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विश्वव्यापी हिंदू संस्कृति – 2

भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति विश्व की सर्वप्रथम व सबसे प्राचीन,आध्यात्मिक विस्व संस्कृति है। दुनिया में ईशा व मूसा के जन्म के करोड़ों वर्ष पूर्व से यह संस्कृति अस्तित्व में है।

“जब दुनिया में सब सोए हुए थे, तब भी जगा था यह राष्ट्र।” अति प्राचीन काल में भारतीय संस्कृति का संपूर्ण विश्व में प्रसार /साम्राज्य था। दुनिया का चप्पा-चप्पा इससे सराबोर था। तब दुनिया में सुख-शांति व प्रेम का वातावरण बना हुआ था।

अमेरिका पर अनुसंधान करने वाले विद्वान इतिहास विद्व प्रोफेसर नेत्रपाल सिंह लिखते हैं कि – भारत की खोज में निकला ‘कोलंबस’ 1492 ई. से 97 के बीच तीन बार अमेरिका पहुंचा एवं वहां के जनजीवन को भली-भांति परखने के बाद उसको विश्वास हो गया कि यह भारत ही है क्योंकि वहां पर निवास करने वाले लोगों के खान-पान, वस्त्र, वेशभूषा, संस्कृति, व्यवहार सभी भारतीय थे। कमर में लंगोट की तरह बंधी हुई धोती, कंधे पर धनुष बाण और सिर पर चील के पंखों को खोन्से हुए ताम्रवर्णी 5 से 8 फुट लंबे लोगों को देखकर कोलंबस को पूरा विश्वास हो गया कि यह सब निश्चित रूप से इंडियन भारतीय हैं। लेकिन उसका यह विश्वास आधा ही सही था क्योंकि वह जिस भू-भाग पर पहुंचा था, वह भारत नहीं था। हां, जो लोग वहां थे वह निश्चित रूप से भारतीय (रेड इंडियन) थे।

कोलंबस के अमेरिका पहुंचने से लाखो वर्ष पहले भारतीय मूल की ‘मय’, ‘इन्का’ तथा ‘अजटेक’ सभ्यता के लोग अमेरिका में बसे हुए थे। और वहां पर उन्होंने उच्च कोटि के नगर एवं राज्य स्थापित कर लिए थे। उत्तरी अमेरिका के मैकिस्को, बैलीज (BELIZE), होंडुरास, ग्वाटेमाला तथा अल सेल्वाडोर आदि देशों में पहाड़ियों के उत्खनन एवं पुरातात्विक अन्वेषण में प्रचुरता से मय संस्कृति MAYA CULTURE के अवशेष प्राप्त हुए हैं।

La Antigua Guatemala – Old Book Illustrationsबीसवीं सदी के उत्तरार्ध में अनेक रहस्यमयी गुफाओं एवं नगरों का वहां पता लगाया गया है और अभी 50 नगर छोटी-बड़ी पहाड़ियों या ऊंचे टीलों के रूप में खड़े हुए अपनी पुरातात्विक संपदा का रहस्य खोलने को आतुर हैं। ‘मय संस्कृति’ के अवशेष न केवल अमेरिका महाद्वीपों की प्राचीनता के प्रतीक हैं अपितु हिंदू संस्कृति के विश्वव्यापी प्रभाव को भी भली-भांति उजागर करते हैं।

ग्वाटेमाला नगर से 100 किलोमीटर उत्तर में प्राप्त एक प्राचीन गुफा को खोज कर्ताओं ने ‘नाज ट्यूनिक’ अर्थात ‘पाषाण गुफा ग्रह’ नाम दिया है। एक स्थानीय इंडियन कृषक बरनावे पोप को अपने पिता एमिलियों के साथ शिकार हेतु जंगल में भटकते हुए इस अद्भुत गुफा का पता चला।

