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वायु प्रदूषण खतरनाक स्थिति में

वायु प्रदूषण अत्यन्त सांघातिक है। इससे सामान्य जीवन बुरी तरह से प्रभावित होता है। देश के महानगरों में आज प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ चुका है। देश की राजधानी के गैस चैंबर बनने में 43 प्रतिशत जिम्मेदारी धूल -मिट्टी और हवा में उड़ते मध्यम आकार के धूलकणों की ही है।

यहाँ की हवा को खराब में करने में गाड़ियों से निकलने वाले धुएं की 17 प्रतिशत और पैटकाॅन जैसे पेट्रो-ईंधन की 16 प्रतिशत भागीदारी है। इसके अलावा भी कई कारण है; जैसे कूड़ा जलाना इत्यादि।

बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रण करने के लिए ये सभी प्रयास नाकारा सिद्ध हो रहे हैं। एक अनुमान है कि हर साल अकेले पंजाब-हरियाणा के खेतों में कुल 3 करोड़, 50 लाख टन पराली जलाई जाती है। पराली जलाने पर सल्फरडाइ ऑक्साइड, ठोस कण, कार्बन-मोनो ऑक्साइड, कार्बनडाइ ऑक्साइड और राख निकलती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब कई करोड़ टन फसल अवशेष जलते हैं तो वायुमंडल की कितनी दुर्गति होती होगी?

हानिकारक गैसों एवं सूक्ष्मकणों से परेशान दिल्ली वालों के फेफड़ों को कुछ महिने हरियाली से उपजे प्रदूषण से भी जूझना पड़ता है। विडंबना है कि पराग कण से श्वास की बीमारी पर चर्चा कम ही होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार पराग कणों की ताकत उनके प्रोटीन और ग्लाइकाॅल प्रोटीन में निहित होती है, जो मनुष्य के बलगम के साथ मिलकर अधिक जहरीले हो जाते हैं।

ये प्रोटीन जैसे ही हमारे खून में मिलते हैं तो ये एक विशेष तरह की एलर्जी को जन्म देते हैं। यह एलर्जी इंसान को गंभीर श्वास की बीमारी की तरफ ले जाती है। चूंकि गर्मी में ओजोन परत और मध्यम आकार के धूलकणों का प्रकोप ज्यादा होता है, इसलिए पराग कणों  के शिकार लोगों के फेफड़े बहुत शीघ्र ही क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इसलिए ठंड शुरू होते ही दमा के मरीजों का दम फूलने लगता है। 

यह तो सभी जानते हैं कि मिट्टी के कण लोगों के लिए श्वास लेने में बाधक बनते हैं। मानकों के अनुसार हवा में पर्टीकुलेट मैटर यानी पीएम की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होनी चाहिए, लेकिन अभी ये खतरनाक पार्टिकल 240 के करीब पहुंच गए हैं। इसका एक बड़ा कारण विकास के नाम पर हो रहे वे अनियोजित निर्माण कार्य हैं, जिनसे असीमित धूल उड़ रही है। पीएम ज्यादा होने का परिणाम इन रूपों में सामने आता है-आँखों में जलन, फेफड़े खराब होना, अस्थमा, कैंसर और दिल के रोग होना इत्यादि।

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् अर्थात् सीएस आई आर और केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान द्वारा हाल में दिल्ली की सड़कों पर किए गए एक सर्वे से पता चला है कि सड़कों पर लगातार जाम लगने और इस कारण बड़ी संख्या में वाहनों के रेंगते रहने से गाड़ियां डेढ़ गुना ज्यादा ईंधन खपत कर रही है। अतः उतना ही अधिक जहरीला धुआँ यहां की हवा में शामिल हो रहा है। बीते मानसून के दौरान पर्याप्त बरसात होने के बावजूद दिल्ली के लोग बारीक कणों से परेशान हैं तो इसका मूल कारण विकास की वे तमाम गतिविधियाँ हैं, जो अनिवार्य सुरक्षा नियमों के बगैर ही संचालित हो रही है।

