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हमारे अटल जी

राजनीति के क्षितिज में न जाने कब कौन सा सितारा समय की बुलंदियों पर जाकर अपनी आभा बिखेर दे और कब कौन सा सितारा समय के साथ ही गर्द गुबार में विलीन हो जाए कहा नहीं जा सकता। किंतु, भारतीय लोकतंत्र के क्षितिज पर एक सितारा ऐसा भी चमका, जिसके कारण लोकतंत्र प्रणाली गौरवान्वित हो उठी ।

भारत की वैभवशाली अटल संस्कृत में राजनीतिक शुचिता को अनंत ऊँचाइयों तक पहुँचाने वाले अटल बिहारी बाजपेई के कारण ही भारतीय राजनीति का वह स्वर्णिम इतिहास समूचे विश्व में अमर हो गया जब उन्होंने गलत तरीके से सत्ता में जाने के बजाय भरे सदन में कहा कि मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करूँगा। उन्होंने राष्ट्रीय मान सम्मान एवं स्वाभिमान को उपरोक्त शब्दों के माध्यम से निश्चित रूप से राजनैतिक शुचिता को स्पष्ट किया था।

अटल जी का नाम जेहन में आते एक अजातशत्रु लोकनायक की छवि उभर कर सामने आ जाती है। आज सत्ता के सदन में बैठे लोगों को अपने विरोधी दल के लोगों के भीतर घोर शत्रुता के भाव दिखाई देने लगते हैं तब ऐसे ही भारतीय राजनीति में देश की बहुमत प्राप्त नरसिम्हा राव जी की सत्तासीन सरकार ने प्रतिपक्ष के जिस सांसद को भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए जिनेवा भेजा था यह सांसद राष्ट्र समर्पण की बलिवेदी पर चिर चमकती ज्योति पुंज अटल बिहारी बाजपेई ही थे। उनकी राष्ट्रभक्ति एवं राष्ट्र समर्पण में कहीं किंचित संदेह नहीं किया जा सकता। बाजपेई जी ने कभी भी राष्ट्र संकट के समय सत्ता का खेल नहीं खेला,बल्कि माँ भारती के सच्चे सपूत की भाँति अपने राष्ट्रीय दायित्व का निर्वहन ही किया।

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जब किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व सृजनकर्ता के सृजन से भी बड़ा बन जाता है तब वह सबका हो जाता है। उसकी सोच, उसका चिंतन, जनमानस के लिए प्रेरक बन जाता है। अपने राष्ट्र के प्रति सर्वस्व समर्पण के लिए, और उसके शब्द धरोहर बन जाते हैं आने वाली पीढ़ी के लिए।

अटल जी का एक-एक शब्द राष्ट्र,समाज एवं विश्व बंधुत्व को आगे ले जाने का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने जो भी कहा सच कहा, स्पष्ट कहा, उनके चिंतन में देश का वैभवशाली अतीत भी था तो भविष्य के प्रति स्पष्ट रूप रेखा भी थी। वर्तमान में राजनीति की रपटीली राहों के बीच सुगम मार्ग बनाने की क्षमता भी उन्हीं में थी। वर्तमान राजनैतिक तौर तरीके पर अटल जी कहा करते थे कि आज की राजनीति विवेक नहीं वाक्य चातुर्य चाहती है।

संयम नहीं, श्रेय नहीं. प्रेय के पीछे पागल है। मतभेद का समादर करना तो अलग रहा उसको सहन करने की शक्ति भी विलुप्त हो रही है। आदर्शवाद का स्थान अवसरवाद ले रहा है। सब अपनी अपनी गोटी लाल करने में लगे हैं। उत्तराधिकार की शतरंज पर मोहरे बैठाने की चिंता में लीन हैं। राजा प्रजा का सेवक है, दास है, प्रजा उसकी अन्नदाता है। वह उसे गद्दी पर चढ़ा सकती है, उतार भी सकती है। जनता के इशारे पर बड़े-बड़े साम्राज्य उठते और मिट जाते हैं।

सत्ता और साहित्य के बारे में अटल जी का दृढ निश्चय था कि जब कोई साहित्यकार राजनीति करेगा तो वह अधिक परिष्कृत होगी। यदि राजनेता की भूमिका साहित्यिक है तो वह मानवीय संवेदनाओं को नकार नहीं सकता। कहीं कोई कवि डिक्टेटर बन भी जाए तो वह निर्दोषों के खून से अपने हाथ नहीं रंगेगा। तानाशाहों में क्रूरता इसलिए आती है कि वह संवेदनहीन हो जाते हैं। एक साहित्यकार का ह्रदय दया, क्षमा, करुणा और प्रेम आदि से आपूरित रहता है। इसलिए वह खून की होली नहीं खेल सकता।

Biopic on former PM Atal Bihari Vajpayee announced on his 93rd birthday-Entertainment News , Firstpost

अटल जी ने वोट की राजनीति के आगे भी राष्ट्रहित को सर्वोपरि माना। उन्होंने कहा कि हर राजनीतिक दल वोट की चिंता करती है लेकिन वोट का खेल किस सीमा तक जाएगा? क्या इसके सामने देश हित की उपेक्षा कर दी जाएगी? वे कहा करते थे कि देश में ध्रुवीकरण नहीं होना चाहिए। ना सांप्रदायिक आधार पर, न जातीय आधार पर, न राजनीति दो खेमों में बँटनी चाहिए कि जिससे संवाद न हो, जिसमें चर्चा न हो। सत्ता का खेल तो चलेगा। सरकारें आएँगी जाएँगी। पार्टियाँ बनेगी, बिगड़ेंगगी मगर यह देश रहेगा। इस देश का लोकतंत्र अमर रहेगा।

 ऐसे महान विचारक, चिंतक, राष्ट्रीय भावनाओं के प्रणेता अजातशत्रु जननायक अटल बिहारी बाजपेई का जन्म दिवस 25 दिसंबर को है और उनके जन्मदिवस पर उन्हें शत शत नमन।

लेखक – रामलखन गुप्त