ग्वाटेमाला सरकार ने इस गुफा क्षेत्र को तुरंत अपने संरक्षण में ले लिया ताकि पुरातात्विक महत्व के अवशेष नष्ट ना हो जाएं। ग्वाटेमाला सरकार से अनुमति लेकर पुरातत्व वेता जार्ज ई स्टुअर्ट अपने तीन साथियों तथा वर्र्नावे पोप के साथ गुफा के पुरातात्विक अध्ययन के लिए पहुंचे, तो उन्होंने पाया कि सामने के चुने की पत्थर की बनी एक सेल के नीचे एक लंबा छिद्र है, जिससे झांकने पर नीचे केवल घना अंधकार है। इस तरह से होकर रेंगते हुए यह सब लोग गुफा के अंदर काफी नीचे उतरने के बाद एक समतल भूमि पर आ गए। यहां छन-छन कर आते हुए मध्यम प्रकाश मे इन्हें आगे दूर पर एक ढाल दिखाई दिया, जो बड़े-बड़े पत्थरों को बिछाकर तथा किनारों पर पत्थरों की दीवाल बनाकर निर्मित किया गया था। ढाल के नीचे उतरने पर कलात्मक ढंग से रंगे हुए मिट्टी के टूटे बर्तनो का ढेर, आगे एक अंधेरी सुरंग और उस वर्ग के दूसरे छोर पर कुछ गिरी भूमि तथा अत्यंत स्वच्छ जल से भरा हुआ एक जलाशय था। इसके फिसलन भरे किनारों पर चलते हुए सामने एक चौड़ा मार्ग दिखाई पड़ा। आगे चलने पर यह चौड़ा मार्ग सकरा होते -होते दो भागों में विभाजित हो गया। फिर वायिं और चलने पर कई घुमावदार मोड़ पार करने के बाद एक ऐसी जगह पहुंचे जहां कुची की सहायता से अत्यंत सुंदर चित्र लिपि में कुछ लिखा गया था।

दो पंक्तियों के इस आलेख में एक तिथि अंकित थी, जिसे लिपि विशेषज्ञ डेविड ने अंग्रेजी कैलेंडर में परिवर्तित करके 30 जून सन 741 ई के रूप में निश्चित किया। इस आलेख के पीछे एक अन्य कक्ष, जिसमें चित्र लिपि में 67 अंकित मिले, को उन्होंने HALL OF BALAM नाम दिया। इसी कक्ष के एक बड़े छिद्र से निकलकर यह दूसरे कक्ष में गए, जहां पीले पत्थर के बड़े-बड़े पर्दो पर और अधिक लिखावट थी, जिसका नाम ‘क्रिस्टल कॉलम’ रखा। इससे आगे फिर एक तंग मार्ग जिसमें दोनों और दीवारों पर मानव आकृतियां बनाई गई थी। एक और गेंद खेलने के मैदान का चित्र था, जिसमें एक खिलाड़ी सिर पर हैट तथा छाती एवं घुटनों पर पैड़ वान्धे खड़ा था। फर्श से उछलती हुई गेंद का भी चित्र था। दूर एक कोने में संख के सामने ध्यान मुद्रा में बैठे हुए एक व्यक्ति तथा कुछ बौनों के चित्र थे। मायावी शक्तियों को प्राप्त करने तथा तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए मय लोग इन गुफाओं का प्रयोग किया करते थे, ऐसा निष्कर्ष वहां तूलिका की सहायता से बनाए गए चित्रों को देखकर निकाला गया। गुफा के अन्य स्थानों को भी देख कर उन्हें अनुमान के आधार पर ‘पैसेज आफ राइट’ तथा ‘बिअरर ऑफ फायर रूम’ नाम दिया। ‘पैसेज आफ फ्लाइट’ में एक विशेष बात यह थी कि यहां योनि संबंधी चित्र भी थे, जबकि अन्यत्र मय चित्रकला में बहुधा ऐसे चित्रों का अभाव रहता है। ‘बिअरर आफ फायर रूम’ में आग ले जाते हुए एक व्यक्ति के चित्र के अलावा और भी बहुत कुछ होगा। ग्वाटेमाला के घने जंगलों में ऐसी ही अन्य गुफाएं भी मिली हैं।

रहस्यमई गुफाओं के अतिरिक्त कई नगरों को भी पुरातात्विक-उत्खनन के द्वारा प्रकाश में लाया गया है। इनमें ग्वाटेमाला के ही अल मीराडोर, टिकाल, डोस प्लास तथा एक्वा टेक यह चार नगर बहुत महत्वपूर्ण है। इनमें अलमीरा डोर सर्वाधिक प्राचीन एवं विशाल है।

