Trending Now

यूक्रेन संकट के बाद के हालात में भारत विश्व शक्ति की भूमिका में होगा

यूक्रेन में युद्ध का तीसरा हफ्ता शुरू हो चुका है | वहीं रूस के साथ उसकी बातचीत से सुलह के आसार बढ़ रहे हैं | हालांकि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश यूक्रेन को सैन्य और आर्थिक सहायता दे रहे हैं किन्तु यूक्रेनी राष्ट्रपति नाटो में शामिल न होने की रूस की मांग के सामने घुटने टेकने का आश्वासन देकर अपनी गर्दन बचाने का प्रयास करने में जुट गये हैं | इसका कारण रूस का निरंतर आक्रामक होते जाना है | भले ही वह अभी तक राजधानी कीव पर काबिज नहीं हो सका हो लेकिन यूक्रेन को भी ये समझ में आ चुका है कि युद्ध जारी रहने पर वह पूरी तरह तबाह होकर रह जाएगा |
रूस जिस निर्दयता से नागरिक ठिकानों पर हमले कर रहा है उसके कारण यूक्रेन में सर्वत्र बर्बादी का आलम है | उसका तात्कालिक उद्देश्य भी मात्र इतना है कि वह किसी भी तरह से अमेरिका के साथ सैन्य संधि में शामिल न हो | यदि यूक्रेन तदाशय का आश्वासन शुरुवात में ही दे देता तब शायद उसे इस तरह की विनाशलीला नहीं देखनी पड़ती | इस संकट से वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी भारी उथल – पुथल मच गई है |
अमेरिका की अगुआई में तमाम बड़ी ताकतों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों की झड़ी लगा दी | राष्ट्रपति पुतिन सहित रूसी सरकार की जो संपत्तियां विदेशों में थीं उनके साथ ही रूसी कारोबारियों की जमा राशि भी जप्त करने जैसी कार्रवाई की गई | इससे भी बड़ी बात ये हुई कि दुनिया के अधिकतर संपन्न देशों ने रूस से व्यापारिक रिश्ते पूरी तरह तोड़ लिए | इसका असर उसकी अर्थव्यवस्था पर तो हुआ ही किन्तु प्रतिबन्ध लगाने वाले देशों को भी यूक्रेन संकट से जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ रहा है |
सबसे ज्यादा हलचल मची कच्चे तेल और गैस में | इसके अलावा गेंहू की आपूर्ति पर भी इस लड़ाई का असर पड़ने लगा है क्योंकि रूस और यूक्रेन दोनों इसके बड़े उत्पादक हैं | शुरुवाती संकेतों के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी इस युद्ध का विपरीत असर होने की आशंका थी | जिस तरह कच्चे तेल के वैश्विक दाम बढ़े उसे देखते हुए भारत में घबराहट का माहौल था | ये आशंका जताई जा रही थी कि दीपावली के बाद से पेट्रोल-डीजल की जो कीमतें स्थिर रखी गईं थीं, उनका पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद जबर्दस्त तरीके से बढ़ना तय है | अनेक आर्थिक विशेषज्ञ तो 150 रु. लीटर तक की बात कर रहे थे | लेकिन चुनाव परिणाम आने के एक सप्ताह बाद भी दाम नहीं बढ़ाये गए तो इसका कारण ये है कि रूस ने भारत को इनके निर्यात के लिए जो समझौता किया उसके अनुसार उसने सस्ती दरों पर कच्चा तेल और गैस आपूर्ति के साथ परिवहन और बीमा का खर्च वहन करने की बात भी स्वीकार की है | इस सौदे की सबसे बड़ी विशेषता ये होगी कि भारत इसका भुगतान अपनी मुद्रा अर्थात रूपये में करेगा | अब तक वैश्विक व्यापार में विनिमय का आधार अमेरिकी डालर ही हुआ करता था किन्तु अमेरिकी लॉबी द्वारा रूस को विश्व व्यापार से अलग करने की जो रणनीति बनाई गई उसके कारण वह भी डालर से अलग हटकर निर्यात और आयात करने की समानांतर व्यवस्था बना रहा है, जिसका सीधा लाभ भारत को मिलना तय है | हालाँकि अमेरिका को ये सौदा नागवार गुजरा किन्तु थोड़ी सी ना– नुकुर के बाद उसने अपनी आपत्ति वापिस ले ली | सुनने में आ रहा है कि चीन ने भी सऊदी अरब से इसी तरह का समझौता किया है और वहां से खरीदे जाने वाले कच्चे तेल के लिए चीन भी अपनी मुद्रा युआन में ही भुगतान करेगा | विश्व की एक तिहाई से भी ज्यादा की जनसंख्या वाले इन दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर पूरी दुनिया की नजर है |
