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“भारत की स्वाधीनता का एक प्रमुख कारण था जबलपुर का सिग्नल कोर का संग्राम”

भारत देश स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है, हर तरफ देश प्रेम के साथ स्वाधीनता से जुड़ी यादों को साझा किया जा रहा है। उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भी याद किया जा रहा है जिनके बलिदान से भारत को आजादी मिली।

आज आपको जबलपुर के सिग्नल कोर की वह जानकारी दे रहे हैं जिसने देश की आजादी में मुख्य भूमिका निभाईं। यहीं पर बरतानिया सरकार के खिलाफ भारतीय सेना ने देश प्रेम में रंगकर संग्राम किया और अंग्रेजों को एक साल पहले भारत छोड़ना पड़ा। पढ़ें देशप्रेम, जज्बा और संघर्ष की गाथा।

सन 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ और उसके उपरांत इंग्लैंड में लेबर पार्टी की सरकार बनी। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने जून 1948 तक भारत छोड़ने की घोषणा की परंतु विभाजन कर, एक वर्ष पूर्व ही अंग्रेजों ने 15 अगस्त सन 1947 में भारत छोड़ दिया। यह सन 1956 तक रहस्य बना रहा कि आखिर ऐंसा क्या हो गया था कि बरतानिया सरकार ने एक वर्ष पूर्व ही भारत छोड़ दिया। इस रहस्य का खुलासा सन 1956 में क्लीमेंट एटली ने किया, जब वे सेवानिवृत्त होने के बाद कलकत्ता आए, वहां पर गवर्नर ने एक भोज के दौरान उनसे पूछा कि आखिरकार ऐसी कौन सी हड़बड़ी थी कि आपने एक वर्ष पहले ही भारत छोड़ दिया, तब क्लीमेंट एटली ने जवाब दिया कि सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के असफल हो जाने के बाद महात्मा गांधी हमारे लिए कोई समस्या नहीं थे, परंतु नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनकी आजाद हिंद फौज के कारण भारतीय सेना ने हमारे विरुद्ध विद्रोह कर दिया था। तत्कालीन भारत के सेनापति अचिनलेक ने अपने प्रतिवेदन में सन 1946 में जबलपुर से थल सेना के सिग्नल कोर के विद्रोह, बंबई से नौसेना का विद्रोह, करांची और कानपुर से वायु सेना के विद्रोह का हवाला देते हुए स्पष्ट कर दिया था कि अब भारतीय सेना पर हमारा नियंत्रण समाप्त हो रहा है जिसका तात्पर्य है कि अब भारत पर और अधिक समय तक शासन करना असंभव होगा। यदि शीघ्र ही यहां से हम लोग वापस नहीं गए तो बहुत ही विध्वंसकारी परिस्थितियां निर्मित हो सकती हैं और यही विचार अन्य विचारकों का भी था। इसलिए हमने एक वर्ष पूर्व ही भारत छोड़ दिया परंतु भारतीय इतिहास में सेनाओं के स्वाधीनता संग्राम को विद्रोह का दर्जा देकर दरकिनार कर दिया गया। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव पर यह श्रेय भारतीय सेना को ही जाना चाहिए।

जबलपुर में ऐसे हुआ सिग्नल कोर का स्वाधीनता संग्राम – 

आजादी के लिए मुंबई में नाविक विद्रोह, करांची और कलकत्ता के बंदरगाहों में जहाजी तोपखानों की सक्रियता और पेशावर तथा रावलपिंडी की फौजी छावनियों में बगावत। 1945 की ये ऐसी घटनाएं हैं जिनके कारण सत्ताधारी अंग्रेज सतर्क हो गए।

