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“हर युग में चाहिए शिवाजी”

शिवाजी महाराज पर अनेक पुस्तके, लेख प्रकाशित हो चुके है, व्याख्यान मालाओ की श्रृंखला आज भी जारी है, लेकिन प्रश्न उठता है शिवाजी ही क्यों?

  • क्या सीखा हमने शिवाजी से?
  • क्या कोई प्रासंगिकता है शिवाजी जी की ?
  • आज के युग में पुन : शिवाजी महाराज की आवश्यकता है ?

ऐसे अनेक प्रश्न मेरे और शायद आपके मन में आते होंगे। शिवाजी कालजयी है, उन्होंने शोषित, पीड़ित, निराश हिन्दू समाज जो अपनी भूमि, आत्मसम्मान लगभग खो चुका था। उस समय औरंगजेब दार-उल-हर्ब को दार-उल- इस्लाम में बदलना चाहता था, ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में समाज को जग्रत कर संगठित करना , सीमित संसाधनों से विराट राज्य निर्माण का स्वप्न 1627 में जन्मे शिवाजी ने देखा, जिस उम्र में लोग निर्णय नहीं ले पाते, मात्र 16 वर्ष की आयु में अपनी विजय यात्रा प्रारम्भ की। बीजापुर के अफ़ज़ल खां को मारा, आगरा में औरंगजेब की कैद से मुक्त होकर 1674 में अपना राज्याभिषेक करवाया और हिन्दू धर्म उद्धारक, गौ- ब्राह्मण-प्रतिपालक की उपाधि ली।

सोई हुई हिन्दू शक्ति को 400 वर्षो के बाद उन्हें एक साम्राज्य दिया, जो स्वराज्य में परिवर्तित होकर अटक से कटक तक एवं गुजरात से बंगाल तक विस्तृत हुआ। इसी हिन्दू स्वराज्य की अवधारणा आने वाले समय में चाफेकर बंधू, तिलक और वीर सावरकर में भी दिखाई दी।

शिवाजी ने कहा “युद्ध शौर्य प्रदर्शन के लिए नहीं, विजय प्राप्ति के लिए होते है” उन्होंने इतिहास से सबका सीखा, क्यों राजपूतो की तुर्को से पराजय हुई? उन्होंने पाया कि राजपूतो की उदारता, समाजिक विभाजन, नियमबद्धता आदि ने देश पर तुर्को के शासन को लाद दिया है। शिवाजी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने युद्ध में व्याहारिक नीति को अपनाया, जैसे को तैसा।

स्वयं अटल बिहारी बाजपेयी जी ने कहा था कि जब देश पर ग़ज़नवी एवं गौरी के आक्रमण हो रहे थे, और समाज चार वर्णो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में बटा हुआ था, देश की रक्षा की जिम्मेदारी केवल क्षत्रिय वर्ण के पास थी, इसीलिए जिस देश की आबादी का अधिकांश भाग युद्ध से बाहर रहकर, युद्ध के निर्णय का इंतज़ार कर रहा हो, उस देश का पतन सुनिश्चित है।
शिवाजी महाराज ने इस बात को समझा कि साम्राज्य को स्वराजय में बदलने के लिए सामाजिक समरसता आवश्यक है। शिवाजी महाराज के गुरु रामदास जी ने सामाजिक सद्भाव एवं सामाजिक एकता स्थापित करने को कहा, इसीलिए उन्होंने हर वर्ग, हर जाति और धर्म के लोगो को जोड़ा। उनकी सेना में मावले जाति के लोग थे, सेना में मुस्लिम सैनिक थे, पन्हालगढ़ की घेराबंदी में नकली शिवाजी बनने वाला शिवा कासिद नाई था, आगरा में मददगार मदारी मेहतर था, ऐसे अनेक उदहारण है। कुल मिलकर उनके साम्राज्य में मछुआरे से लेकर वेदपाठी ब्राह्मण शामिल थे। उनके हिन्दू राष्ट्र का तात्पर्य – “जो सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक रूप से सनातन के सिद्धांतो पर आधारित हो”