पुरातत्व विज्ञानियों के अनुसार दूसरी सदी ईसा पूर्व 16 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में निर्मित यह नगर आधुनिक वास्तु शास्त्रियों के लिए एक पहेली सदृस है। इस नगर के मुख्य भवनों को टाइगर पिरामिड, टाइगर टेंपल, लाईन पिरामिड, डेन्टा कांप्लेक्स तथा ‘मोनस कांप्लेक्स’ आदि नाम दिए गए हैं। इनमें 5800 वर्ग मीटर क्षेत्र में बना ‘टाइगर पिरामिड’ सबसे विलक्षण भवन है।

पिरामिड के आकार में निर्मित या भवन वैसे तो 12 मंजिल का है, लेकिन इसका मध्य भाग 18 मंजिल तक ऊंचा है। टाइगर पिरामिड के दक्षिण और बने ‘मोनस कांप्लेक्स’ की ऊंचाई भी 40 मीटर है। जिसका विस्तार 17000 वर्ग मीटर क्षेत्र में है। यह नगर कभी ‘मय’ लोगों की सभ्यता एवं संस्कृति का अमेरिका में प्रधान केंद्र था। इसे देखकर मय लोगों के भवन निर्माण कौशल का अच्छा परिचय मिलता है।

History of Guatemala City - Wikiwand

अलमीरा डोर के बाद के नगरों में डोस प्लास का महत्वपूर्ण स्थान है। यह नगर एक नगर- राज्य ऐसा प्रतीत होता है। डोस प्लास तथा दूसरे नगर टिकाल और एक्वा टेक मय सभ्यता के उत्कर्ष की कहानी पर अच्छा प्रकाश डालते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सामरिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर इन नगरों का निर्माण किया गया था।

इतिहासकारों पुरातत्व वेत्ताओ एवं शोधकर्ताओं के लिए यह एक आश्चर्य का विषय बना हुआ है कि हजारों वर्षों से निरंतर विकसित होने वाली मय संस्कृति एकाएक कैसे विलुप्त हो गई ? मय संस्कृति के एक अंश तक ही अनुसंधानकर्ता अभी पहुंच सके हैं। गणित, ज्योतिष कृषि एवं वाणिज्य में अग्रणी माय मेकिस्को, ग्वाटेमाला बैलीज, अल सल्वाडोर तथा होंडुरास आदि देशों में छाए हुए थे। ग्वाटेमाला के वन क्षेत्र की प्राय: हर पहाड़ी में एक मय नगर छुपा हुआ है।

मय कौन थे? क्या वे अमेरिका के ही मूल निवासी थे? या कहीं बाहर से अमेरिका आ गए थे? यदि मय बाहर से यहां आकर बसे थे तो वह कौन सा देश था ,जहां इनकी संस्कृति का विकास हुआ था? इन प्रश्नों के उत्तर विश्व के साहित्य या इतिहास में कहीं नहीं मिलते। इतिहास की इस कमी को भारतीय वांग्मय पूरा करता आया है।

रामायण, महाभारत और पुराण भारत एवं विश्व के अनेक देशों के संबंध में ऐतिहासिक जानकारी से भरे पड़े हैं। मय लोगों के बारे में भी इन ग्रंथों में काफी कुछ लिखा हुआ है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार मय दानव कुल के थे। इनका कर्मक्षेत्र विंध्याचल पर्वत से दक्षिण की ओर आधुनिक महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक तक फैला हुआ था।

किष्किंधा के बानर राजा बाली के हाथों ‘दुंदुभी’ और ‘मायावी’ नाम के दो मय राजकुमार मारे गए थे। इन दोनों को रामायण में मय दानव का पुत्र कहा गया है। रामायण के अनुसार मय लोग गुफाओं का प्रयोग अधिक करते थे। बाली से पराजित होकर मायावी भी एक गुफा में ही जा छिपा था। बाली ने उस गुफा में प्रवेश करके वही उसका वध किया था। पुत्रों के अलावा मय की एक पुत्री भी थी ‘मंदोदरी’। जिसका विवाह रावण के साथ हुआ था। रामायण के किस्किंधा कांड में ही गुफा वाले प्रकरण में मय के जीवन वृत्त तथा भवन निर्माण की उसकी कौशल का अच्छा वर्णन किया गया है।