22 से 28 फरवरी 1946 के मध्य सिग्नल कोर के सैनिकों ने स्वतंत्रता संग्राम का झंडा बुलंद किया। प्रथम चरण में जबलपुर में 500 सैनिकों ने देशप्रेम के लिए स्वाधीनता संग्राम का आगाज किया। अंग्रेजों के अधीनस्थ भारत में कार्यशील भारतीय सैनिक प्रमुख आधार थे। जब सेनापति आचिनलेक ने भारतीय सेना पर अनुशासन भंग करने का आरोप लगाते हुए तीखा वक्तव्य दिया तो जबलपुर में फौजी उत्तेजित हो गए। 500 सैनिकों ने अंग्रेजों के फौजी घेरे को तोड़ा और तिलक भूमि तलैया की ओर मार्च कर दिया। अंग्रेज सैनिकों ने रोका तो मुठभेड़ हुई और कई भारतीय सैनिक घायल हो गए। यह खबर पूरे शहर में फैल गई। दोपहर दो बजे जब सैनिकों का जुलूस तिलक भूमि तलैया पहुंचा तो नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पंडित भवानी प्रसाद तिवारी, मध्य प्रदेश छात्रसंघ के अध्यक्ष गणेश प्रसाद नायक ने सैनिकों का स्वागत किया। इन सैनिकों ने स्पष्ट कर दिया था कि उनका संग्राम एडमिरल गाडफ्रे और वाइसराय की धमकी के खिलाफ है। कुछ मांगों की ओर इशारा करते हुए सैनिकों ने स्पष्ट कर दिया था कि शहर में सैनिकों की हड़ताल जारी रहेगी। लेकिन सैनिकों के मन में आजादी का प्रश्न सर्वोपरि था।

नहीं हो पाई कोर्ट मार्शल की कार्रवाई

जब स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वापस छावनी लोटे तो अधिकारियों में मुख्य चिंता इन सैनिकों की गिरफ्तारी और दंड से संबंधित था। इसके विपरीत स्वाधीनता संग्राम में सैनिकों की संख्या बढ़ती गई। तीसरी टीसी बटालियन, इंडियन सिग्नल कोर की पहली बटालियन के साथ मिल गई और सैनिकों की संख्या 900 पहुंच गई।

अंततः 20 फरवरी को संख्या 1700 तक पहुंच गई। दूसरे दिन नागपुर से डिस्ट्रिक्ट कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल यहां आए। एक बड़े भवन में कोर्ट मार्शल के लिए फौजी अदालतें बैठी। विद्रोह के लिए उत्तरदायी हवलदार कृष्णन, जगत सिंह और ज्ञान सिंह पर गंभीर आरोप लगाए गए। तब पंडित भवानी प्रसाद तिवारी ने वकीलों की बातचीत की। इन सैनिकों की ओर से कुंजीलाल दुबे, सरदार राजेंद्र सिंह, जानकीनाथ भटनागर, असगर अली और ब्रजविलास शुक्ल ने पैरवी की। तब वकीलों ने तर्क दिया कि उनके अभियुक्त कांग्रेस का झंडा लिए था और जयहिंद का नारा लगा रहा था। यह कोई जुर्म नहीं है। इससे यही भावना प्रदर्शित होती है कि जो एक अंग्रेज के हृदय में होती है जब वह जय इंग्लैंड कहता है। अपने देश का गुणगान कभी अपराध नहीं माना जा सकता। इस तर्क से सभी सैनिक बच गए।

सेना की रही महत्वपूर्ण भूमिका-

अंग्रेजों के विरुद्ध भारत के स्वाधीनता संग्राम में भारतीय सेना की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और भारत की स्वाधीनता पर अंतिम मुहर सेना ने ही लगाई थी। यह मत प्रवाह कि उदारवादियों ने ही स्वाधीनता दिलाई बहुत ही हास्यास्पद सा लगता है क्योंकि सन 1940 में द्विराष्ट्र सिद्धांत की घोषणा हुई और भारत के विभाजन पर संघर्ष मुखर हो गया था, परिस्थितियां विपरीत बनती गईं। विभाजन को लेकर तथाकथित राष्ट्रीय आंदोलन बिखर गया था। स्वाधीनता का श्रेय लेने वाला उदारवादी दल बिखर गया था।

सन 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन ने तीन माह में ही दम तोड़ दिया था तो दूसरी ओर विभाजन तय दिखने लगा था। ऐंसी अवस्था में बरतानिया सरकार को जून 1948 तक रुकने में कोई समस्या नहीं थी परंतु आजाद हिंद के सैनिकों के साथ हुए, दुर्व्यवहार के कारण सेनाओं ने स्वतंत्रता संग्राम छेड़ दिया।

जबलपुर भारत में सेना के मुख्यालयों में से एक था और आयुध निर्माणी संस्थान भी थे, इसलिए सिग्नल कोर के 1700 सैनिकों के स्वतंत्रता के उद्घोष ने बरतानिया सरकार को हिला कर रख दिया था। अतः बरतानिया सरकार ने एक वर्ष पूर्व ही भारत छोड़ दिया।

लेख़क – डॉ. आनंद सिंह राणा
संपर्क – 7987102901