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वाराणसी ज्ञानवापी मंदिर का सत्य

भारतवर्ष सनातन हिंदू संस्कृति का देश है। भारत का विचार ‘वसुधैव कुटुंबकम ‘ ‘सर्वे भवंतु’ सुखिन:’ का रहा है। भारत ने दुनिया को ज्ञान-विज्ञान-दर्शन, सहिष्णुता, आध्यात्मिकता मानवीय मूल्य, ‘जीवन जीने की कला’ Art of living आदिकाल से विश्व को देता चला आ रहा है।

भारत का संस्कार और विचार महानता का होने के कारण सबको भारत ने संरक्षण, सम्मान, स्थान दिया है। जो विश्व से खदेड़ गए (यहूदी) उन्हें भी भारत में ही शरण मिली। जो भी भारत आया वह यहां की आध्यात्मिकता, विविधता, तीर्थ परंपराओं, उत्सव, त्योहारों व पवित्र व्योहार से प्रभावित होकर वह यहीं का होकर रह गया। ठीक वैसे ही जैसे गंगा में मिलकर नाले भी पुजने लगते हैं व पवित्र हो जाते हैं।

भारत के संपूर्ण विश्व को अजस्र अनुदान हैं। भारत में प्राचीन काल से अनंत ज्ञान-विज्ञान का भंडार रहा है। किन्तु भारत ने कभी पेटेंट नहीं कराया क्योंकि भारत के विचार में समस्टीगत हित की भावना है, एकाकीपन नहीं है, क्षुद्रता नहीं है। की वह पेटेंट कराकर दुनिया को लूटले। बल्कि भारत में जो भी अच्छा रहा है,उसने दुनिया को बांटा है।

भारत ने विश्व को बाजार नहीं अपना परिवार माना है। भारत ने विश्व को युद्ध नहीं बुद्ध दिया है। भारत की इसी सहजता, सरलता व सहिष्णुता का दुनिया के कुछ चालाक, लुटेरों ने गलत फायदा उठाया व दुरुपयोग किया है।

मध्यकाल में इस्लाम की आंधी ने तलवार के बल पर कुछ समय के लिए भारत के कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। हजारों मंदिरों को तोड़कर उन पर गुंबद बनाकर ऊपर से मस्जिद का रूप दे दिया। इतिहासकारों का कथन है कि भारतवर्ष की लगभग 30,000 से अधिक मंदिरों को ध्वस्त कर मस्जिद का रूप दिया गया था। उन्हीं में अयोध्या,मथुरा, काशी, विदिशा/भेलसा (मध्य प्रदेश), भोजशाला- धार मध्य प्रदेश, भटिया -शहडोल मध्य प्रदेश, त्रिपुर सुंदरी भेड़ाघाट जबलपुर मध्य प्रदेश, शोभापुर नर्मदापुर मध्य प्रदेश, रायसेन, भोपाल सागर इत्यादि के दर्जनों स्थलों व टूटे हुए मंदिरों के भग्नावशेषो को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है।

देश में मंदिरों के भग्नावशेषो के ऊपर एक वृहत शोध अनुसंधान की आवश्यकता है। तभी पूर्ण सत्य समाज के सामने आ सकेगा एवं झूठा प्रचार जो कि पिछले 75 वर्षों से दरबारी/कम्युनिस्ट इतिहासकारों की गैंग द्वारा किया जाता रहा है।

इस्लाम के खोखलेपन, बर्बरता की जो झूठी कहानी गढ़कर समाज को जो असत्य परोसा गया उसकी पोल खुल सकेगी एवं इस्लाम की बर्बरता, असहिष्णुता, अमानबीयता, अत्याचार का पर्दाफाश होगा। जो अब वर्तमान की आवश्यकता,प्रासंगिकता भी है। ऐसा लगता है कि यह इस्लाम सारी विश्व मानवता के लिए, शांति के लिए एक भयानक संकट से कुछ कम नहीं है। सारे विश्व में देखा जाए एक अनुसंधान सर्वे के अनुसार तो वैश्विक संकट की 80% प्रतिशत जिम्मेदारी इन्हीं के हिस्से में आती है । ये जिस देश में जाते हैं कुछ समय बाद उसके लिए संकट/ कहर बन जाते हैं। क्योंकि यह विचारधारा पैशाचीक, अमानवीय, अत्याचारी है। जो लूट खसोर्ट,हत्या -बलात्कार,छल- कपट, जबरन कब्जा की दुष्ट प्रवृत्ति से भरी हुई है। इसमे मानवता,सम्वेदन शीलता का पुर्णत: अभाव है।

