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यूक्रेन को नष्ट कर रूस ने पाप किया

परमात्मा के स्वरूप विश्व की पृथ्वी पर कई वर्षों पूर्व से सैकड़ों देश स्थापित हैं, जिनमें प्रकृति पौधे प्राणियों की विविधता विद्यमान रही है। हर देश के पूर्व शासकों एवं नागरिकों ने मिलकर स्वदेश की पृथ्वी के क्षेत्रफल के अंतर्गत वनक्षेत्र, कृषिक्षेत्र के अलावा शहर बनाये हैं, जहाँ ईश्वरीय प्रकृति पौधों से नागरिकों व शासकों ने मकान, कार्यालय, अस्पताल, विद्यालय, उद्योग आदि स्थापित कर जीवन हेतु शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यवसाय धंधे करते हैं, धन सम्पत्ति अर्जित करते हैं। इस प्रकार हर देश के अंतर्गत प्राकृतिक वनक्षेत्र में पौधे प्राणी हैं, कृषि क्षेत्र में किसान मजदूर वर्ग के इंसान निवास करते हैं व कृषि पशुपालन कर जीवन यापन करते हैं तथा शहरों में शासन के मंत्री, सांसद, विधायक, अधिकारी, कर्मचारी व अन्य नागरिक निवास करते हैं, र्का करते हैं, निवास, कार्यालय, उद्योगों की इमारतें बनायें हैं, धन अर्थ अर्जन करते हैं।

परम्पराओं व संस्कृतियों अनुसार देश के हर नागरिक एक दूसरे के प्रति प्रेम सम्मान जाहिर करते रहे हैं तथा एक दूसरे के जीवन यापन में सहायता करते रहे हैं, ईश्वर की देनों का उपयोग कर सुख शांति से जीते रहे हैं। नियमों के अनुसार हर देश में शासकों व नागरिकों में दूसरे देशों के नागरिकों व शासकों से अच्छे तालमेल व संबंध रहते रहे हैं, व एक देश के नागरिक विद्यार्थीगण दूसरे देश में शिक्षा ग्रहण करने, भ्रमण करने, नौकरी व्यवसाय करने जाते रहे हैं।

नियमानुसार, स्वदेश की ईश्वरीय पृथ्वी में जो मानव, पशु-पक्षी, सूक्ष्म जीव पैदा होते हैं उन्हें पृथ्वी पर रहने व जीवन यापन करने, रोजगार धंधे करने का पूरा अधिकार है। इसी तरह उनकी पीढ़ियों के बनने व पलने का प्रकृति पर पूरा अधिकार है। किसी देश के शासक को दूसरे देश की प्राकृतिक संसाधनों, पौधों प्राणियों, मानवों को नष्ट करने वास्ते विधि विधान से अनुमति नहीं है। बल्कि किसी देश के शासक द्वारा दूसरे देश की प्रकृति पौधे प्राणियों को नष्ट करना, विधि विधान व संस्कृति की दृष्टि से घोर अपराध पाप है। आज कुछ देशों के धनी घमंडी शासक दूसरे देशों की प्रकृति प्राणी नष्ट करने में अपनी बहादुरी बड़ाई समझते हैं व दूसरे इंसानों को जीने नहीं देना चाहते हैं। इनमें से एक रूस है।

प्राकृतिक देनों से धनी बने रूस देश के वर्तमान राष्ट्रपति ‘‘श्री पुतिन जी’’ के निर्देश से विगत 24 फरवरी 2022 से रूस की सेनाओं द्वारा वाहनों व हवाई जहाजों में बैठकर, यूक्रेन देश की घेराबंदी करके विविध हथियारों, एटम बमों, मिसाइलों द्वारा यूक्रेन देश के शहरों पर प्रहार किया जा रहा है जिससे यूक्रेन के नागरिकों के निवास, कार्यालयों, अस्पतालों, विद्यालयों की इमारतों पेट्रोल पम्पों में आग लगने से वे नष्ट हो रहे हैं, कई इंसान प्राणी पौधे जलकर खाख हो रहे हैं, धुआँ-धुआँ मय पर्यावरण हो गया है, वह धुँआ विश्व के सभी देशों के आकाश वायु में प्रदूषण जहर बढ़ रहा है जिससे प्राणी बीमार होेंगे।

