Trending Now

राम, कृष्ण, मुक्तिसंघर्ष और स्वतंत्रता

सावन और भादौं तिथि त्योहारों के महीने हैं। यह सिलसिला डिहठोन तक चलता है। इन्हीं महीनों में एक महान राष्ट्रीय पर्व पंद्रह अगस्त पड़ता है उसके आगे पीछे या कभी-कभी साथ में ही कृष्णजन्माष्टमी आती है।

मुझे दोनों ही तिथियों में एक अद्भुत साम्य दिखता है। एक पराधीनता से मुक्ति का पर्व दूसरा एक ऐसे महाविभूति का जन्मदिवस जिसने बाह्य और आंतरिक दोनों की गुलामी से मुक्ति का मार्ग दिखाया। खोजें तो दोनों तिथियों के अंतरसंबंध के सूत्र निकल आएंगे।

कृष्ण आदि स्वतंत्रता सेनानी थे। स्वाधीनता और स्वतंत्रता क्या है कृष्ण के जरिए अच्छे से समझा जा सकता। राम और कृष्ण में यही बुनियादी फर्क है। राम लक्ष्यधारी थे और कृष्ण चक्रधारी। चक्र के निशाने पर दसों दिशाएं रहती हैं एक साथ। बाण का एक सुनिश्चित लक्ष्य रहता है। इसलिए दोनों के आयुध भी अलग-अलग। एक का धनुष बाण दूजे का सुदर्शन चक्र।

Lord Rama PNG Transparent Image | PNG Mart #1457722 - PNG Images - PNGio

दोनों महाविभूति युगों से इसलिए देश के प्राण में बसे हुए हैं क्योंकि इनकी प्रासंगिकता सोते जागते प्रतिक्षण है। यदि हम गुलाम हुए हैं चाहे मुगलों के या अँग्रेज़ों के तो यह सुनिश्चित मानिए कि हमने इनको समझने में चूक की होगी इसलिए। मंदिरों में बिराजकर शंख, घडी़, घंट बजाने भर से ही इतिश्री नहीं हो जाती। इन महानविभूतियों के पराक्रम, आचरण और आदेश, उपदेश को समझना होगा।

राम का लक्ष्य साम्राज्यवाद और आतंकवाद के खिलाफ था। साम्राज्यवादी रावण के आतंकी जहां तहां थे। संघर्ष भी ऋषिसंस्कृति और रक्षसंस्कृति के बीच था। रावण अपनी दौलत और ताकत के दम पर अखिल विश्व में राक्षस संस्कृति का विस्तार कर रहा था। एक तरफ रावण तो दूसरी तरफ वशिष्ठ, विश्वामित्र, अगस्त्य।

द्वंद विध्वंसकों और सर्जकों के बीच था। ये हमारे ऋषि-मुनि उस समय के विग्यानी थे। पौरुष न हो तो विग्यान धरा रह जाता है। इन विग्यानियों ने राम को सुपात्र समझा और शस्त्र व शास्त्र की दीक्षा दी। ताड़का, सुबाहु के साथ आतंकवाद के खिलाफ वे अपना अभियान सुदूर दक्षिण दंडकारण्य ले गए। खरदूषण, त्रिसरा जैसे आतंकियों का खात्मा किया। आतंकवाद की नाभिनाल पर प्रहार करना है तो पहले उसके आजू बाजू काटने होंगे। राम ने यह काम किया और साम्राज्यवाद की प्रतीक सोने की लंका को धूल धूसरित करते हुए रावण का कुल समेत नाश किया।

राम ने सर्वसुविधायुक्त अयोध्या इसलिए छोड़ी और जंगल गए क्योंकि जिनके लिए यह काम करना है वो भी इसमें शामिल हों। बिना जनजागरण के, अंतिम छोर पर खड़े विपन्न आदमी को सशक्त किए बगैर कोई लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता। राम ने पहले निषाद, वनवासी, वानर, भालु सभी उपेक्षित और वंचित समुदाय को जागृत किया, उन्हें सशक्त बनाया फिर आत्मविश्वास भरा तब कहीं उनकी सेना को ले जाकर रावण व उसके साम्राज्य का अंत किया।

आप देखेंगे कि रामादल में वनवासी, वानर, भालू के अलावा कोई थे तो वे ऋषि मुनि थे। वे चाहते तो भरत की भी सेना आ सकती थी और जनक की भी। इंद्र तो दशरथ का ऋणी भी था कहते तो वह भी अपनी चतुरंगिणी देवसेना भेज सकता था। पर राम ने इसकी जरूरत नहीं समझी। हम जिसके लिए लड़ रहे हों वह इसमें शामिल न हो, लड़ाई का महत्व न समझे तो लडा़ई का कोई अर्थ नहीं। सरकारों की बड़ी से बड़ी योजनाएं क्यों फेल हो जाती हैं क्यों ? इसलिए कि जिनके लिए बनती हैं उन्हें न उनका महत्व मालुम न ही कोई भागीदारी।