इस्लाम में महिलाओं का कोई सम्मान व अधिकार नहीं है। उन्हें बच्चा पैदा करने की मशीन व पैर की जूती मात्र समझा जाता है। व चारदीवारी में बंद करके रखा जाता है। महिलाओं का कोई ‘हुमन राइट्स’ नहीं है।

कहा जाता है कि – “सत्य परेशान तो हो सकता है किंतु परास्त नहीं।” आज यही उक्ति वाराणसी गंगा तट पर भगवान विश्वनाथ के धाम ज्ञानवापी मंदिर के संबंध में सत्य सिद्ध होती दिखाई दे रही है। कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि राम, कृष्ण, शिव की भूमि में उन्हीं से साक्ष्य /सबूत मांगे जा रहे हैं की यही उनके आराध्य का शिव मंदिर ज्ञानवापी था। न्यायालय में गुहार /प्रार्थना लगानी पड़ रही है और सबूत /साक्ष्य उनको देना पड़ रहे हैं जो यहां के मूल नहीं,जो लुटेरों आतताईयों के वंशज हैं। जो यहां बस गए, बच गए। दुस्टों द्वारा सबूत मांगे जा रहे हैं। और कब्जा भी इन्हीं के द्वारा भारत के अनेकों (हजारों) धार्मिक स्थलों पर किया गया है। बड़ी विडंबना है।

इस देश के समाज के साथ कि जो सज्जन है उन्हीं से सबूत मांगे जाते हैं। उन्हीं को परेशान किया जाता है। धिक्कार है ऐसी हिंदू सहिष्णुता को!!  हमारे घर में हमारी वस्तु को छीन कर हम से ही सबूत की मांग और आप सिद्ध कीजिए कि यह वस्तु आपकी ही है। गजब का सहनशील भारतीय समाज है भाई सहनशीलता में भी ‘वर्ल्ड रिकॉर्ड’ बना रहा है समाज । जबकि होना यह चाहिए था कि जिन्होंने जबरन कब्जा किया हुआ है। उन्हें इस बात के लिए प्राणदंड दिया जाना चाहिए कि तुमने चोरी तो की किंतु सीनाजोरी क्योंकि।

अतः गलती का पश्चाताप ना करके छल -छिद्र, झूठ- प्रपंच करके मंदिर को कब्जा किया व भक्तों को नहीं सौंपा व पूजा इत्यादि में विघ्न पैदा किया। अतः तुम सभी अब दंड के पात्र हो और अब यह दंड तो तुम्हे भुगतना ही होगा। एक इतिहास बन जाना चाहिए ताकि और फिर कोई ऐसा अन्याय करने का विचार भी मन में ना लाएं।

पौराणिक, साहित्यक साक्ष्य है कि भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में काशी-बनारस में भगवान विश्वनाथ ज्ञानवापी मंदिर में गंगा तट पर विराजमान है हजारों सालों से । किंतु मध्यकाल में इस्लाम की आंधी ने भारत के मानबिंदु माने जाने वाले मंदिरों को ध्वस्त किया व उसी के भग्नावशेषों के ऊपर मस्जिद बना दी। ऐसा ही एक प्रपंच बनारस में शंकर जी के मंदिर ज्ञानवापी के साथ भी हुआ। काल के प्रवाह में सत्ताये आती हैं- जाती हैं। राजा- रजवाड़े बदलते हैं। कभी असुर तो कभी देवों का राज स्थापित होता है। सृस्टि का भी यही नियम अटल है कि- ‘ हर रात की सुबह होती है।’ दूध का दूध और पानी का पानी होता है।’

