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विश्व में सृजन की क्रांति होगी भारत से

(There will be a revolution of creation in the world from India)
वर्तमान में वैश्विक परिदृश्य में जो घटना क्रम चल रहा है। उसके संदर्भ में युगऋषि- वेदमूर्ति पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य, अखंड ज्योति -पत्रिका, अक्टूबर 1988, पृष्ठ- 42, शीर्षक- ‘अपनों से अपनी बात- प्राणवान प्रतिभाओं की खोज’ के अंतर्गत लिखते हैं कि- “वर्तमान समय विश्व इतिहास में अद्भुत एवं अभूतपूर्व स्तर का है। इसमें एक ओर महाविनाशनी भयंकर तूफान अपनी प्रचंडता का परिचय दे रहा है, तो दूसरी ओर सतयुगी नव निर्माण की उमंगे भी उछल रही हैं। विनाश और विकास एक दूसरे के प्रतिद्वंदी हैं, तो भी उनका एक ही समय में अपनी-अपनी दिशा में चल सकना संभव है, इन दिनों आकाश में सघन तमिस्रा का साम्राज्य है, तो दूसरी ओर ब्रह्मूहूर्त का आभास भी प्राची में उदीयमान होता दीख पड़ता है।”
अर्नाल्ड जोसेफ टॉयनबी विश्व इतिहास के पारखी विद्वान थे। विश्व भर के सभी देशों की सभ्यताओं, संस्कृतियों एवं उनके इतिहास पर उनकी सूक्ष्म पकड़ थी।
अर्नाल्ड जोसेफ टॉयनबी द्वारा लिखित ग्रंथ- ‘ए स्टडी आफ हिस्ट्री’ 12 खंडों में प्रकाशित हुआ था। इसे विश्व भर के सभी विश्वविद्यालयों एवं विशेषज्ञों ने सराहा था। उनकी रचनाएं– ‘सिविलाइजेशन ऑन ट्रायल’, ‘ईस्ट टू वेस्ट’, ‘हेलेनिज्म’ भी बहुत प्रशन्सित रही। विश्व के सभी इतिहास विशेषज्ञ व राजनैतिक विश्लेषक उनकी किसी भी टिप्पणी को प्रमाण के रूप में स्वीकार करते थे। विद्वान होने के साथ वह उच्च कोटि के तपस्वी, साधक थे। लंदन में उनका जीवन भारत के प्राचीन ऋषियों की भांति था। दैवी विभूति के रूप में उन्हें भविष्य दर्शन की अपूर्व क्षमता प्राप्त थी। तभी तो अंतरराष्ट्रीय ‘टाइम’ पत्रिका ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय संत’ की उपाधि दी थी।
Arnold Joseph Toynbee
1974 में टॉयनवी अपनी उम्र के 85 वर्ष पूरा कर रहे थे। उनकी पत्नी श्रीमती वेरोनिका व विश्वासपात्र सहयोगी विलियम रोजर्स के साथ अपने घर के पुस्तकालय में बैठे हुए थे तभी टॉयनवी महोदय अपनी पत्नी से अपने अनुभव की चर्चा (जो उन्होंने ध्यान की गहराइयों में पाया था) करते हुए कहते हैं कि- “भयावह ध्वंस के साथ सकारात्मक सृजन को मैं स्पष्ट अनुभव कर रहा हूं। इस बार का ध्वंस पहले हुए सभी ध्वंसात्मक रूपों से अधिक भयावह और अधिक व्यापक होगा। लेकिन इसमें सबसे आश्चर्यपूर्ण बात यह है कि इसके साथ सकारात्मक सृजन की गतिविधियां भी चलती रहेंगी। जो ध्वंस होगा उसमें प्रकृति निर्मित एवं मानव निर्मित सभी ढांचे ढहेंगे। साथ ही सृजन के नए सूत्र और सत्य उभर कर सामने आएंगे।
प्रकृति निर्मित ढांचा है- पर्यावरण, जलवायु, मौसम इसी के साथ प्रकृति का सहज दृश्य रूप जैसे कि जंगल, नदियां, पर्वत आदि। अगले दिनों प्रकृति में ऐसी विचित्र लहरें उठेंगी कि यह सब का सब परिवर्तित होता नजर आएगा। भूकंप, समुद्री तूफ़ान, अतिवृष्टि, अनावृष्टि और भी ऐसे अनेक प्राकृतिक कारण इसके लिए जिम्मेदार होंगे।
