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संघ प्रमुख और इलियासी की भेंट : विवाद के बीच संवाद

जिस दिन पूरे देश में आतंकवादी मुस्लिम संगठन पी.एफ़.आई (पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) के ठिकानों पर छापे के साथ ही उसके प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार किया गया उसी दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने दिल्ली में मुस्लिम इमाम संगठन के प्रमुख डॉ. उमर अहमद इलियासी के साथ बंद कमरे में चर्चा करने के साथ ही निकटवर्ती मदरसे में छात्रों के साथ संवाद किया ।

अखिल भारतीय इमाम संगठन के मुख्यालय में आयोजित इस बैठक में जिस सौहार्द्र का आदान – प्रदान हुआ वह महज औपचारिकता थी या हिन्दुओं के सबसे बड़े सामाजिक संगठन तथा मुस्लिम इमामों के मुखिया द्वारा आपसी चर्चा से गलतफहमियां दूर करने का प्रयास, ये तो आने वाले समय में पता चलेगा परन्तु जिस तरह डॉ. इलियासी ने संघ प्रमुख को राष्ट्र पिता और राष्ट्र ऋषि कहा वह चौंकाने वाला है । प्राप्त जानकारी के अनुसार ये मुलाकात मुस्लिम धर्मगुरु के आमन्त्रण पर हुई थी जिसमें विवादास्पद मुद्दों के अलावा अन्य सामयिक विषयों पर विचारों का आदान-प्रदान हुआ ।

डॉ. इलियासी का ये कहना संघ के दृष्टिकोण का समर्थन है कि हमारा डीएनए एक ही है किन्तु इबादत का तरीका अलग है । कुछ समय पहले कांग्रेस के पूर्व वरिष्ट नेता गुलाम नबी आजाद ने भी स्वीकार किया था कि सैकड़ों साल पहले तक उनके पूर्वज हिन्दू थे ।

संघ प्रमुख के मस्जिद और मदरसे में जाने से भी बड़ी बात डॉ. इलियासी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शान में कसीदे पढ़ना रही । शायद इसीलिये असदुद्दीन ओवैसी इसको पचा नहीं सके और उन्होंने उन्हें जमीनी हकीकत से अनभिज्ञ व्यक्ति बताया । हालाँकि अन्य मुस्लिम संगठनों की प्रतिक्रिया अब तक नहीं आई । शायद वे मुलाकात के भावी परिणामों का आकलन करने के बाद कुछ कहें । लेकिन ऐसे समय जब हिजाब, ज्ञानवापी, कृष्ण जन्मभूमि, मदरसों का सर्वे, सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों पर मुसलिम समुदाय के मन में जहर भरा जा रहा हो तब सबसे बड़े हिन्दू संगठन के प्रमुख का इमामों के मुखिया से मिलने के साथ मस्जिद और मदरसे में जाना साधारण बात नहीं है ।

उल्लेखनीय है भाजपा ने भी हाल ही में मुस्लिमों के बीच स्नेह यात्रा निकालने का फैसला किया है । साथ ही इस समुदाय के पसमांदा वर्ग के उत्थान पर भी ध्यान देने की पहल की जो एक तरह से हिन्दुओं की अन्य पिछड़ी जातियों जैसा ही है । ये भी उल्लेखनीय है कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के बैनर तले मुसलमानों को संघ के नजदीक लाने का प्रकल्प चलाने वाले वरिष्ट प्रचारक इन्द्रेश भी डॉ. भागवत के साथ इमामों के मुख्यालय गये थे ।

देश भर से मिल रहे संकेतों से लगता है कि मुसलमानों के बीच भी ये विचार जोर पकड़ने लगा है कि मजहब के नाम पर अशिक्षा, पिछड़ेपन और गरीबी में जीते रहने के बजाय मुख्यधारा में शरीक होकर सामाजिक और आर्थिक विकास की राह पर आगे बढ़ा जाए । ये बात भी एक वर्ग को महसूस होने लगी है कि उनके थोक समर्थन के बल पर अनेक नेता और पार्टियां सत्ता के शिखर तक जा पहुँची किन्तु मुसलमानों की दशा में ख़ास सुधार नहीं हुआ ।

दरअसल मुसलमान मुल्ला-मौलवियों और राजनेताओं रूपी दो पाटों की बीच फंसकर रह गए । धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यक जैसे शब्दों के जरिये उन्हें राष्ट्रीय धारा से दूर रखा जाता रहा । मुस्लिम समुदाय में जब भी किसी बड़े सुधार की सम्भावना बनी तब-तब उसे कुचल दिया गया । स्व. राजीव गांधी की सरकार ने शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला पलटकर जो ऐतिहासिक भूल की उसकी वजह से ही हिंदुओं का राजनीतिक ध्रुवीकरण होने लगा । समय आ गया है जब मुस्लिम समाज अपने धर्म का पालन करने के साथ ही डॉ. इलियासी द्वारा कही गयी इस बात को समझे कि भारत में रहने वाले 99 फीसदी मुस्लिमों के पूर्वज हिन्दू थे । इस बारे में इंडोनेशिया का उदाहरण सामने है जहाँ के लोग मुस्लिम होने के बाद भी रामलीला करते हैं । उनका साफ़ कहना है कि सदियों पहले उनके पूर्वजों ने इस्लाम स्वीकार किया किन्तु हिन्दू संस्कृति नहीं त्यागी । भारत के मुसलमानों को भी इस बात से प्रेरणा लेनी चाहिए ।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने तो सदैव कहा है कि हिन्दू, धर्म नहीं अपितु राष्ट्रीयता है और भारत में रहने वाले सभी लोग हिन्दू हैं चाहे वे किसी भी धर्म या पूजा पद्धति का पालन करते हों । यद्यपि उक्त मुलाकात के फलितार्थ पर तत्काल कोई निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी परन्तु इस तरह के संवाद से व्यर्थ की गलत फहमियां दूर की जा सकती हैं ।

मुस्लिम समुदाय के साथ सबसे बड़ी परेशानी ये रही है कि वह राजनीतिक नेतृत्व के लिहाज से शून्य है । पहले कांग्रेस और बाद में लालू-मुलायम जैसे नेताओं ने उसका भयादोहन किया और अब वही काम ओवैसी कर रहे हैं। लेकिन किसी ने भी उन्हें शिक्षा के जरिये बौद्धिक और आर्थिक विकास हेतु प्रेरित नहीं किया ।

मदरसों का उपयोग धर्मान्धता फ़ैलाने के लिए किये जाने का दुष्परिणाम मुस्लिम युवाओं का आतंकवादी संगठनों के साथ जुड़ने के तौर पर देखने मिला । जम्मू कश्मीर में तो एक पूरी पीढ़ी उसका शिकार हो गई | धीरे-धीरे ही सही इस समुदाय के एक वर्ग को गलतियों का एहसास होने लगा है । हालाँकि इसमें बहुत कम लोग शामिल हैं जिनके सामाजिक प्रभाव के बारे में पक्के तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता । बड़ी बात नहीं ओवैसी और अन्य मुस्लिम धर्मगुरु डॉ. इलियासी के पीछे पड़ जाएं क्योंकि उन जैसे कुछ और धर्मगुरु यदि साहस के साथ आगे आये तो बहुतों की दुकानों पर ताले लटक जायंगे । पीएफआई जैसे आतंकवादी संगठन की बड़े पैमाने पर घेराबंदी के समानांतर संघ प्रमुख और इमामों के प्रमुख की अन्तरंग भेंट निश्चित तौर पर किसी सुखद बदलाव का संयोग बन सकती है |

लेख़क – रवीन्द्र बाजपेयी