Trending Now

“राष्ट्र पहले, हमेशा पहले”

आज देश अपनी आजादी की 76 वी वर्षगांठ मना रहा हैं। यह दिन सभी के लिए गौरव का दिन है क्योंकि इसी दिन सन 1947 में देश ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। यह दिन आजादी को प्राप्त करने के लिए दिए गए बलिदानो को याद करने और बलिदानियों को नमन करने का दिन है। यह दिन स्वयं के राष्ट्र बोध को प्रतिबद्ध कर एक राष्ट्र के रूप में अपने देश की उपलब्धियो पर गर्व कर राष्ट्र निर्माण मे अपने दायित्वों को देखने का दिन है। राष्ट्र को पहले, सबसे पहले रखने का संकल्प करने का दिन है।

वर्तमान में देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। भारत ने वैश्विक स्तर पर अपनी मजबूत स्थिति बनाई हैं। यह राष्ट्रीय पर्व हमारी एकजुटता की ताकत को दिखाता है। हम भले ही किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय भाषा के हो पर मूलतः भारतीय ही है। इतने वर्षों की यात्रा में अपने लोकतंत्र की रक्षा करते हुए हम आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिकस्तर पर बहुमुखी प्रगति की है और सतत विकास के पथ पर अग्रसर हैं। देश परमाणु ऊर्जा, विज्ञान, तकनीकी, अंतरिक्ष विज्ञान, मेडिकल आदि के क्षेत्र में बड़ी ताकत बन उभरा है। हमारे देश की चमक लगातार बढ़ रही है। आज भारत एक आत्मनिर्भर लोकतांत्रिक देश है। सुदृढ़ नेतृत्व के कारण वैश्विक मंचों पर हमें, हमारे देश को सम्मान मिला है। हमे सुना जा रहा है, हमें सराहा जा रहा है।

जब देश परतंत्र था तब आज़ादी के नायकों ने देश की आजादी हेतु अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया था। हिंदुस्तान के हर क्षेत्र में आजादी के लिए प्रयास हुए। भारत को पूर्ण स्वराज दिलाने में जिन महान स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी उनके त्याग और उत्सर्ग को नमन कर आज उनके प्रति कृतज्ञ होने का दिन है। उन्ही के कारण आज हम स्वतंत्र हैं।

आज हमारे सामने देश को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने की चुनौती है। हमें आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने की आवश्यकता है। हमें हमारी क्षमता और रचनात्मकता को, हमारे कौशल को और बढ़ाने और निखारने की आवश्यकता है ताकि हम वैश्विक फलक पर मजबूती के साथ स्थापित हो सके और हम उस दिशा में तेजी से आगे बढ़ भी रहे है।

किसी भी राष्ट्र हेतु राष्ट्रीयता की भावना अत्यावश्यक होती है जो वहां के नागरिकों के हृदय में होती है और उन्हें एकता के सूत्र में बांधती है। राष्ट्रीयता का भाव एक वैचारिक शक्ति हैं जो देश के लिए स्वाभिमान की भावना से उत्पन्न होती है और लोगों को चेतना से भर देती है। साथ ही राष्ट्र के लिए उनके दिल में सम्मान और विश्वास प्रदान करती हैं। भारतीय जनमानस अपने कर्तव्य पालन में कभी भी पीछे नहीं हटा।

हमारी संस्कृति की विशेषता ही अनेकता में एकता है। हमने अपने लोकतंत्र की रक्षा की और खुद को भी मजबूत किया। हम तेजी से दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं। इतने वर्षों में हमने बहुत कुछ पाया, बहुत कुछ कर दिखाया और अभी भी लगातार विकास के पथ पर अग्रसर है। हमें और भी बेहतर करने और विकास के नए सोपानो को तय करने की आवश्यकता है।

आज का दिन गौरव के साथ ही आत्म निरीक्षण का दिन भी है। आज हम आजाद है परंतु क्या आजादी का सही अर्थ, सही रूप में समझ पाए हैं? हमारे अपने देश के प्रति क्या फर्ज है क्या हमें पता है? हम अपने अधिकारों की बात हमेशा करते हैं पर क्या अपने दायित्वों का हमें भान हैं? समाज में कुछ लोग अपने निजी और राजनीतिक स्वार्थों के कारण हिंसा और अराजकता का माहौल बनाने में कसर नहीं छोड़ते। और हम विवेकहीन होकर ऐसे लोगो के बहकावें में आ जाते है। देश की एकता को तोड़ने हेतु आज भी जाति धर्म, भाषा जैसे हथियार है और स्वार्थी तत्व इसी जाति व धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते हैं। ये लोग हमारे संवैधानिक मूल्यों, आदर्शों को एक तरफ रख अपने हर एक जायज और नाजायज मांग बनवाना चाहते हैं। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश के संविधानिक मूल्यों से छेड़छाड़ आम बात है और इसी की आड़ में देश की शांति व सुरक्षा तक को भेदने की कोशिश होती रहती है। ऐसे ही असामाजिक तत्व देश के लोकतंत्र को चुनौती देकर अराजकता का माहौल बनाने में लगे रहते हैं।

भारतीय मनीषा की अवधारणा सदैव वसुधैव कुटुंबकम की रही है। यह वैश्विक व राष्ट्रीय दोनों ही संदर्भ में अति महत्वपूर्ण है।
आज देश आजादी का अमृत महोत्सव बना रहा है हमें उन नायकों को याद करते हुए उनकी देशभक्ति से सीख लेनी चाहिए कि वह अपनी आजादी हेतु बलिवेदी पर चढ़ गए। आज आजादी के नहीं पर देश को जाति और धर्म के नाम पर बांटने वालों के लिए हमें यह याद रखना है कि हमें भी उन नायकों की तरह मातृभूमि से प्रेम करते हुए हर एक विध्वंस कारी, विघटनकारी सोच को खत्म करना होगा। ऐसे नापाक लोगो के इरादों को, जो देश को और देशवासियों को विभिन्न कुतर्को में उलझाकर इस देश की एकता को तोड़ना चाहते है। ऐसे लोगो के मंसूबों को अपने राष्ट्बोध और राष्ट्र धर्म से कुचलना होगा। हमें बताना होगा कि हमारी पहचान हमारी सनातन संस्कृति है। हमारा संपूर्ण अनुराग हमारे राष्ट्र के प्रति है। हमे निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर राष्ट्र हेतु सोचना है। हमें अपने राष्ट्र धर्म का पालन करते हुए उन तमाम बाधाओं से पार जाना है ,उनका मुकाबला करना है जो लोकतंत्र के लिए किसी भी तरह की चुनौती है या फिर खतरा है।

आगे आने वाले वर्षों में भारत ज्ञान, विज्ञान की महाशक्ति से परिपूर्ण आत्मनिर्भर राष्ट्र होगा। आज संपूर्ण विश्व की नजरे हम पर हैं और हमें अपनी अदम्य इच्छा शक्ति के साथ इन निगाहों पर खरा उतरना है और भारत को पुनः विश्वगुरु के पद पर आसीन कर विश्व की महाशक्ति बनाना है।

जय हिंद, जय भारत

प्रोफेसर मनीषा शर्मा