भारत रत्न कर्मयोगी इंजीनियर विश्वेश्वरैया…
भारत रत्न कर्मयोगी इंजीनियर विश्वेश्वरैया…
भारत रत्न कर्मयोगी इंजीनियर विश्वेश्वरैया ने भारत के विकास का सपना देखा था कई बांध परियोजनाओं के योजनाकार विश्वेश्वरैया रहे थे । देश के विकास के लिए उनके मार्गदर्शन में बांध और नहरें तैयार हुई। बांध परियोजनाओं को बनाने में उनका विशेष योगदान है।
सामाजिक क्रांति का सूत्रपात किया बांध के पानी को नहरों के माध्यम से खेत तक ले गए इस तरह देश के कई भागों में बाढ़ की समस्या कम हुई एवं सिंचाई के साधनों का विकास हुआ खेतों में फसलें लहलहा उठी जो किसान बारिश पर निर्भर करते थे उनके पास अब नहरों के माध्यम से जल आ रहा था, उनका जन्म 15 सितंबर 1818 मैसूर राज्य में हुआ था।
श्री विश्वेश्वरैया का परिवार मूल रूप से मोक्षगुंडम गांव का था उनका गांव का नाम मोक्षगुंडम था, इसीलिए उनका नाम मोक्षागुंडम विश्वेश्वरैया पड़ा, उनके पिता श्रीनिवास शास्त्री शिक्षक ज्योतिष वैज्ञानिक चिकित्सक के रूप में जाने जाते थे विश्वेश्वरैया केवल 7 वर्ष के थे जब उनके पिता नहीं थे रहे उनकी मां श्रीमती व्यंकटा लक्षअम्मा ऊंचे विचारों की महिला थी।
वे बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में काफी रूचि रखते थे प्रारंभिक शिक्षा के बाद बेंगलुरु से हाई स्कूल की परीक्षा पास की कुशाग्र बुद्धि के थे वे हमेशा अच्छे अंकों में उत्तीर्ण होते थे उन्हें छात्रवृत्ति मिलती थी मगर वह अत्यंत कम थी।
जिससे उनका खर्च नहीं चल पा रहा था इसीलिए वह ट्यूशन करते हुए धन कमाते परिस्थिति में भी उन्होंने पढ़ाई जारी रखी को से स्नातक की परीक्षा पास की उनके मन में इंजीनियर बनने की इच्छा थी।
अध्यापकों ने भी उन्हें उत्साहित किया वह पुणे कॉलेज ऑफ साइंस में भर्ती हुए उस समय इंजीनियरिंग कॉलेज का यही नाम था मैसूर सरकार की ओर से भी उन्हें छात्रवृत्ति मिली अत्यंत परिश्रम किया सिविल इंजीनियर की परीक्षा में सफल हुए उस समय देश में इंजीनियरों की संख्या बहुत कम थी।
महाराष्ट्र के लोक निर्माण विभाग में सहायक अभियंता कि नौकरी प्राप्त हुई अपनी असाधारण प्रतिभा के बल पर वे सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने सिंधु नदी पर शक्कर बांध बनवाया सिंचाई जल आपूर्ति जैसे क्षेत्रों में उन्होंने बहुत काम किया क्षेत्र में इतने प्रसिद्ध हुए कि देश की अन्य सिंचाई और यह परियोजनाओं में उनसे सलाह ली जाने लगी।
सन 1908 में हैदराबाद की मूसी नदी में भयंकर बाढ़ आई श्री विश्वेश्वरैया ने बाढ़ नियंत्रण का कार्य संभाला राज्य भर में जगह-जगह बांध बनवाएं परिणाम स्वरूप बाल का आना कम हुआ जो पानी बेकार हो जाता था वह सिंचाई के काम आने लगा और कुछ ही वर्ष में इस क्षेत्र की कायापलट हो गई उन्हें चीफ इंजीनियर या ने मुख्य अभियंता का पद दिया गया और मैसूर शहर में बुला लिया गया।
उन्होंने संपूर्ण राज्य का दौरा किया उन्होंने पाया कि वहाँ छोटी छोटी बावलिया थीऔर बहुत सारे तालाब थे मगर पानी का वितरण सही नहीं था पानी की किल्लत भी रहा करती थी उन्होंने यह सुझाव दिया कि मैसूर राज्य की पानी की समस्या से निजात पाया जा सकता है।
यदि कावेरी नदी पर बांध बना दिया जाए तब उनकी बात मान ली गई बांध का कार्य आरंभ हो गया विश्वेश्वरैया सिविल इंजीनियर होने के साथ ही सुंदर योजनाकार भी थे उन्होंने मैसूर में विशाल सिंचाई और पनबिजली योजना तैयार की वह आज कृष्णराज सागर के नाम से जानी जाती है।
उन्होंने कृष्णराज सागर के किनारे एक मनोहारी बाग का निर्माण कराया जो वृंदावन गार्डन के नाम से प्रसिद्ध है कुछ समय बाद वे मैसूर राज्य के दीवान बने शिक्षा की उन्नति के लिए उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ ही उद्योगों का विकास किया और भद्रावती नामक स्थान में इस्पात का कारखाना खुलवाया जो इस क्षेत्र का पहला इस्पात कारखाना था।
आज के बेंगलुरु की पहचान विधानसभा यानी विधानसभा भवन भी उनके प्रयास से तैयार हुआ जो शिल्प का बेहतरीन नमूना है विश्वेश्वरैया स्वच्छता बहुत पसंद करते थे चाहे उनका पहनावा हो दफ्तर का कमरा हो या घर सब कुछ साफ सुथरा और व्यवस्थित रहता था विभिन्न संस्थानों कार्यालयों का हाल जानने के लिए लोगों से सीधे बात करते थे।
विद्यार्थियों से बराबर बातचीत कर उनकी पढ़ाई स्कूल या कॉलेज की व्यवस्था के बारे में पूछते रहते थे एक बार कृष्णराज सागर बांध पर कुछ विद्यार्थी सैर कर रहे थे उन्होंने उन्हें रोककर उनकी पढ़ाई कॉलेज की व्यवस्था खेल के मैदान की व्यवस्था के बारे में अनेक प्रश्न पूछे विद्यार्थियों ने धन्यवाद दिया उन्होंने कहा धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं अपने को बड़ा बनाओ खुद को अपने अपने विश्वविद्यालय की योग्य बनाओ वे कहते थे।