इन दिनों राजधानी के परिवेश में इतना जहर घुल रहा है, जितना दो साल में कुल मिलाकर नहीं होता। बीते 17 सालों में दिल्ली में हवा के सबसे बुरे हालात है। आज भी हर घंटे एक दिल्लीवासी वायु प्रदूषण का शिकार होकर अपनी जान गंवा रहा है। गत 5 वर्षों के दौरान दिल्ली के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एम्स में श्वास के रोगियों की संख्या 300 गुना बढ़ गई है।

एक अंतर्राष्ट्रीय शोध रिपोर्ट में यह आशंका जताई गई है कि अगर प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित नहीं किया गया तो सन 2025  तक दिल्ली में हर साल करीब 32,000 लोग जहरीली हवा के शिकार होकर असामयिक मौत के मुंह में समा जाएंगे। सनद रहे कि आंकड़ों के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली में हर घंटे एक व्यक्ति की मौत होती है। यह भी जानना जरूरी है कि एक स्वच्छ पर्यावरण का मानक अधिकतम 60 एक्यूआई यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स होना चाहिए, लेकिन दिल्ली में यह आंकड़ा एक समय 999 तक पहुँच गया था।

देश के अन्य शहरों में भी यह सामान्य स्तर से अधिक रहता है। वाहनों के धुएं में बड़ी मात्रा में हाइड्रोकार्बन होते हैं और तापमान 40 डिग्री सेल्सियम के पार होते ही ये हवा में मिलकर दूष्ज्ञित तत्वों का निर्माण करने लगते हैं। ये तत्व इंसान के लिए जानलेवा हैं। इस खतरे का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वायु प्रदूषण करीब 25 फीसद फेफड़ों के कैंसर की वजह बना हुआ है। इस खतरे पर काबू पा लेने से हर साल करीब 10 लाख लोगों की जिंदगियाँ बचाई जा सकती है।

दिल्ली और देश के दूसरे शहर में वायु प्रदूषण को और खतरनाक स्तर पर ले जाने वाले पैटकाॅन पर रोक के लिए कोई ठोस कदम न उठाना ही हालात को खराब कर रहा है। जब पेट्रो पदार्थों को रिफाइनरी में परिशोधित किया जाता है तो सबसे अंतिम उत्पाद होता है-पैटकाॅन। इसका दहन करने से कार्बन का सबसे जयादा उत्सर्जन होता है।

चूंकि इसके दाम डीजल, पेट्रोल या पीएनजी से बहुत कम होते हैं, अतः अधिकांश बड़े कारखाने अपनी भट्ठियों में इसे ही इस्तेमाल करते हैं। अनुमान है कि जितना जहर लाखों वाहनों से हवा  में मिलता है, उससे दुगना पैटकाॅन इस्तेमाल करने वाले कारखाने उगल देते हैं।

दिल्ली जैसे शहरों में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए निर्माणस्थलों पर धूल नियंत्रण, सड़कों पर जाम लगने से रोकने के साथ-साथ पानी का छिड़काव होना भी जरूरी है। इसके अलावा ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक परिवहन ढांचे को दुरूस्त बनाना, ताकि लोगों को अधिकतम सहूलियत मिल सके और वे स्वयं इसे अपनाने पर जोर दें।

इस पर भी विचार किया जाना समय की मांग है कि सार्वजनिक स्थानों पर किस तरह के पेड़ लगाए जाएं, ताकि पर्यावरण सुरक्षित एवं संरक्षित रहे। वायु प्रदूषण की रोक-थाम जनजाग्रति -अभियान से ही संभव है। हम सभी को सचे त एवं सजग रहना चाहिए। हरीतिमा-संवर्द्धन ही इसका एक सम्यक समाधान है।

वरिष्ठ लेख़क – डॉ. किशन कछवाहा
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