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हसीना की मीठी बातों से बचें क्योंकि पहले आये शरणार्थी ही बोझ बने हुए हैं

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना आज भारत की चार दिनी यात्रा पर आ रही हैं | हमारे निकटस्थ पड़ोसियों में बांग्लादेश ही है जिससे अनेक विरोधाभासों के बावजूद आपसी समबन्ध बेहतर हैं |

सीमा संबंधी विवादों को दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व द्वारा समझदारी से सुलझा लिए जाने से पूर्व में उत्पन्न तनाव काफी कम हुआ है | इस पड़ोसी के साथ सांस्कृतिक रिश्ते भी काफी प्रगाढ़ हैं | भाषायी समानता की वजह से साहित्य और संगीत के क्षेत्र में काफी साम्यता है | 

बांग्लादेश में हिन्दू जनसँख्या भी काफी है और उनके धर्मस्थान भी | हालाँकि ये भी कटु सत्य है कि देश के विभाजन के बीज भी अविभाजित बंगाल में पहले अंग्रेजों और बाद में मुस्लिम नेताओं द्वारा ही बोये गये थे |

यद्यपि 1971 में पूर्वी पाकिस्तान की जगह बांग्लादेश नामक नये देश के उदय में भारत की ही भूमिका रही | हमारी सेना ने पाकिस्तानी फौजी अत्याचारों से इसे मुक्त करवाते हुए जो इतिहास रचा उसे भुलाया जाना असम्भव है |

शुरुआती दौर में तो सब अच्छा – अच्छा चलता रहा लेकिन 1975 में शेख मुजीब की हत्या के बाद यह देश भारत विरोधी मानसिकता रखने वालों के हाथ आ गया जिन्होंने सारे एहसान भूलकर शत्रुवत व्यवहार करना शुरू कर दिया | सबसे दुखद बात ये रही कि जिस पाकिस्तान ने लगभग ढाई दशक तक बंगाली अस्मिता को अपमानित किया उसी के साथ मिलकर बांग्लादेश के हुक्मरान भारत में आतंकवादी गतिविधियां संचालित करने वाले इस्लामिक कट्टरपंथी संगठनों को आश्रय देने लगे |

भारत में घटित अनेक बड़ी आतंकवादी घटनाओं में इन संगठनों की भूमिका सामने आ चुकी है | ये भी चिंता का विषय है कि शेख हसीना के कार्यकाल में भी बांग्लादेश में हिन्दू धर्मस्थलों पर वैसे ही हमले होते रहते हैं जैसे पाकिस्तान में देखने मिलते रहे | यही नहीं सदियों से वहां रह रहे हिन्दुओं के साथ बांग्लादेशी मुसलमानों का रवैया भी दिन ब दिन खराब होता जा रहा है | ये तो सारी दुनिया जानती है कि 1971 गृहयुद्ध शुरू होते ही बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लोग सीमा पार करते हुए भारत में आ गये जिन्हें हमने मानवीयता के आधार पर शरणार्थी शिविरों में बसाया | लेकिन ये वापिस नहीं लौटे और वोट बैंक की राजनीति का लाभ उठाकर नागरिक बन बैठे | आज पूरे देश में इनका फैलाव हो चुका है |

प. बंगाल और असम के अलावा बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और दिल्ली में इनकी संख्या काफी है | असम में तो 1971 के पहले से ही बांग्लादेश से अवैध रूप से आये मुसलमानों को बसाए जाने का षडयंत्र रचा जाता रहा | जिसके कारण बड़े इलाके मुस्लिमबहुल हो गए |

प. बंगाल में भी पहले वामपंथी और बाद में. ममता सरकार ने बांग्लादेश से आये मुस्लिमों के प्रति नर्म रुख दिखाते हुए उनको स्थायी रूप से बसने में सहायता और संरक्षण दिया | इन विदेशी नागरिकों को वापिस भेजने की बात तो दूर रही इनकी पहिचान करने के लिए की जाने वाली व्यवस्था का भी विरोध एक तबका करता है |

बांग्लादेश ने भी आज तक उनकी वापसी की इच्छा नहीं जताई | ये भी सत्य है कि आज भी वहां से अवैध घुसपैठ जारी है | लेकिन बीते कुछ सालों में म्यांमार (बर्मा) से आये रोहिंग्या मुसलमान बड़ी समस्या बन गये हैं | इनके साथ सबसे बड़ी समस्या इनका अपराधी प्रवृत्ति का होना है |

