ची एवं आदर्श बातों पर सस्ती राजनीति की जाने लगती है। प्रशंसा और तारीफ इस बात के लिए होना चाहिये थी कि संघ प्रमुख अपने उद्गारों के माध्यम से सभी देशवासियों में एकता, साम्प्रदायिक सद्भाव एवं भाईचारे की जो फसल उगाना चाहते हैं, वह वोटों की राजनीति की नहीं, सच्ची देश हितैषी बात है। वे अपनी दो टूक बात से सतही दृष्टिकोण से वरन् विस्तृत एवं कल्याण की दृष्टि से यही रेखांकित करना चाह रहे हैं कि भारत के लोगों में जाति, मजहब और पूजा पद्धति विवाद का विषय नहीं है। हम सब एक पूर्वजों की सन्तानें हैं।

इसमें ऐसा क्या है जिसे कतिपय विघ्नसंतोषियों द्वारा आपत्तिजनक मानकर अनाप-शनाप भ्रमित बुद्धि की बातें कही जा रही हैं। ये भ्रमित वर्ग के राजनेता हिन्दू दर्शन को अब तक नहीं समझ पाये तो यह किसका दोष है। इसी कमजोरी ने इन्हें इतना संकुचित विचारधारा वाला व्यक्ति बना दिया है। इनकी सतही दृष्टि अपने दल के हितों को छोड़कर देशहित तक जाती ही नहीं है। डॉ. मोहन भागवत ने डी.एन.ए. समान होने वाली बात को स्वयं संघ के नेतृत्व के प्रमुख होने के नाते कह कर ऐसे नेताओं के बंद चक्षुओं को खोलने का सराहनीय कार्य किया है।

लेख़क :- डॉ. किशन कछवाहा