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“सामाजिक समरसता का ग्रंथ- रामचरितमानस”

-प्रो. मनीषा शर्मा

जब हम राष्ट्र शब्द कहते हैं तो यह बात तथाकथित बुद्धिजीवियों को जानना अति आवश्यक है कि राष्ट्र क्या होता है? भारत को एक सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में संपूर्ण विश्व जानता है। राष्ट्र जिसकी एक संस्कृति होती है, परंपरा होती है एक साहित्यिक अवधारणा होती है, एक आचार – विचार व्यवहार होता है। इस संदर्भ में राम हमारे लिए महज एक संज्ञा नही, राम भारत के प्राण है और राम का चरित्र और रामायण व रामचरितमानस हमारी संस्कृति की आत्मा है। जो शिक्षा मंत्री राष्ट्र, राष्ट्रीयता, संस्कृति को नहीं जानते हैं और यह कहने मे जरा भी संकोच नहीं करते कि रामचरितमानस नफरत फैलाने वाला ग्रंथ है उनके लिए जरूरी है कि जरा जाए और मानस का अध्ययन कर ले। यदि पढ़ना न चाहे तो निकल जाए जन-मन के बीच और पूछ लें राम के विषय मे किसी भी व्यक्ति से उन्हें समझ आ जायेगा कि राम लोक मानस के रोम- रोम में बसे है। उन्ही के चरित्र पर आधारित रामचरितमानस पर इसके बाद दूसरा बयान दिया स्वामी प्रसाद मौर्य जो यूपी में सपा नेता और पूर्व मंत्री हैं। उन्होंने कहा की रामचरितमानस को प्रतिबंधित कर देना चाहिए। यह तुलसी ने अपनी खुशी के लिए लिखा है। उसी बयान की प्रतिक्रिया स्वरूप कल लखनऊ में मानस की प्रतियां जलाई गई। इस तरह की अभिव्यक्ति जहाँ एक और लोगो की धार्मिक भावनाओ को आहत कर रही है वही दूसरी और हमारे नेताओं की विक्षिप्तता को भी बता रही है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर बिना किसी संदर्भ के, बिना कुछ जाने कैसे रामचरितमानस को नफरत फैलाने वाला ग्रंथ कहा जा सकता है?

रामचरितमानस वाल्मीकि रामायण, कंबल रामायण, आनंद रामायण सहित कई रामायण के अध्ययन पर आधारित अवधी भाषा में लिखित ग्रंथ है जिसे तुलसीदास जी ने लिखा है । जिस रामचरितमानस को लिखकर तुलसीदास लोक जीवन के कवि से कालजयी हो गए। इसी रचना के कारण अवतारी राम वनवासी राम हो गए जो अपनी वन यात्राओं में राक्षसों का संहार करते हुए वनवासियों का उद्धार करते रहे।

केवट, शबरी, अहिल्या आदि सामान्य जन के घर में जाकर उनकी सुध लेना, उनके हालचाल पूछना उनके साथ प्रेम पूर्वक बैठना यह राम के विराट व्यक्तित्व को,समाज के प्रत्येक व्यक्ति के प्रति उनके प्रेम भाव को बताता है। श्रीराम ने वनवास के दौरान विभिन्न वर्गों के मध्य आपसी प्रेम का, विश्वास का, आदर व सम्मान के भाव का संचार किया। सामाजिक समरसता का संदेश दिया। केवट जिसे आज वंचित समुदाय का माना जाता है उसे गले लगाया, शबरी के जूठे बैर खाये, निषादराज गुह को ह्रदय से लगाकर प्रेम व सम्मान दिया।सामाजिक समरसता का मूलमंत्र समानता है और राम ने अपने सम्पूर्ण जीवन में इसका पालन किया।

