Trending Now

भारतीय संस्कृति जग में आलोकित

भारतीय संस्कृति आज भी सारगर्भित और कल भी देश में नहीं अपितु जग में आलोकित थी। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। सत्यार्थ, कालांतर में भारत वर्ष मे कभी छुआछुत रहा ही नहीं, और ना ही कभी जातियाँ भेदभाव का कारण होती थी। चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पर नजर डालते हैं।

सम्राट शांतनु ने विवाह किया एक मछवारे की पुत्री सत्यवती से। उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके, आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की। सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा? महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारे थे, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो। विदुर, जिन्हें महापंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे, हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है। भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया।

राम से मर्यादा पुरुषोत्तम राम

श्री कृष्ण ग्वालवंशी थे, उनके भाई बलराम खेती करते थे, हमेशा हल साथ रखते थे। यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्री कृष्ण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया। राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे। रामजी ने वनवासी शबरी माता की जूठी बेर खायीं। राम ने वन के राजकाज में वनवास में वनवासी बंधुओं का संरक्षण करते हुए उनके साथ सदा जनकल्याण का भाव रखा। मूल रूप में राम से मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनने में वनवासियों की सेवाएं ही प्रमुख रही। श्री राम के पुत्र लव कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे। तो ये हो गई वैदिक काल की बात। स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था। सबको शिक्षा का अधिकार था। कोई भी पद तक पहुंच सकता था, अपनी योग्यता के अनुसार। वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे वो बदले जा सकते थे। जिसको आज अर्थशास्त्र में श्रम विभाजन कहते हैं वो ही।

शोषण कहा से हो गया

प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा वो जाति से नाई थे । नन्द वंश की शुरुवात महापद्मनंद ने की थी जो की राजा नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये। उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरुआत चन्द्रगुप्त से हुई, जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे और एक ब्राह्मण चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया । 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा। फिर गुप्त वंश का राज हुआ, जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे। 140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा। केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़ कर 92 फीसद समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का रहा। जिन्हें आज दलित, पिछड़ा कहते हैं तो शोषण कहा से हो गया? यहां भी कोई शोषण वाली बात नहीं है।

मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू

फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है। इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम आक्रमणकारियो का समय रहा और कुछ स्थानों पर उनका शासन भी चला। अंत में मराठों का उदय हुआ। बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया, चरवाहा जाति के होलकर को मालवा का राजा बनाया। अहिल्या बाई होलकर खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थी। ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये। मीरा बाई जो कि राजपूत थी। उनके गुरु एक चर्मकार रविदास थे और रविदास के गुरु ब्राह्मण रामानंद थे|। यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है। मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी चीजें शुरू होती हैं। 1800 -1947 तक अंग्रेजो के शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ। जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया। अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब “कास्ट ऑफ़ माइंड” में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।

भेदभाव के षड्यंत्रों से बचाना होगा

इन हजारों सालों के इतिहास में देश में कई विदेशी आये जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं। जैसे कि मेगास्थनीज ने इंडिका लिखी, फाहियान, ह्यू सांग और अलबरूनी जैसे कई। किसी ने भी नहीं लिखा की यहां किसी का शोषण होता था। अनुसूचित जाति वर्ग के रामनाथ कोंविंद देश के महामहिम राष्ट्रपति बने। अब अनुसूचित जनजाति वर्ग से श्रीमती द्रौपदी मुर्मू देश की प्रथम नागरिक हैं। क्रमवत पिछड़े वर्ग के कर्मयोगी प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्री और उच्च पदाधिकारी की आसंदी को शोभामान कर रहे हैं या कर चुके हैं। अनुकरणीय, ऐसा समानता का भाव हमारा संविधान भी हमें सिखाता है। यथेष्ठ, आज अनेकों सतमार्गी जो ब्राह्मण नहीं हैं, बावजूद मंदिरों के पुजारी, संत, महंत, मंडलेश्वर और पीठाधीश्वर हैं। जन्म आधारित जाति को छुआछुत व्यवस्था हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए लाई गई थी। जो समय के साथ धराशाई हो गई। इसलिए भारतीयता पर गर्व और गौरव अनुभूति है। बेहतर, घृणा, द्वेष और भेदभाव के षड्यंत्रों से खुद और औरों को भी बचाना होगा। यथा सांस्कारिक, शिक्षित, वैचारिक और संगठित बनने का समय है। तभी हमारी संस्कृति, सभ्यता और हिंदुत्व जगत में सराबोर होगी।

      लेख़क
हेमेन्द्र क्षीरसागर
 9174660763