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सत्य सनातन- हिन्दु धर्म

– डॉ नितिन सहारिया 

“सत्य सनातन धर्म” जिसे अन्य शब्दों में हिंदूधर्म, आर्यधर्म, वैदिकधर्म, भारतीयता, अध्यात्म, मानवता, मनुष्यत्व, देवत्व इत्यादि नामो से पुकारा जाता है। यह सृष्टि का आदिधर्म है,जो ईश्वर द्वारा प्रादुरभूत है। सनातन धर्म ‘अनादि’ Beginning less है। यह अखंड, अनंत Infinitive, अजर -अमर Imortal ,कालातीत, अविनाशी। सनातन का अर्थ ही है की “जो सदा से है व सदा रहेगा।” सनातन धर्म The eternal law of Universe है, अर्थात “ब्रम्हाण्ड का शास्वत नियम”। दुनिया के अन्य पंथ/मजहब किसी एक व्यक्ति द्वारा उत्पन्न हैं। जो की एक विचार/ पूजा- उपासना पद्धति हैं। जो समय- समय पर, युगों मे उत्पन्न हुये हैं । जैसे ईसा मसीह से ईसाई, मो .पैगंबर से इस्लाम, जरर्थुस्ट्र से पारसी, अब्राहम से यहूदी, सन्त महावीर से जैन, बुद्ध से वौद्ध, सन्त नानकदेव से सिख इत्यादि , किन्तु सम्पूर्ण मानव जाति/समाज का जो मूल धर्म है वो सिर्फ और सिर्फ “सनातन हिन्दु धर्म” ही है। इस बात की पुष्टि मे अनेक उदहारण दीये जा सकते हैं। ‘सनातन धर्म’ सृष्टि के आदिकाल से चला आ रहा, अखंड एक दैवीय प्रवाह (अध्यात्म) है, जो सारी मानवता को अनुप्राणित कर रहा है। जो मानवीय मूल्यों (हुमन वैल्यूज) शाश्वत सत्य/सिद्दांत पर आधारित है। यह “वैज्ञानिक अध्यात्मवाद” पर आधारित सनातन धर्म है। इसके प्रत्येक क्रियाकलाप के पीछे एक दर्शन, लॉजिक, सिद्धांत छिपा हुआ है। यह वैश्विक Global धर्म है, क्योंकि इसका प्रादुर्भाव भारत/दुस्तान में हुआ, इसलिए इसके साथ भारतीय/हिंदू शब्द लगा हुआ है, किंतु यह सार्वभौम है। यह किसी संकीर्ण सीमा के दायरे में बंधा हुआ धर्म नहीं है। इसके अंदर ऐसे शाश्वत मूल्य हैं, की जिसके प्रभाव में आकर अनेकों विदेशी सनातनी हो गए, जैसे गंगा में मिलकर सारे नदी -नाले गंगा बन जाते हैं व गंगा कहलाते हैं । ऐसा ही यह सनातन धर्म है। यह सागर की तरह विराट भी है, जो सभी सरिताओं को अपने में समाहित कर लेता है। यह “जीवन जीने की कला” Art of living पद्द्ति है।

महर्षि अरविंद कहते हैं की – “जिसे हम हिंदू धर्म कहते हैं वह वास्तव में सनातन धर्म है, क्योंकि यही वह विश्वव्यापी धर्म है जो दूसरे सभी धर्मो का आलिंगन करता है। यदि कोई धर्म विश्वव्यापी न हो तो वह सनातन भी नहीं हो सकता।”

“इस एकांतवास में, मेरे अंदर क्या हुआ, यह कहने की प्रेरणा नहीं हो रही, बस इतना काफी है कि वहां दिन- प्रतिदिन भगवान ने अपने चमत्कार दिखाएं और मुझे हिंदू धर्म के वास्तविक सत्य का साक्षात्कार कराया। पहले मेरे अंदर अनेक प्रकार के संदेह थे। मेरा लालन-पालन इंग्लैंड में विदेशी भावों और सर्वथा विदेशी वातावरण में हुआ था। एक समय मै हिंदू धर्म की बहुत-सी बातों को मात्र कल्पना समझता था, यह समझता था कि इसमें बहुत कुछ केवल स्वप्न ,भ्रम या माया है। परंतु अब दिन- प्रतिदिन मैंने हिंदू धर्म के सत्य को अपने मन में, अपने प्राण में और अपने शरीर में अनुभव किया।”

“भारतवर्ष, दूसरे देशों की तरह, अपने लिए ही या मजबूत होकर दूसरों को कुचलने के लिए नहीं उठ रहा। वह उठ रहा है, सारे संसार पर वह सनातन ज्योति बिखरने के लिए, जो उसे सौंपी गई है। भारत का जीवन सदा ही मानव जाति के लिए रहा है, उसे अपने लिए नहीं बल्कि मानव जाति के लिए महान होना है।”

इसी संदर्भ में युगऋषि, वेदमूर्ति पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य कहते हैं कि- “आदर्शवादी व्यवहार को धर्म कहते हैं और उत्कृष्ट, परिष्कृत चिंतन को अध्यात्म।”
“इतिहास साक्षी है की रोम, मिश्र, सिंधु आदि की संस्कृतियाँ खोज,संग्रहालय, पुरातत्व विभाग की सामग्री रह गई हैं, लेकिन भारतीय संस्कृति आज भी नाना आक्रमणों, अवरोधों, कठिनाइयों के बावजूद, जैसी की तैसी स्थिर है। उसका लोहा अब भी समस्त विश्व मानता है। निस्संदेह भारतीय संस्कृति समन्वयवादिनी रही है।”
(-अखंड ज्योति, 1965 जनवरी)
इसीलिए स्वामी विवेकानंद जी को कहना पड़ा की –
“मुझे अपने आपको हिंदू कहलाने में गर्व होता है।”
“I am proud to call myself a Hindu.”