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विश्वव्यापी राम / 10

मंगोलिया

मनुस्मृति एवं महाभारत के माध्यम से प्रमाणित होता है कि कई जातियां जिसमें किरात लोग भी ब्राह्मणों के ज्ञान को ना जानकर पतित क्षत्रिय हो गए थे। किरात लोग दो भागों में बंट गए थे, एक दल बलूचिस्तान में जाकर बसा और दूसरा नेपाल क्षेत्र में जाकर बसा। नेपाल में जितने भी क्षत्रिय बसते हैं वे सब रामचंद्र के वंशज सूर्यवंशी हैं। नेपाल में एक चपटी चेहरे वाली ‘मंगोलियन’ जाती भी रहती है। यह जाती अति प्राचीन काल से आर्यों की ही एक शाखा थी; परंतु वह बहुत समय पूर्व आर्यों से प्रथक होकर चीना नामक हिमालय के उत्तर की ओर वाली गहराई में बस गई थी। कालांतर में यह लोग अल्ताई (इलावर्त वर्ष) क्षेत्र में बस गए इसलिए अब इनकी आकार, रंग और भाषा में बहुत अंतर आ गया है। अत: अनेक विद्वानों ने इस ‘किरात’ जाति को ही ‘मंगोल’ जाती माना है।
वायुपुराण- 34/29 में वर्णन आता है कि- भारतवर्ष के पूर्व में किरात, पश्चिम में यवन रहते हैं।

“पूर्वे किराता हास्यान्ते पश्चिमे यवना: स्मृता:।”

विष्णु पुराण के अनुसार प्रियव्रत ने समस्त पृथ्वी के सात द्वीपों को अपने सात पुत्रों में बांट दिया। जिसमें जम्बूद्वीप ‘आग्निघ’ को दिया। आग्निघ ने 9 विभाग कर अपने नौ पुत्रों को दिया। इसमें इलाव्रत नाम के पुत्र को ‘इलाव्रत वर्ष’ दिया ।

इलावृताय पृदद्दौ मेरुर्यत्र तु मध्यम:।
नीलाचलाश्रितं वर्ष रम्याय प्रददौ पिता ।।

उक्त प्रमाणो से यह सिद्ध होता है कि ‘इलावृत क्षेत्र’ जिसे अब ‘मंगोलिया’ कहते हैं। पूर्व में भारत के ‘आर्यों’ द्वारा ही बसाया हुआ था।

भारतीय देवताओं की तथा बुद्ध भगवान की सहस्त्रों प्रतिमाएं उस क्षेत्र में उपलब्ध हुई हैं। रूस के पुरातत्व वेत्ता और संस्कृत विद्वान ‘श्चवार्त्की’ मंगोलिया को आठवीं सदी का भारत कहा करते थे। मंगोलिया के छोटे देहातों में रामचरित्र, कृष्ण चरित्र, विक्रमादित्य, राजा भोज आदि की कथा- गाथाएं रुचि पूर्वक कहीं और सुनी जाती हैं । उस देश में साम्यवाद को पहुंचे प्राय आधि शताब्दी होने को आती है इतने पर भी वहां के नागरिकों में धर्म श्रद्धा पहले की भांति ही अक्षुन्य बनी हुई है।

मंगोलिया के राष्ट्रपति का नाम ‘शंभू’, राष्ट्रध्वज का नाम ‘स्वयंभू’ व प्रधान नदी का नाम “दारू गंगा” है । वैज्ञानिक जो सर्वप्रथम अंतरिक्ष में गया उसका नाम ‘गोरक्ष’ था। कुछ के नाम किर्ति, कुसली, कुमुद, कुबेर, सुमेर, जय, बज्रपाणि, रत्ना, अमृता, इंद्रि आदि हैं।

मंगोलिया में मांगलिक अवसरों पर कलश की स्थापना, स्वास्तिक बनाना, शंख, चक्र और पद्द का चित्रण, घृत दीप एवं धूपबत्ती का जलाना अभी भी प्रचलित है। इन प्रथाओं को वहां पर भूतकाल में हिंदू धर्म की प्रतिस्ठापन का अवशेष ही माना जाता है। देव प्रतिमाएं जहां भी मौजूद हैं, उनमें हिंदू देवताओं की ही मूल झांकी देखी जा सकती है। यहां प्रत्येक घर में  ‘विश्व देवता’ (विश्वेदेव:) की उपासना होती है। किसी भी बौद्ध विहार में लामाओं का महाकाल का स्त्रोत पाठ करते सुना जा सकता है।

प्रसिद्ध संगीतकार आचार्य बृहस्पति 1968 में हंगरी, रूस, मंगोलिया की यात्रा पर गए। अपने अनुभव कथन में वह कहते हैं कि- “हमें मंगोलिया के लोक संगीत पर आश्रित एक कार्यक्रम बहुत अच्छा लगा, अनेक लोकगीतों में भारतीय स्वरावलियों और छंदो का प्रयोग हो रहा था।…. रागों के अलाप की प्रथा, भारत की भांति मंगोलिया में भी है। राष्ट्रीय वादन – वन्द में हमें भोपाली, धानी, मालकोंस, मेघ और दुर्गा के दर्शन मंगोलिया में भी हुए।”
उपरोक्त प्रमाणों से यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन काल से मंगोलिया भारत का ही एक अंग रहा है।

चीन

इतिहास विद पं रघुनंदन शर्मा के अनुसार- ” आर्यावर्त के प्रारंभिक काल में ही कुछ लोग पतित होकर नीचे दर्ज के हो गए और हिमालय के नीचे चीना गहराई में जा बसे थे । सामोपेडिक भाषा जो चीन देशांतर्गत पेंतीस और ओब नदियों के किनारे पर बसने वालों में बोली जाती है। उसमें आर्य भाषाओं की तरह तीन वचन और आठ विभक्तियां हैं। इससे पाया जाता है कि चीन में बसने वाले मूल पुरुष ‘आर्य’ ही थे।”

