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विश्वव्यापी राम / 4

(RAM in every particle of the world)

प्राचीन काल में संपूर्ण विश्व में एक ही सनातन -हिंदू -राम की संस्कृति व्याप्त थी। जिनके हजारों भौतिक साक्ष्य आज संपूर्ण विश्व में प्राप्त हो रहे हैं। भारतवर्ष प्राचीन काल से इतिहास के अनेकों कॉल खंडो में जगतगुरु- विश्वगुरु रहा है। भारत की आध्यात्मिक विरासत ने संपूर्ण विश्व मानवता को अपने अजस्र अनुदानों से आप्लावित/सिंचित किया था। संपूर्ण विश्व से लोग ज्ञान अर्जन करने भारत आते रहे हैं। हेंसान्ग, इत्सिंग, शुन्गयुन, टालेमी, निकोलो, कोन्टी, अब्दुल रज्जाक, अलबरूनी, इब्नबतूता, मेगास्थनीज इत्यादि सैकड़ो विद्यार्थी, ज्ञान पिपासु, यात्री विश्व से भारत आते रहे हैं। भारत की सांस्कृतिक ज्ञान परंपरा ने संपूर्ण विश्व को “जीवन जीने की कला” Art of living का अजस्र अनुदान दिया। इस तथ्य व सत्य को अब संपूर्ण विश्व स्वीकार कर रहा है। यही वर्तमान का अद्भुत व्यावहारिक सनातन सत्य है।

प्रख्यात इतिहास विद डॉ. अखिलेश चंद्र शर्मा अपने ग्रंथ “विश्व सभ्यताओं का जनक भारत” में लिखते हैं कि- “जर्मन विद्वान मैक्समूलर स्वीकार करते हैं कि आर्य सभ्यता को हमें विशाल रूप में ग्रहण करना चाहिए क्योंकि हिंदू, पर्शियन, यूनानी, रोमन ,स्टालाब ,केल्ट तथा ट्यूटन जातियां सभी इस आर्य जाति से संबंधित हैं। संसार की जितनी भी गणमान्य सभ्यताएं हैं, सभी आर्य सभ्यता की अंग हैं।”

अत: अनेकों साक्ष्यों/प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि विश्व की सभी सभ्यताओं को भारतीय आर्यों ने ही बसाया था।
एक शोध ‘वैश्विक राम’ में पाया गया है कि- राम व रामायण संपूर्ण विश्व के सातों दीपों व प्रत्येक देश में व्याप्त हैं। यह सारा संसार राम मय ही है। ऐसे ही दुनिया के न जाने कितने देश हैं, कितने छोर हैं, जहां की आस्था में या अतीत में राम किसी न किसी रूप में रचे-बसे हैं। राम से बाहर कुछ भी नहीं है। अतः राम दरबार यह जग सारा।

श्याम देश थाईलैंड का नामकरण ही श्री कृष्ण के नाम पर द्वारावती श्री कृष्ण की नगरी द्वारका के नाम पर रखा गया है। थाई जाति के कारण ही इस देश को वर्तमान में थाईलैंड कहा जाता है। श्याम देश के अलग-अलग क्षेत्र के राजा तथा राज्यों के नाम भी भारतीय नाम की तरह ही रहे हैं।

सुखोदय स्थान का प्रथम राजा सन 1218 ईस्वी में इंद्रादित्य था। द्वितीय शासक बान मुराण तृतीय राम खामखेड था। सन 1355 ईस्वी में सूर्यवंश राम राजा बना। यह हृदयराज, श्रीधर्मराज, श्रीधार्मिक तथा राजाधिराज आदि कई नाम से प्रसिद्ध रहा। वह दयावान, ज्योतिष विद्या का ज्ञाता, धार्मिक रुचि, ब्राह्मणों का आदर करता था। उसने जहां बुद्ध की मूर्तियां व स्तंभ स्थापित कराए वहीं परमेश्वर और विष्णु पर भी भेंट चढ़ाई।

सूर्यवंश राम के समय में ‘रामाधिपति’ ने अयोध्या नामक नया नगर बसाया, इसका प्राचीन नाम द्वारावती था। उसके बाद राजाराम, वर्धिराज, महामहिंद, इंद्रराज आदि भारतीय राजा होते रहे। बैंकॉक स्थित राजकीय बौद्ध मंदिर की दीवारों पर पूरी रामायण का चित्रांकन बड़ी ही सुंदरता एवं भव्यता से किया हुआ देखा जा सकता है। बैंकॉक का म्यूजियम भारतीय देवी -देवताओं की मूर्तियों से भरा पड़ा है। यहां पर कामदेव, यम, गणेश, गरुड़ पर विराजमान विष्णु, नंदी पर आरूढ़ शिव आदि भारती देवताओं की समान रूप से मूर्तियां, चित्र तथा भित्ति चित्रांकन यत्र-तत्र देखने को मिल जाते हैं। श्याम देश की रामायण (रामकियेन) ग्रंथ बहुत ही प्रसिद्ध है इसके अनुसार यहां के समाज के लिए भगवान विष्णु नारायण हैं और श्रीराम नारायण के अवतार हैं।