गांधी क्यों राम को अंत समय तक भजते रहे। इसलिए कि वे अच्छे से यह जानते थे कि सफलता का मूलमन्त्र रामचरित से ही निकलता। बैरिस्टरी छोड़ी, सूटबूट को फेका फिर आमजीवन में रचबस पाए। गाँधीजी दुनिया भर में इसलिए पूज्य और महान हैं क्योंकि उन्होंने रामचरित को स्वयं में उतारने की कोशिश की। सुशासन राम का आदर्श ही ला सकता है लेकिन यह ढोल मजीरा लेकर राम राम जपने से नहीं आएगा।

बात जन्माष्टमी और स्वतंत्रता दिवस से शुरू हुई थी। कृष्ण एक मात्र ऐसे मुक्तिदाता हैंं जो आंतरिक व बाह्य गुलामी से आजाद कराते हैं। हम लोग स्वाधीनता और स्वतंत्रता को प्रायः एक अर्थ में लेते हैंं। दोनों के मायने अलग अलग हैं। अँग्रेजी में भी अलग अलग है। स्वाधीनता जैसे कि शब्द से स्पष्ट है स्व के आधीन। जब किसी पर निर्भरता न रह जाए। और स्वतंत्रता तो यह कृष्ण का ही पर्यायवाची है। जन्म के साथ ही बेडी हथकड़ी कट गई। कोई बंधन नहीं। बिल्कुल मुक्त।

स्वाधीनता और स्वतंत्रता कृष्ण कथा के माध्यम से समझिए। जन्म के बाद वे ब्रज पहुँचते हैं। कृष्ण कृषि के देवता हैं। शाब्दिक व्युत्पत्ति भी ऐसी ही है। बाल्यकाल में भी सयानापन। देखते हैं ब्रज के लोग विविध प्रकार के कर्मकांडों से बिंधे हैं। पानी के लिए इंद्र की पूजा। दूध दही और उपज की चौथ कंस के जागीरदारों को। कृष्ण ने यह बंद करा दिया।

पूजा करना ही है तो गोबर्धन को पूजिए। वहां से मवेशियों को चारा मिलता है। ब्रज का वह आश्रयदाता है। नाराज इंद्र ने भारी बारिश की। कृष्ण ने गोबर्धन उठा लिया। सभी वहीं रक्षित हुए। इंद्र हारा, ब्रजवासी जीते क्योंकि गोबर्धन पर विश्वास उनके साथ था। आप प्रकृति को अपने साथ लेकर चलेंगे तो वह आपको विपदा से बचाएगी, स्वाधीन बनाएगी।

Govardhan Puja - Imporatnce, Celebrations, Puja Vidhi In Hindi

गोबरधन गाय और उसके उत्पादों का भी प्रतीक है। कृष्ण ने ब्रज को कंस की पराधीनता से मुक्त कराया। कृष्ण ने ब्रज को बताया कि स्वतंत्रता क्या होती है। गाय बछडों को खूंटे से स्वतंत्र करिए और ब्रज वनिताओं को चूल्हाचक्की से। सभी खुली हवा में साँस लें। स्त्रीसशक्तीकरण का काम कृष्ण ने किया। नर नारी सब बराबर। द्रौपदी जैसे चरित्र की प्राणप्रतिष्ठा की, इसी चरित्र को राष्ट्रधर्म की संस्थापना का हेतु बनाया।

महाभारत गृहयुद्ध होते हुए भी मुक्ति का संग्राम था। वहाँ सत्य और धर्म गुलाम था। दुर्योधन की कौरवी सेना से स्वतंत्र करवाया। भाई, सहोदर, पितामह गुरू तमाम नात रिश्तेदारों से राष्ट्र धर्म ऊपर है अखिल विश्व को यह बताया।

जरासंघ के कैदखाने से राजाओं को छुडा़या तो नरकासुर के हरम से नारियों को। वे वहीं-वहीं गए जहाँ देखा कि यहां गुलामी है, पराधीनता है। कृष्ण का चरित्र इस सांसारिक दुनिया में स्वाधीनता और स्वतंत्रता के लिए प्रतिक्षण संघर्ष की प्रेरणा देता है। राम-कृष्ण को मंदिरों में पूजें, आरती उतारे, इससे ज्यादा बड़ी पूजा यह कि इनके चरित को, उससे निकली प्रेरणा और सीख को व्यवहारिक जीवन में उतारें। और देखें कितना चमत्कारिक बदलाव आता है आपके जीवन में, समाज और राष्ट्र में।

लेखक:- जयराम शुक्ल 
संपर्कः- 8225812813