हरिवंश पुराण के अनुसार -महाराजा मनु के चंद्रवंश में ययाति के पुत्र ‘यदु ‘ हुए हैं, उनके एक पौत्र ‘हय’ नाम के हुए। चीनी लोग इसी ‘हय’ को ‘हू’ या ‘यु ‘ कहते हैं और अपना पूर्वज मानते हैं।
चीनियों के आदि पुरुष के विषय में प्रसिद्ध विद्वान यान्गत्साई ने सन 1558 में एक ग्रंथ लिखा था। इस ग्रंथ को सन 1776 में हूया नामी विद्वान ने फिर संपादित किया , इस पुस्तक का पादरी क्लार्क ने अनुवाद किया है उसमें लिखा है कि- ” अत्यंत प्राचीन काल में भारत के मो लो ची राज्य का आह यु नामक राजकुमार यूनंंन प्रांत में आया। इसके पुत्र का नाम ती भोगन्गे था। उसके 9 पुत्र हुए। उन्हीं के संतति विस्तार से समस्त चीनियों की वृद्धि हुई है।”

मनुस्मृति 10/44 में भी यह बताया गया है कि- “पौंड्रक , ओड्र, द्रविड़ ,काम्बोज, यवन ,शक , पारद, पल्लव ,चीन ,किरात व दरद पहले क्षत्रिय जातियां ही थी परंतु ब्राह्मणों के द्वारा दिए गए ज्ञान को ना ग्रहण करने के कारण धीरे-धीरे अज्ञानता को प्राप्त हो गई ।”

महाभारत में भी मनुस्मृति कि उक्त बात को ही दोहराया गया है।

“यवना: किरातागान्धाराश्चीना: शबरबर्बरा:।
ब्रम्हाक्षत्रप्रसूताश्च वेश्या: शूद्राश्चमानवा:।।”

अथार्थ- यवन, किरात, चीन, शबर, बर्बर, शक, तुषार, कड़क, पहलव, आंध्र, मद्रक, ओड, पुलिंद, रमठ, काच और म्लेच्छ लोग ब्राह्मण और क्षत्रियों की संतान हैं, वैश्य और शूद्र लोग भी हैं।

बाल्मीकि रामायण में सुग्रीव द्वारा चीन देश के क्षेत्र को रेशम के कीड़ों की उत्पत्ति वाले देश के रूप में इंगित किया गया है। चीन के लोग युधिष्ठिर की राज्यसभा में भेंट लेकर उपस्थित हुए थे। उल्लेखनीय है कि उसी राजा को भेंट दी जाती है, जिसके अंतर्गत उनका राज्य होता है।

चीन पर भारतीय संस्कृति की छाप आज भी गहरी है। चीन देश भारतीय ‘स्वास्तिक’ से भरपूर है। चीन में आज से 12234 वर्ष पूर्व मनुस्मृति उपलब्ध थी, उसकी एक पांडुलिपि भी प्राप्त हुई है। चीन के ‘क्वन्जोहू’ (पोर्ट सिटी ऑफ चाइना) में चतुर्भुज विष्णु भगवान की मूर्ति प्राप्त हुई है ।

आचार्य रामदेव जी ने भारतीय शास्त्रों व चीनी पुस्तक The texts of Taoism, by kwang ze Translated by James Legge, London, 1879 मे उल्लेलिखित समान धार्मिक मान्यताओं जैसे- आत्मा का स्वरूप, योग और प्राणायाम, निष्काम कर्म, पुनर्जन्म, कर्म का सिद्धांत और जगत उत्पत्ति आदि में समानता सिद्ध की है। उक्त से यह पुनः स्पष्ट होता है कि चीन देश वृहत्तर भारत का ही भाग रहा था।

चीन के ‘शिन्जियांग’ प्रांत में ‘किजिल’ नामक गुफाएं हैं, जिन्हे बुद्ध की गुफाएं भी कहा जाता है। इन गुफाओं में भगवान शिव, पार्वती व गरुड़ आदि हिंदू देवताओं की पेंटिंग पाई गई है जिन्हें छठी शताब्दी पूर्व का बताया जाता है।

चीन के विद्वान एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे परंतु चीनी जनता बहुदेववादी थी। यहां के लोग प्रकृति की उपासना करते थे। अपने पूर्वजों-पितरों को पूजते थे, उनको प्रसन्न करने के लिए वह यज्ञ करते थे। किंतु कालांतर में चीन में साम्यवाद प्रवेश कर गया और धीरे-धीरे स्थिति बदलती चली गई।

चीनी भाषा संस्कृत भाषा से बहुत मिलती है। जिसे संस्कृत भाषा में ‘स्थान’ कहते हैं चीनी में उसे ‘तान’, ‘श्री’ को ‘शिर’, ‘ज्योतिस्थान’ को ‘जितान’, ‘जन’ को ‘जिन’, ‘लिंग’ को ‘लंग’, ‘अंबा’ को ‘मां’, ‘जनस्थान’ को ‘जिनतान’, ‘होम’ को ‘घोम’ कहते हैं।

उक्त प्रमाणो से यह स्पष्ट होता है कि चीन देश को भारत से गए हुए ‘आर्यों’ ने ही आबाद किया था। प्राचीन काल में चीन सांस्कृतिक भारत का एक अंग रहा है।

क्रमशः …

– डॉ. नितिन सहारिया