कलाकारों के लिए नारद जी सर्वाधिक पूज्य देवता हैं श्याम देश में ब्रह्मा जी को चतुर्मुखी माना जाता है। श्याम देश में भी सुमेरु पर्वत को ब्रह्मांड का केंद्र बिंदु माना जाता है। पीपल वृक्ष की बहुत मान्यता है। बट वृक्ष व कमल के फूल को पवित्र समझा जाता है। धरती को माता के रूप में पूजा करने की परंपरा है। बच्चों का यज्ञोपवीत संस्कार कराया जाता है। राज्यारोहण की परंपरा, विधि भी भारतीय है। श्यामी भाषा के अधिकांश अक्षर व शब्द पाली और संस्कृति से लिए हुए हैं। पर उनका उच्चारण थोड़ा सा अलग है।

इतिहासविद्द भिक्षु चमन लाल कहते हैं कि- “अब से 50 वर्ष पूर्व तक श्यामी देशवासियों की वेशभूषा में भारतीयों का ही अनुसरण किया जाता था। पुरुष धोती और महिलाएं साड़ियां पहनती थी।”

डॉ. शरद हेबालकर अपने ग्रंथ “भारतीय संस्कृति का विश्व संचार” में लिखते हैं कि- श्याम देश (थाईलैंड) की सीमाएं चीन के दक्षिणी भाग में स्थित नानचाओ प्रदेश से लगी हैं। किसी समय इसे भी गांधार कहा जाता था। यहीं पर यूनान नामक प्रांत भी है। जिसका पुराना नाम विदेह राज्य तथा उसकी राजधानी मिथिला थी। 13वीं शताब्दी में चीन के मंगोल सम्राट कुबलाई खाँ ने इन क्षेत्रों पर आक्रमण किया, तो यहां के लोग पलायन कर वर्तमान वर्मा, श्याम और लॉओस में बस गए।

आगे चलकर श्याम तथा कंबोज साम्राज्य में भारी विद्रोह हुआ, जिसमें ‘छाओ चक्री’ नमक वीर योद्धा ने सब विरोधियों को परास्त कर शांति स्थापित की। राज्याभिषेक के समय उसने इंदिरादित्य उपाधि धारण की तथा अपनी राजधानी का नाम सुखोदय रखा। आगे चलकर उसका पुत्र राम कामेंग राजा बना और उसने धर्मराज की उपाधि धारण की। उसके शासन में श्यामी भाषा, लिपि तथा संस्कृति का पर्याप्त विस्तार हुआ।

श्याम देश के पश्चिमी अंचल में विक्रम संवत 1400 के लगभग रामाधिपति उपाधिधारी राजा ने अपनी राजधानी अयोध्या बसाई। यह सभी राजा बौद्ध मत को मानने वाले थे परंतु भगवान विष्णु एवं शंकर के प्रति भी भक्ति एवं अनुराग रखते थे। इसी कारण श्याम देश में वैदिक देवी-देवताओं के मंदिर भी बड़ी संख्या में मिलते हैं। इन्होंने प्रशासन के कुशल संचालन हेतु मनुस्मृति को ही आधार बनाया था। श्याम देश का राष्ट्रीय ग्रंथ आज भी बाल्मीकि रामायण (रामकियेन) ही है। थाई जनता ने अनेक विदेशी एवं विधर्मी आक्रमणों के बाद भी अब तक हिंदू संस्कृति को अक्षुण्य बनाए रखा है।

बैंकॉक नाम यह बरनगर का भ्रष्ट थाई उच्चारण है। इसकी औपचारिक उपाधियाँ हैं- कुड्ंदेव महानगर अमररत्नकोशिंद्र महिंद्रायुध्या महातिलकभा नवरत्नपुरीराजधानी पुरीरम्या उत्तमवरा राजनिवेशन महास्थान।”

थाईलैंड में रामायण के पात्रों के नाम इस प्रकार से पुकारे जाते हैं- राम -राम, सीता-सीदा,लक्ष्मण-लक, बाली-पाली, दसरथ – थोत्स्त्रोत,जटायु-सदायु, मारीच -मारित, सूर्पनखा-सुपन मच्छा, मेघनाथ – इंद्रचित,सरयू नदी-फरयू नदी के नाम से सम्बोधन किया जाता है।