यह वनवासी राम अयोध्या का राज सिहासन एक तरफ छोड़कर लोगों के दिल में राज करता है और लोग उन्हें परमब्रह्मा का साक्षात स्वरूप मान पूजने लगते हैं। क्या हमारे देश का एक भी नेता श्री राम के चरित्र, उनके आदर्शों और उनके मूल्यों का एक प्रतिशत भी अपने जीवन से प्रमाणित कर सकता है।अगर श्रीराम जाती-पाती में विश्वास करते तो क्यों परित्यक्ता अहिल्या का उद्धार करते हैं? क्यों शबरी के झूठे बेर को खाते? क्यों निषादराज को गले लगाते हैं? राम जैसा लोकनायक जिन्होंने चमत्कारों से नहीं अपने चरित्र से लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई और नायक के रूप में अवतरित हुए। श्रीराम ने ब्राह्मण कुल में उत्पन्न परम ज्ञानी रावण के संपूर्ण कुल का नाश किया। गिद्ध का पिता के समान श्राद्ध किया। राम ने भील, कोल, किरात, आदिवासी वनवासी, गिरीवासी, कर्पिश व अन्य कई जातियों के लोगों के साथ रहकर और इन्हीं के साथ से रावण से युद्ध कर जीता। जिस राम का चरित्र लोक को आदर्शों की शिक्षा देता है, जो मानव को मर्यादा व कर्तव्यों का पाठ पढ़ाता है, जो मनुष्य को संघर्ष व धैर्य की प्रेरणा देता है ऐसे राम और उनका चरित्र ग्रंथ रामचरितमानस किस प्रकार समाज में नफरत फैला सकता है?

वर्तमान में लोग जातिवाद के कारण , वोट बैंक के कारण इसमें वर्णित चौपाइयों का गलत अर्थ निकाल रहे हैं। वह संदर्भ को जाने बिना भाव को नहीं समझ पाते। जबकि यहाँ यह तथ्य भी ध्यान में रखना होगा कि वाल्मीकि रामायण किसी ब्राह्मण ने नहीं लिखी। महाभारत व पुराण की रचना करने वाले वेदव्यास जी स्वयं निषाद कन्या सत्यवती के पुत्र थे।

हमारे देश के नेता जो कभी देश की सांस्कृतिक एकता को छिन्न-भिन्न करने के लिए, कभी देश के लोगों को गुमराह करने के लिए, कभी चंद वोटों की खातिर देश को जाति-धर्म के नाम पर बांटने के लिए इस तरह के प्रायोजित बयान देते रहते हैं। जिन्हें देश की सांस्कृतिक विरासत का ज्ञान है ना ही परंपरा का भान है और ना ही जनजीवन की समझ। ऐसे लोगों का देश के लिए क्या योगदान है? क्यों यह लोग हर बार सनातन पर प्रहार करते हैं? क्यों हर बार हमारे राष्ट्र नायकों को, आदर्शों को, मूल्यों को, संस्कृति को निशाना बनाकर प्रहार करते है? ये लोग राम पर बात करने की हिम्मत भी कैसे कर लेते हैं? इनमें राम और तुलसी के मर्म को छूने का साहस नहीं है। तुलसी का लिखा रामचरितमानस को जानने हेतु जिस भाव, बुद्धि, ह्रदय व विचारों की पवित्रता व वैश्विक चिंतन दृष्टि की आवश्यकता है उस दृष्टि को यह जाति धर्म की राजनीति कर वोट बटोरने वाले नेता कैसे समझ सकते है?

आज आवश्यकता इस बात की है कि हम इस प्रकार के जहरीले विमर्श से समाज के लोगो मे नफरत की राजनीति करने वाली ताकतों का साथ ना दे न उनके बहकावे में आये। राम को, रामचरितमानस को लेकर कितना भी जहरीला विमर्श चलाया जाए। राम को भारत राष्ट्र व जन-मन से अलग करना सम्भव नही क्योकि राम भारत के रोम – रोम में बसते है।

!!जय श्री राम !!

आलेख मे व्यक्त विचार लेखिका के अपने है!
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