शुरू – शुरू में तो मानवीय आधार पर भारत ने इनको पनाह दी लेकिन जैसे ही इनके खतरनाक इरादे उजागर हुए त्योंही इनके विरोध में आवाजें उठीं | लेकिन फिर राजनीति आड़े आने लगी और रोहिंग्या भी अनेक शहरों में बसने लगे | देश विरोधी अनेक घटनाओं में इनका हाथ साबित हुआ है | ये मूल रूप से किस देश के हैं इस पर विवाद है | हालाँकि दो – तीन पीढ़ी पहले इनके पूर्वजों का बांग्लादेश से जाकर म्यांमार के सीमावर्ती इलाकों में डेरा ज़माने के प्रमाण मिले हैं | धीरे – धीरे ये वहां समस्या बनने लगे | मूल म्यामांरवासियों के साथ इनके झगड़े जब बेकाबू होने लगे तब वहां की सेना और सरकार ने सख्ती दिखाते हुए इन्हें खदेड़ना शुरू किया जिस पर ये भागकर बांग्लादेश और भारत में आ गये | शेख हसीना की यात्रा इसी को लेकर है | यहाँ आने के पहले ही उन्होंने कूटनीतिक भाषा में भारत की शान में कसीदे पढ़ते हुए उनके देश में बसे रोहिंग्या को बोझ बताकर कहा कि भारत बड़ा देश होने के नाते उनका समायोजन कर बांग्लादेश की मदद करे | इस बारे में विश्व बिरादरी से रोहिंग्या मुसलमानों को म्यामांर वापस भेजने की व्यवस्था हेतु चर्चा किये जाने की बात भी उन्होंने कही | शेख हसीना बेशक भारत की शुभचिन्तक हैं लेकिन रोहिंग्या मुसलमान जितने उनके लिए समस्या हैं उससे ज्यादा भारत के लिए, जो कि पहले से ही बांग्लादेशी शरणार्थियों के बोझ से दबा हुआ है | और फिर रोहिंग्या तो स्वभाव से ही उपद्रवी हैं जिनके पाकिस्तान प्रवर्तित आतंकवादी संगठनों से रिश्ते उजागर हो चुके हैं | इसके अलावा श्रीलंका में उत्पन्न संकट की वजह से तमिल शरणार्थी भी तमिलनाडु में आ गये हैं | इसीलिये भारत को शरणार्थियों की आश्रयस्थली कहा जाने लगा है | उनके कारण न सिर्फ हमारी अर्थव्यवस्था अपितु आन्तरिक सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा हो गया है | शेख हसीना अपने राष्ट्रीय हितों के लिए भारतीय भारतीय नेतृत्व को प्रभावित करने की कोशिश करेंगी | लेकिन उनकी बातों में आने की बजाय हमे उलटे उन पर दबाव बनाना चाहिए कि वे बांग्लादेशी नागरिकों की वापसी का रास्ता निकालें | इसके साथ ही हिन्दू धर्मस्थलों पर होने वाले हमलों और हिन्दुओं के साथ दुर्व्यवहार के प्रति भी नाराजगी खुलकर जतानी चाहिए | हमारी सज्जनता को पड़ोसी देशों द्वारा सदैव कमजोरी समझा गया है जबकि भारत ने हर संकट में मदद का हाथ बढ़ाया | ऐसे में अब जबकि शरणार्थी समस्या हमारे लिए ही असहनीय बनती जा आ रही है तब शेख हसीना का यह सोचना कि बड़ा देश होने से हम उनके रोहिंग्या शरणार्थियों को भी समायोजित करें, किसी भी दृष्टि से उचित प्रतीत नहीं होता |

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चाहिए वे इस बारे में कड़ा रुख अपनाएं वरना निकट भविष्य में ये शरणार्थी हमारे लिए उसी तरह समस्या बन जायेंगे जैसी फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन आदि भुगत रहे हैं | याचक बनकर आना और फिर मालिक बनकर हक जताना इन शरणार्थियों का चरित्र जो है |

लेख़क – रवीन्द्र वाजपेयी