भारत जहां सबसे बड़ा बाजार है, वहीं चीन सबसे बड़ा उत्पादक | यदि ऐसा न होता तो अब तक अमेरिका यूक्रेन संकट में तटस्थ रहने के कारण भारत पर भी आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने में संकोच नहीं करता | इसीलिए आज की स्थिति में यूक्रेन संकट से उत्पन्न परिस्थितियों में भारत के लिए खुशखबरी भी आ रही हैं |
रूस पर लगे प्रतिबंधों का सीधा लाभ भारत को मिलने की सम्भावना बढ़ी हैं | सौभाग्य से बीते दो साल से भारत में गेंहू और चावल का रिकॉर्ड उत्पादन होने से उनका निर्यात हो रहा है | चावल के मामले में तो हमने चीन को भी पीछे छोड़ दिया है | इसके अलावा भी हमारे औद्योगिक उत्पादनों की वैश्विक बाजारों में मांग बढ़ने से निर्यातकों के अच्छे दिन आ गये हैं |
यद्यपि व्यापार घाटे से भारत अब तक नहीं उबर सका क्योंकि आयात का अनुपात निर्यात की अपेक्षा काफी ज्यादा है | लेकिन जिस तरह से दुनिया भर में भारतीय उत्पादों की मांग बढ़ रही है , वह सुखद संकेत है | इसका एक कारण कोरोना के बाद चीन की विश्वसनीयता पर आया संकट भी है | बीते कुछ दिनों के भीतर वहां कोरोना की चौथी लहर के आने से उत्पादन इकाइयां बड़ी संख्या में बंद होने से भारत के लिए निर्यात की उम्मीदें और उज्ज्वल होने लगी हैं |
यूक्रेन संकट में फंसे भारतीय छात्रों को जिस तत्परता से सरकार ने सुरक्षित निकाला उससे भी हमारी क्षमता और प्रबंध कौशल पूरे विश्व में सराहा गया | इस संकट को लेकर कुछ देशों को छोडकर जब समूची दुनिया अमेरिकी लॉबी के प्रभाव में आकर इकतरफा नजर आने लगी तब भारत ने जिस संतुलित कूटनीति का उदाहरण पेश करते हुए राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि मानकर बीच का रास्ता अपनाया, उसकी वजह से भी भारत को एक जिम्मेदार देश के तौर पर मान्यता मिली | कुल मिलकर यूक्रेन पर रूस के हमले से उत्पन्न स्थिति हमारे लिए आपदा में अवसर लेकर आई है | हालाँकि इस बारे में खुश होकर हवा में उड़ने से बचना भी जरूरी है क्योंकि ऐसे संकट में हालात कब करवट बदल लें कहना कठिन है | फिर भी जिस तरह से भारत ने अमेरिका को नाराज होने का अवसर दिए बगैर रूस को अपने पक्ष में झुकाया उसका दूरगामी फायदा न सिर्फ आर्थिक और रक्षा क्षेत्र, अपितु कूटनीतिक मंचों पर भी मिले बगैर नहीं रहेगा |
ये भी उल्लेखनीय है कि इस संकट के पीछे रूस और चीन द्वारा अमेरिकी डालर की वैश्विक वजनदारी खत्म करने की रणनीति है | ये बात समझने वाली है कि आर्थिक प्रतिबंधों को लेकर अब कोई भी देश बहुत देर तक कठोर नहीं बना रह सकता | सऊदी अरब के अलावा संयुक्त अरब अमीरात के देशों के साथ इजरायल के बढ़ते कारोबारी रिश्ते विश्व राजनीति में आ रहे लचीलेपन का प्रमाण हैं |
भारत के लिए 21 वीं सदी ऊंचाइयां छूने वाली हो सकती है , बशर्ते वह अपनी घरेलू और वैश्विक नीतियों के क्रियान्वयन में दृढ़ रवैया अपनाता रहे | मोदी सरकार के स्थायित्व को लेकर किसी भी प्रकार की शंका न रहने से भी भारत की छवि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत अच्छी है | यूक्रेन संकट के उपरान्त जिस तरह की वैश्विक व्यवस्था बनने की बात कही जाने लगी है उसमें भारत की भूमिका एक विश्व शक्ति जैसी रहेगी , इसके आसार नजर आने लगे हैं |
 लेखक – रवीन्द्र वाजपेयी