यूक्रेन से करीब 20 लाख नागरिक दूसरे देशों में पलायन कर गये हैं। भारत सरकार द्वारा यूक्रेन में शिक्षा ग्रहण कर रहे हजारों भारतीय विद्यार्थियों को सुरक्षित करने देश में वापस बुलाना पड़ा है। विद्यार्थियों की शिक्षा प्रभावित हुई है। यूक्रेन में कुछ विद्यार्थियों की मृत्यु भी रूस के सेना के प्रहारों से हुई है दुनिया के दूसरे देशों के राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री, देश दुनिया को इससे नष्ट होते देख रहे हैं। इसे बचाने खास यत्न योगदान करते कोई नजरनहीं आ रहा है। जबकि कुछ महीने पूर्व ही विश्व के राष्ट्र संघ के पर्यावरण में प्रदूषण बचाने, जलवायु परिवर्तन बचाने, जीवन बचाने  बद्ध हुआ था।

भारत में वसुधैव कुटुम्बकम् एवं अहिंसा परमोधर्मः, जीवों प्रति प्रेम करूणा दया तथा मानके में बंधुत्व भाईचारा बनाने व परोपकार करने की संस्कृतियाँ रहीं हैं। पर्यावरण जैव विविधता बचाने की सस्ंकृति के अलावा, नियम कानून भी शासन द्वारा बनाये गये हैं।

अतः हर देश के राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को यूक्रेन देश व दुनिया को बचाने अपना योगदान देना चाहिये ताकि दुनिया के मानवों के सुख शांति स्थापित रहे। मेरे वैज्ञानिक समझ से  यूक्रेन की प्रकृति पौधे प्राणियों को नष्ट करने का एवं परमात्मा के विश्व में प्रदूषण बढ़ाने का महापाप करने वाले रूस के राष्ट्रपति ‘‘श्री पुतिन जी’’ को ईश्वर सूर्य से दण्ड आज नहीं तो भविष्य में अवश्य मिलेगा। अभी भीवक्त है उन्हें युद्ध विराम कर देना चाहिये और यूक्रेन व अन्य देशों के नागरिकों से बंधुत्व भाईचारा की संस्कृति करनी चाहिये ताकि उनका भविष्य उज्जवल हो। उनका रूस दूसरों के भी काम आये। हम सब मिलकर इस विश्व को अनन्त पीढ़ियों के सुख शांति से जीने लायक बनाये रखें तो सबका साथ सबका विकास होगा।

लेखक – डाॅ. प्रेम सिंह

“रूस-यूक्रेन संकट अब तक लम्बा खिंचता चला जा रहा है, जो कि चिन्ताजनक है। यूक्रेन में नार्वे के बाद यूरोप का सबसे बड़ा दूसरा बड़ा प्राकृतिक गैस भंडार (1.09 ट्रिलियन घन मीटर) है। टकरावउ का ऐतिहासिक कारण दुनिया में प्रोटेस्टेंट और ऑर्थोडाक्स चर्चों के बीच वर्चस्व की लड़ाई लम्बे समय से चलती आयी है।”

“भारत के लिये किसी एक पक्ष को चुन लेना सरल काम था, लेकिन युद्ध और हिंसा की स्थिति में फंसे इजारों छात्रों और भारतीय हितों पर भी ध्यान दिया जाना सामयिक परिस्थितियों में ज्यादा आवश्यक समझा गया और उन्हें वहाँ से निकालने के त्वरित प्रयास किये भी गये। भारत को एक सम्पूर्ण देश की तरह सोचने की जरूरत थी, और वही रास्ता चुना भी गया। भारत को बदनाम करने वाली शक्तियाँ उसे पांसे की तरह उपयोग करना चाह रही थी, जो नहीं हो सकता।” सम्पादक