अतः सत्य सामने आता है वह प्रतिष्ठित भी होती है और असत्य की कलई खुलती है। आज काशी ज्ञानवापी मंदिर के साथ भी ऐसा ही कुछ घटनाक्रम घट रहा है। सैकड़ों साक्ष्य हकीकत की पुष्टि कर रहे हैं और अर्केलाजीकल साक्ष्य भी स्पष्ट रूप से प्रमाणित कर रहे हैं कि यंहा मस्जिद नहीं वरन एक प्राचीन शिव मंदिर है।

नंदी का मुख मस्जिद की ओर करके प्रतीक्षा में बैठे होना एक बड़ा साक्ष्य है। ज्ञानवापी शब्द स्वयं बड़ा साक्ष्य क्योंकि इस्लाम में इस शब्द का कोई अस्तित्व नहीं है। यह संस्कृत -हिंदी भाषा का शब्द है क्योंकि शिव अनादि व कल्याणकारी, ज्ञान के अनादि स्रोत हैं अतः ज्ञानवापी का अर्थ स्पष्ट हो जाता है।

मंदिर की बाहरी दीवारों पर बने दृश्य,देवी- देवताओं की मूर्तियां, हिंदू पद्धति से बनी दीवार पुख्ता सबूत है मंदिर के अंदर तहखाने इसे हिंदू धर्म में गर्भग्रह कहा जाता है। इसमें शिवलिंग को जमीन से कुछ नीचे स्थापित किया जाता है। जो गर्भगृह कहलाता है जरा बताइए ‘गर्भग्रह’ का कांसेप्ट इस्लाम की किसी मस्जिद में है क्या? अरे झूठ को छुपाने कितने हजार झूठ बोलोगे भाई!! नीचे मंदिर का ढांचा अलग है व ऊपर का गुंबद अलग है। कार्बन डेटिंग से दोनों स्पष्ट हो जाएंगे

मंदिर के अंदर अनेकों साक्ष्य मौजूद है शिव मंदिर होने के। सभी प्रकार के स्रोतों साहित्यिक व पुरातात्विक एवं भारत में जनता जनार्दन के मत को भी एक बड़ा साक्ष्य/प्रमाण माना जाता है प्राचीन काल से।

भारत के हिंदू समाज के पास अनेकों चित्र आज भी मौजूद हैं इस ज्ञानवापी मंदिर के पूर्व काल के जब यह अपने मूल भव्य स्वरूप में स्थित था। जो प्रमाणित कर रहे हैं कि यही वह ज्ञानवापी शिव मंदिर है भगवान विश्वनाथ का। सर्वेदल ने भी संकेत किया है की अनेकों साक्ष्य हैं मंदिर के मौजूद होने का। अभी कुछ दिन में अयोध्या जी की तरह यह भी प्रमाणित/ सिद्ध हो जाएगा न्यायालय में कि यह ज्ञानवापी शिवमंदिर ही है।

किंतु प्रश्न यह है कि आजादी के 75 वर्ष बाद भी कौन हिंदुस्तान में छल -प्रपंच कर रहा है? व सत्य को प्रकट नहीं होने दे रहा है। कौन सत्य को दबा रहा है? कौन असत्य के साथ है? उन्हें पहचानना होगा व उन्हें जड़-मूल से समाप्त करके भारतीय समाज व संस्कृति की रक्षा का दायित्व अब हमारा ही है।

‘सत्यमेव जयते’ के लिए देश के हिंदू समाज को शक्तिशाली बनना होगा। क्योंकि इतिहास का सत्य यही है कि- सत्य व असत्य का अंतिम निर्णय शक्ति से ही होता है। शक्ति के अभाव में सत्य अनेकों बार प्रताड़ित होता है। व प्रतिष्ठित नहीं हो पाता है। तब हमें इस तथ्य को सदैव स्मरण रखना होगा। तभी राष्ट्र व विश्व का भविष्य उज्जवल होगा।

लेखक – डॉ नितिन सहारिया
संपर्क सूत्र – 8720857296