इसी तरह मानव निर्मित ढांचे भी ढहेंगे। अब मानव के द्वारा बनाए गए ढांचे हैं- राजनीतिक ढांचा, सामाजिक ढांचा, आर्थिक ढांचा, वैचारिक ढांचा, शैक्षणिक ढांचा यहां तक की जीवन शैली का ढांचा। विचित्र और क्रांतिपूर्ण घटनाक्रम इतनी तेजी से घटित होंगे कि पुराना सब कुछ टूटता- ढहता, बिखरता चला जाएगा। इसी के साथ मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि यह सभी किसी मानवीय प्रयास से नहीं होगा। यह सब तो प्रकृति व परमेश्वर स्वयं करेंगे, इंसान तो व्यक्ति के रूप में व राष्ट्र के रूप में बस माध्यम बनता चला जाएगा। बड़ी अजीबो-गरीब स्थिति बनेगी। आमूल-चूल परिवर्तन करने वाली ऐसी संपूर्ण क्रांति घटित होने जा रही है, इसके संचालक स्वयं परमेश्वर होंगे।
यह सत्य कहने में, स्वीकारने में थोड़ी असहजता तो लगती है फिर भी सत्य तो यही है कि पश्चिम ने जो भी ढांचे बनाए हैं, विनाश के जो भी सरंजाम जुटाए हैं, वे सभी धीरे-धीरे समाप्त होते जाएंगे और इसमें आश्चर्य की बात यह होगी कि सर्वनाशी विश्वयुद्ध की स्थितियां बनते हुए भी विश्वयुद्ध नहीं होगा। महाशक्ति कहलाने वाला सोवियत रूस अपने स्वयं के कारणों से अपने महाशक्ति होने का दर्जा खो देगा। दूसरी महाशक्ति जिसे कहा समझा जाता है, वह अमेरिका इधर-उधर टकराकर, उलझकर स्वयं को कमजोर कर लेगा।
इस महायुद्ध को रोकेगा- भारत देश से उठता आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रचंड प्रवाह। इसी प्रेरक प्रवाह से नवसृजन के सभी सूत्र उभरेंगे। इन्हीं सूत्रों से भविष्य के प्राकृतिक एवं मानवीय ढांचे को जाना समझा जाएगा। यह स्पष्ट हो चुका है कि जिस अध्याय की शुरुआत पश्चिम से की गई है उसका समापन भारत से करना होगा, यदि अंत को मानव जाति के लिए आत्मघाती होने से बचाना है। इतिहास के इस खतरनाक मोड़ पर मनुष्यता के लिए उद्धार का एकमात्र उपाय भारती तौर-तरीके और भारतीय जीवन शैली में निहित है। ऐसा या तो विश्व मानवता स्वयं कर लेगी अथवा परमेश्वर उसे ऐसा करने के लिए विवश कर देंगे। होना यही है कैसे भी हो, भारतीय जीवन शैली की ओर सभी की वापसी निश्चित है।”
पंजाब हाई कोर्ट के एक जज आचार्य श्रीराम शर्मा जी से मिलने शांतिकुंज हरिद्वार पहुंचे। उन्होंने विनाशकारी परिस्थितियों पर चिंता जाहिर की तब आचार्य जी बोले- “बेटा ध्वंस तो है ,पर सृजन के अंकुर भी हैं। इतना कहकर उन्होंने कहा दो पहलवान जब अखाड़े में लड़ते हैं तो देखने वालों को ठीक तरह से पता नहीं चल पाता कि कौन हार रहा है और कौन जीतने जा रहा है। पर थोड़ी देर बाद असलियत आ ही जाती है। इसकी भी असलियत सामने आ जाएगी और सभी जान लेंगे की हम (भारत) पीछे नहीं हट रहे, आगे ही बढ़ रहे हैं।”
विश्वपटल पर चल रहे सृजन व ध्वंस के घटनाक्रमों के सूक्ष्म अध्ययन, विश्लेषण से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि एक महान वैचारिक/सांस्कृतिक क्रांति का वैश्विक स्तर पर शुभारंभ हो चुका है। एक मंथन सा चल रहा है, जिसमें अमृत व बिष दोनों उत्पन्न हो चले हैं। सृजन व ध्वंस दोनों के घटनाक्रम साथ-साथ चल रहे हैं।
इस क्रांति की परिणीति राष्ट्र व विश्व में एकता-समता, ज्ञान मूलक समाज/आध्यात्मिक मानवतावाद की स्थापना करेगी। अतः यह सुनिश्चित सत्य है कि 21वीं सदी भारत की है एवं भारत ही विश्व को महाविनाश के मार्ग से हटाकर सृजन के (उज्जवल भविष्य) मार्ग पर ले जाएगा। और संपूर्ण विश्ववसुधा का मार्गदर्शन करेगा।
अतः हमारा यह राष्ट्रधर्म, युगधर्म, मानवधर्म है कि हमें भी राष्ट्र व विश्व निर्माण की सृजन क्रांति में एक आहुति, एक समिधा बनना ही चाहिए।
लेखक:- डॉ. नितिन सहारिया
सम्पर्क सुत्र:-  8720857296