शिवाजी का प्रशासन का आधार स्वराज्य से सुराज्य का था, जिसमे सबके लिए सामान नियम थे, कोई भेदभाव नहीं।
आज से 350 वर्ष पूर्व स्वराज, स्वधर्म, स्वभाषा, स्वदेश का पुनरुत्थान किया और यही विचार आधुनिक काल में ‘राष्ट्रवाद’ का आधार बना, जिसे आगे चलकर तिलक और महात्मा गाँधी ने अपनाया। तिलक जी ने शिवाजी उत्सव को प्रारम्भ किया।
शिवाजी का अष्टप्रधान, आज के मंत्रिमंडल की भांति एक विशेषज्ञ समूह था। शिवाजी महाराज कहा करते थे “स्वराज्य संस्थापना, एक ईश्वरीय कार्य है, मैं इस ईश्वरीय कार्य का केवल एक सिपाही हूँ” अर्थात उन्होंने राजा होते हुए भी स्वयं को सिपाही माना, यही आदर्श लोकतंत्र में प्रधान सेवक के रूप में दिखाई देता है।

शिवाजी महाराज से हमने सीखा:- अपनी संस्कृति का सम्मान करना, सही ज्ञान और कौशल से युक्त एक टीम का विकास, विपरीत परिस्थितियों में आत्मविश्वास और साहस बनाये रखें और ईश्वर पर विश्वास रखना, अधर्म – अत्याचार पर विजय पाने के लिए कूटनीति का प्रयोग करना, सफलता प्राप्ति के मार्ग में विनम्र रहे और जमीन से जुड़े रहे, राष्ट्र एवं धर्म सर्वोपरि।

शिवाजी के जीवन से जुडी एक कहानी लिस्बन के आर्काइव से मिलती है, गोवा के पुर्तगाली गवर्नर का नौकर, जो शिवाजी महाराज के किलेदार रावजी सोमनाथ पतकी का रिश्तेदार था। पुर्तगाली गवर्नर ने अपने नौकर जो बात पूँछी वही बात उसने रावजी सोमनाथ पतकी से पूँछी – “शिवाजी महाराज इतना झगड़ा-झंझट क्यों करते है? सुख से रह सकते है ? क्या चाहते है?” जब सोमनाथ पतकी ने शिवाजी महाराज से पूछा तब शिवाजी महाराज ने उत्तर दिया – “सिंधु से दक्षिण तक हमारी भूमि है, इसमें से विदेशी लोगो को बाहर करना, जो तीर्थ स्थल उन्होंने ध्वस्त किये है, उनका निर्माण करना, अपनी धर्म, संस्कृति, समाज का सरंक्षण करना तब तक यह संघर्ष जारी रहेगा” आज भी वर्तमान चुनौतियों से निपटने के लिए पुन : शिवाजी महाराज की आवश्यकता है।

Where was the Maratha Empire located? - Quora

यद्यपि शिवाजी महाराज के पश्चात् पेशवाई ने स्वराज्य को आगे बढ़ाया, स्वयं मुग़ल अपनी सुरक्षा के लिए मराठो पर निर्भर थे। इसीलिए यह भ्रम की अंग्रेज़ो ने भारत को मुगलो से जीता है झूठ है, मुग़ल साम्राज्य लाल किले तक ही सीमित था। वास्तव में अंग्रेज़ो ने भारत को मराठो से जीता था। लेकिन मराठे क्यों पराजित हुए? क्योंकि शिवाजी महाराज के आदर्शो, मूल्यों, नीतियों की निरंतरता को बनाये रखने के लिए कोई और शिवाजी नहीं था।

आज भी हमें राष्ट्र निर्माण के लिए ‘स्व’ के विचार को प्राविहित करने के लिए शिवाजी महाराज जैसे नेतृत्वकर्ताओ की श्रंखला बनानी होगी। इस हेतु शिवाजी के आदर्शो के साथ-साथ अध्यात्म एवं मातृशक्ति की आवश्यकता होगी। जीजाबाई के रूप में मातृशक्ति के रूप में शिवाजी जैसे वीर युवको को जन्म देना होगा। राष्ट्रनिर्माण की आध्यात्मिक चेतना हेतु समर्थ गुरु जैसे संतो की आवश्यकता होगी तब कही जाकर भारत विश्व गुरु बन सकता है।

लेखक – दीपक द्विवेदी