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“विवाह और सृष्टि के आरंभ की रात्रि : महाशिवरात्रि”

ॐ नमः शिवाय
जय बड़ा देव

महाशिवरात्रि महापर्व केवल शिव-पार्वती का विवाह ही नहीं वरन् सृष्टि के आरंभ की रात्रि है। अहोरात्र! महाशिवरात्रि! वस्तुतः आदि शक्ति का एकाकार स्वरूप, अर्धनारीश्वर के रूप में अभिव्यक्त, दो स्वरूपों में पृथक-प्रेम -फिर मिलन का संदेश दर्शन है, पुन: एकाकार हो जाना..यही तो जीवन का रहस्य है..यही सत्य है..यही सुंदर है.. यही शिव है। इसीलिये सनातन धर्म शाश्वत है।

दुनिया में विविध धर्म हैं, परन्तु शायद ही इनके अधिष्ठाताओं ने नारी शक्ति को अभिव्यक्त किया हो। शक्ति के दो स्वरूपों के मधुर मिलन की रात्रि पर विश्व कल्याण निहित है। वहीं दूसरी ओर जनजातीय अवधारणा-जय सेवा. जय बड़ा देव. जोहार. सेवा जोहार-का मूल-कोयापुनेम (मानव धर्म और प्रकृति की शाश्वतता) में निहित है,जो “वसुधैव कुटुम्बकम्” के रुप में भारतीय संस्कृति में शिरोधार्य है.।

विश्व में भारत से ही जनजाति समाज का आरंभ हुआ और उनके हमारे आदि देव एक ही हैं, अर्थात् अद्वैत है। हमारा मूल एक ही है (इसलिए बाँटने की कोशिश की सफलीभूत नहीं होगी)। “शम्भू महादेव दूसरे शब्दों में शम्भू शेक (महादेव की 88 पीढ़ियों का उल्लेख मिलता है – प्रथम..शंभू-मूला, द्वितीय-शंभू-गौरा और अंतिम शंभू-पार्वती) ही हैं” शंभू मादाव (अपभ्रंश – महादेव) ही हैं।

महाशिवरात्रि को सृष्टि का आरंभ (सृष्टि दिवस) – प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, उर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ लिंग से – अवतरण आज से ही हुआ है। सांकेतिक चित्र से स्पस्ट है कि इसी सिद्धांत से विश्व के निर्माण की Big Bang theory का जन्म हुआ – तथा डमरु से दोलन सिद्धांत का। (Pulsating theory) की पुष्टि – शिव ही सृष्टि है, शिव में ही सृष्टि है! सांकेतिक चित्र में संयोजन कर ऋग्वेद की सृष्टि के सृजन के रहस्य को साकार करने का प्रयत्न किया है..

“सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत् भी नहीं, अंतरिक्ष भी नहीं था, आकाश भी नहीं, छिपा था क्या कहाँ, किसने देखा था, उस पल तो अगम, अटल जल भी कहाँ था” (Neither nor being nor being was as yet..neither was airy space.. Nor heavens beyond what was enveloped? and wear? Sheltered by whom and was there water?).. सृष्टि का कौन है कर्ता..कर्ता है व अकर्ता..ऊँचे आकाश में रहता.. सदा अध्यक्ष बना रहता..वही सचमुच में जानता.. या नहीं भी जानता.. है किसी को नहीं पता.. नहीं है पता.. (Bottomless, unfathomed? Neither was there death nor immortality, nor was there any sign Then of night or day,totally windless, by itself, the breathed).. वो था हिरण्यगर्भ सृष्टि से पहले विद्यमान.. वही तो सारे भूत जगत का स्वामी महान्.. जो है अस्तित्व में धरती आसमान धारण कर.. ऐंसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर (Beyond that, indeed nothing whatever was. In the principle darkness cocealed darkness, Undifferentiated surge was this whole world,the pregnant point covered by the form matrix).. जिस के बल पर तेजोमय है अम्बर, पृथ्वी हरी भरी स्थापित स्थिर, स्वर्ग और सूरज भी स्थिर..गर्भ में अपने अग्नि धारण कर पैदा कर.. व्यापा था जल इधर-उधर नीचे ऊपर.. जगा चुके वो एकमेव प्राण बनकर.. किस देवता की उपासना करें हवि देकर… ओऽम! सृष्टि निर्माता स्वर्ग रचियता.. पूर्वज रक्षा कर.. सत्य धर्म पालक अतुल जल नियामक रक्षा कर.. फैली हैं दिशायें बाहू जैंसी उसकी सब में सब पर.. ऐंसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर..( from conscios forvor mightily, brought forth the one, In the principle there upon rose desire, which of consiousness was the, primeval seed, Then the wise searching within their hearts, perceived that in nor being lay the bond of being stretched, crosswise was their line a ray of glory, was there a below? And was there an above? There were sowers of seeds and forces of might.. Potency from beneath and from on high the will,.. Who really knows, who could here proclaim whence this creation flows, where is its origin? With this great surge the gods made their appearance, who therefore knows form where it did arise? This Flow of creation, from where it did arise whether it was ordered or was not, He the observer in the highest heaven, He alone knows unless, He knows it not) ऐंसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर..

“ऐंसे ही देवता की उपासना करें हवि देकर” का तात्पर्य वस्तुतः शिव से ही है तब यही था..शिवलिंग.. यहीं हिरण्यगर्भ से सृष्टि का निर्माण हुआ। विश्व (Universe) के निर्माण का मूलाधार शिवलिंग है।

महाशिवरात्रि महापर्व की अनंत कोटि शुभकामनाएं।

लेखक:- डॉ. आनंद सिंह राणा