सीता जी की खोज में गए वानरों के भूख प्यास से व्यथित होकर एक गुफा में प्रवेश और उस गुफा में ‘स्वयंप्रभा’ नाम की एक तपस्विनी से हुई उनकी भेंट की कथा विदित ही है। हनुमान जी के पूछने पर तपस्विनी स्वयंप्रभा ने बतलाया था कि वानरश्रेष्ठ! माया विशारद महा तेजस्वी ‘मय’ का नाम तुमने सुना होगा । उसी ने अपनी माया के प्रभाव से इस समूचे स्वर्णमय वन का निर्माण किया था।

मयो नाम महातेजा मायावी वानरर्षभ ।
तेनेवं निमित्त्ं सर्वं मायया कांचनं वनम्ं ।।

(रामायण ,किष्किंधा कांड ,सर्ग 52)

इसके साथ ही हेमा और मय दानव के विवाह तथा देवराज इंद्र से इसके कारण संघर्ष की कहानी भी ‘स्वयंप्रभा’ ने सुनाई तथा बानरौं की आंखों को बंद करवा कर उन्हें योगबल से गुफा से बाहर निकालने में सहायता की।
ऊपर ‘नाज ट्यूनिक’ गुफा का वर्णन किया जा चुका है। ग्वाटेमाला की गुफा एवं वाल्मीकि रामायण वर्णित गुफा दोनों बिल्कुल एक जैसी हैं। स्पष्ट है कि दोनों गुफाओं का निर्माण एक ही संस्कृति के लोगों ने किया था।

महाभारत में भी ‘मय दानव’ का पर्याप्त उल्लेख हुआ है। खांडव- वन- दहन के समय वहां मय दानव को प्राण दान देने के प्रतिफल स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर उसने युधिष्ठिर के लिए एक विलक्षण सभागृह का निर्माण 14 महीने में पूरा करके युधिष्ठिर को सौंप दिया था। जिस का विस्तृत वर्णन महाभारत (सभापर्व प्रथम अध्याय) में दिया हुआ है।

रामायण और महाभारत के उपयुक्त वर्णनों से पता चलता है कि सारे विश्व में मय लोग (People of maya cultur) अपने भवन निर्माण कौशल के लिए विख्यात थे। स्पष्ट है कि जिन मय लोगों का वर्णन रामायण और महाभारत में है, वही मय लोग अमेरिका में भी थे; क्योंकि वहां भी भवनों तथा गुफाओं के निर्माण की उनकी प्रवीणता ही प्रमुख रूप से सामने आई है।

अब प्रश्न यह उठता है कि भारत और अमेरिका में से किस देश के मूल निवासी थे मय लोग? भवन निर्माण व अन्य विषयों में उन्होंने किस देश में रहकर यह दक्षता प्राप्त की थी? ग्वाटेमाला में खुदाई की निष्कर्षों के आधार पर अलमीरा डोर सबसे प्राचीन नगर है। जो ईसा पूर्व दूसरी सदी में निर्मित हुआ अर्थात वहां के भवन अधिक से अधिक 2200 वर्ष पुराने हैं। टिकाल, डोस् प्लास तथा एक्वाटेक लगभग 1500 से ज्यादा पुरानी नहीं है। रामायण और महाभारत इससे बहुत पहले की रचनाएं हैं।

अतः यह स्वतः स्पष्ट है कि ‘मय संस्कृति’ मूल रूप में हिंदू है और ‘मय’ लोगों के अमेरिका जाने से कई हजार वर्ष पहले यह संस्कृति भारत में विकसित हो चुकी थी और तभी से रसातल या पाताल लोक (आधुनिक अमेरिका) जाना-आना भारतीयों के लिए सामान्य बात थी। अत:
है देह विश्व, आत्मा है भारत माता।
क्रमशः …

लेख़क – डॉ. नितिन सहारिया (भारद्वाज)
संपर्क सूत्र – 8720857296