इस युग के सबसे बड़े लेखक,अध्यात्मवेत्ता, युगऋषि, वेदमूर्ति, तपोनिस्ट पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी अपने युग साहित्य में लिखते हैं कि –
“थाईलैंड के ‘फ्राईसुवन’ की खुदाई में भगवान राम की मूर्ति मिली है। बस के टिकटो तक पर राम के चित्र छपी रहती है। थाई मुद्रा में राम का चित्र छपा हुआ है। बैंकॉक के राष्ट्रीय संग्रहालय के बाहर धनुषधारी राम की विशाल मूर्ति खड़ी हुई है। और राष्ट्रीय संग्रहालय के बाहर वैसी ही विशालकाय गणेश प्रतिमा स्थापित है। कुछ सरकारी विभागों का राज्य चिन्ह गणेश है। कला विभाग के द्वार पर विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित है। थाईलैंड कि लवपुरी में हनुमान की मूर्तियों की भरमार है और बौद्ध शिक्षाओं की तरह ही वहां रामायण कथा भी लोकप्रिय है।”

“रामायण की नृत्य नाटिकाएं उस देश में प्रत्येक पर्व उत्सव पर होती रहती हैं। उसमें राज परिवार के तथा उच्च स्तर के लोग अभिनय करते हैं। जनता उन में बहुत रस लेती है। रामचरित्र वहां बच्चे -बच्चे को याद है। वहां वह बहुत ही लोकप्रिय है। फ्रॉकियो मंदिर की दीवारों पर रामायण कथानक के भित्ति चित्र बने हैं। थाईलैंड के प्राचीन साहित्य में भारतीय कथा -पुराणौ का छाया अनुवाद ही भरा पड़ा है।”

“थाईलैंड के दर्शनीय स्थलों में अयोध्या, लवपुरी, विष्णुलोक, समुद्र प्रकरण, प्रथम नगर विशेष रूप में आकर्षित करते हैं। थाईलैंड उच्च न्यायालय के सामने गंगाधर महादेव की और आकाशवाणी केंद्र के मुख्य द्वार पर वीणा-पाणि सरस्वती की विशालकाय प्रतिमा स्थापित है। मापमारबम यह उपलब्ध शिलालेख भी उस देश पर भारतीय संस्कृति का वर्चस्व प्रमाणित करते हैं।”

“थाईलैंड का राजवंश अपने को ‘राम’ का वंशज मानता है और उसे वहां रामाधिपति कहकर पुकारा जाता है। सन 1350 में वहां का शासक ‘राम’ नाम से विख्यात था। उसने अयोध्या नामक राज्य की स्थापना की व आयोध्या नगरी वसाई थी। वहां के राज मंदिर की दीवारों पर रामायण की कथाएं खुदी हुई हैं। उत्तरी थाईलैंड में लवकुश पुरी नामक नगर अभी भी विद्यमान है।”

“थाईलैंड के राजकीय संग्रहालय के द्वार पर धनुषधारी राम की विशाल प्रतिमा खड़ी है। इस देश के संग्रहालय में शेषसायी विष्णु, शिवलिंग, ऋषि प्रतिमाएं कितनी ही आकार- प्रकार की विद्यमान हैं। थाईलैंड मैं सन 1911 से 1926 तक ‘बाजीरा बुध’ नामक राजा रहा। इसे भी ‘राम’ की उपाधि प्राप्त थी। यह श्याम की शासन परंपरा में छठा राम था। श्याम देश में 13वीं सदी तक प्रमुखता ब्राह्मण/सनातन धर्म की ही रही। राजा धर्माशोक ने श्याम में एक भव्य विष्णु मंदिर बनाया था।”
“थाईलैंड में रामायण कथा बहुत लोकप्रिय है वहां के निवासियों का विश्वास है कि वह घटनाक्रम उन्ही देश में संपन्न हुआ था। रामायण की नृत्य नाटिकाएं बहुत आयोजित होती रहती हैं और उनमें जनता बहुत रुचि पूर्वक भाग लेती है।”

“थाई भाषा की एक पुस्तक है- “बाली की भाई को शिक्षा” यह कर्तव्य पालन और नीति निष्ठा की आदर्श पुस्तक है। बाली ने अपने भाई सुग्रीव को जो धर्म- नीति सिखाई उसी का इसमें वर्णन है। इसे प्राय: सभी स्कूलों में पढ़ाया जाता है। थाई भाषा में संस्कृत शब्दों की भरमार है।
थाईलैंड में प्राचीन काल के शिलालेख संस्कृत भाषा में पाए गए हैं। इससे पता चलता है, कि वहां किसी समय सनातन संस्कृति की ही प्रधानता रही है। यों वहां सर्वत्र देव मंदिरों की ध्वंस अवशेष बिखरे पड़े है। पर इनमें ‘लोफ बुरि’ विशेष रूप से दर्शनीय है।”
एक प्रकार से थाईलैंड एक छोटा भारत ही है।

क्रमशः ….

लेखक – डॉ. नितिन सहारिया