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हिंदू नववर्ष व चैत्र शुक्ल प्रतिपदा/नवरात्रि देवी आराधना/आध्यात्मिकता का पर्व

हिंदू संस्कृति विश्व/ सृष्टि की प्रथम व अनादि संस्कृति, सनातन संस्कृति, मानवीय, आध्यात्मिक, देव संस्कृति है। हिंदू सनातन संस्कृति का पंचांग वैज्ञानिक पंचांग है। हिंदू पंचांग सृष्टि संवत के द्वारा इस सृष्टि की आदि काल से वर्तमान तक के काल की गणना करता है।
वेद कहता है-
काल: सृजती भूतानि ,काल:संहरते प्रजा:।।
अर्थात- विराट कॉल (महाकाल) से सृष्टि का उद्भव (उत्पत्ति) हुआ है। वह काल ही इस सृष्टि को निगल जाता है। इस सृष्टि में उत्पत्ति- स्थिति- प्रलय की प्रक्रिया/चक्र निरंतर चल रहा है। अतः एक से अधिक बार प्रलय हो चुका है। मनुस्मृति व मत्स्य पुराण इसके साक्षी हैं। भारतीय पंचांग/कैलेंडर से सारा विश्व ब्रम्हांड चल रहा है। इसमें वैज्ञानिकता, ऐतिहासिकता ,आध्यात्मिकता का समन्वय है। प्रत्येक कर्म/तथ्य में गूढ़ रहस्य व वैज्ञानिकता, लॉजिक है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा दो ऋतुओं का संधिकाल है। दो आयनों का मिलन, नवरात्रि की आराधना, आध्यात्मिक साधना का शुभारंभ इसी दिन से होता है। यह साधना काल व्रत उपवास का का शुभारंभ काल है। इसी दिन नवीन पंचांग संवत्सर का शुभारंभ होता है। अतः यह दिवस भारतवर्ष के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भारतीय पंचांग में बड़ी वैज्ञानिकता, आध्यात्मिकता ऋषियों के द्वारा निर्मित सनातन गणना का समन्वय है। जिस तरह हमारी दिनचर्या में दिन-रात प्रतिदिन एक निश्चित समय के पश्चात आते हैं। वैसे ही एक विराट कालचक्र इस सृष्टि में चल रहा है जो इस सृष्टि का नियमन करता है।
भगवान श्री कृष्ण श्रीमद्भागवत गीता में कहते हैं – अक्षयकालोस्मि’ मै ही अनंत काल हूं। सब मुझसे ही उत्पन्न होकर सब मुझ में ही विलीन हो जाता है। परमात्मा- कॉल- सृष्टि तीनों ही अनंत है। तीनों ही समानांतर हैं। अर्थात तीनों ही एक ही है। अतः परमात्मा ही विराट अनंत काल के रूप में अपना विस्तार करते हैं। वह सृष्टि का उद्भव -संचालन भी वे स्वयं ही करते हैं। महाभारत में एक प्रश्न के उत्तर में महामुनि सुखदेव कहते हैं–
“कलयति सर्वाणि भूतानि” अर्थात जो सबको निगल जाता है। वह महाकाल/अक्षय कॉल/अनंतकाल स्वरूप है।
अर्थात – सब उससे उत्पन्न होकर सब उसी (काल) में समा जाता है। काल अत्यंत शक्तिशाली है। इसलिए कहावत है कि –
“मनुज नहीं बलवान, समय बड़ा बलवान।”
अलग-अलग ग्रहों पर व अलग-अलग लोकों में काल की गणना भी अलग-अलग है। जैसे चंद्र ,मंगल, शनि पर काल की गणना भिन्न-भिन्न है । वैसे ही पृथ्वी लोक व ब्रह्म लोक में समय की गणना भिन्न- भिन्न है। उदाहरण के लिए जब ब्रह्मलोक में कुछ क्षण बीतते हैं तब पृथ्वी पर हजारों युग बीत जाते हैं उतने समय में। अर्थात देवलोक का एक दिवस पृथ्वी लोक में एक कल्प कहलाता है। जो समय की वृहत्तम इकाई है (4 अरब 32 करोड़ वर्ष)। इसी समय को विस्व विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने ‘सापेक्षता का सिद्धांत’ Theory of Relativity मे E = mc2 के माध्यम से समझाया था।
सारे विश्व को विवाह मुहूर्त, शुभ कार्य, संस्कार, लग्न, जन्मदिन, सुदीन तिथि, ग्रह प्रवेश, भवन निर्माण, सगाई, विदाई, पूजन, स्थापना इत्यादि के लिए भारतीय हिंदू पंचांग की ही शरण में आना पड़ता है। भारतीय पंचांग में तिथि, घड़ी ,मुहुर्त, नाड़ी, दिशाशूल, नक्षत्र ,राशि, दिशाएं, लव -निवेश, ग्रह, लोक शुभ -अशुभ, घड़ी, चौघड़िया इत्यादि की वैज्ञानिकता का समावेश है। भारतीय कालगणना/पंचांग में अति सूक्ष्म समय का मापन है। उदाहरण के लिए 1 परमाणु काल = 37968 वां हिस्सा 1 सेकंड का। यहां से भारतीय हिंदू पंचांग का शुभारंभ होता है। सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण की सूक्ष्म गणना भारतीय पंचांग में वर्ष पहले ही करके कैलेंडर में लिख दी जाती है। उतने ही बजे वह ग्रहण पड़ता है। एवं भविष्य में पड़ने वाले ग्रहण इस प्रकार का ग्रहण कितने वर्ष बाद पड़ेगा यह भी बता दिया जाता है।
इस कलयुग के आरंभ के समय की गणना करते हुए हिंदू पंचांग कहता है कि – वर्तमान कलयुग का आरंभ भारतीय गणना से, ईशा से 3102 वर्ष पूर्व 20 फरवरी को 2 बज कर 27 मिनट तथा 30 सेकंड पर हुआ था। उस समय सभी ग्रह एक ही राशि में थे। इस संदर्भ में यूरोप के प्रसिद्ध खगोलबेत्ता ‘बेली’ का कथन दृस्टव्य है-
“ब्राह्मणों के द्वारा की गई गणना हमारे खगोलीय टेबल द्वारा पूर्ण तरह प्रमाणित होती है। इसका कारण और कोई नहीं अपितु ग्रहों के प्रत्यक्ष निरीक्षण के कारण यह सामान परिणाम निकला है।”
( Theogony of hindus,by Bjornstjerna P.32 )
हिंदू पंचांग के अनुसार एक ब्रह्मांड की आयु (एक ब्रह्मा की आयु)31 नील 10 खराब 40 अरब वर्ष है एवं पृथ्वी का निर्माण हुए 1, 96,08 ,53,122 (एक अरब छियन्वे करोड़ आठ लाख त्रेपन हजार ऐक सौ बाईस वर्ष) बीत चुके हैं। दुनिया में समय का इतना वृहत्तम माप भारत के अलावा किसी और के पास नहीं है।
भारतीय मनीषा कि इस गणना को देखकर यूरोप के प्रसिद्ध ब्रह्मांड विज्ञानी ‘कार्लसेगन’ ने अपनी पुस्तक Cosmos कॉसमॉस में कहा- ” विश्व में हिंदू धर्म एकमात्र ऐसा धर्म है। जो इस विश्वास पर समर्पित है कि इस ब्रह्मांड में उत्पत्ति और लय की एक सतत प्रक्रिया चल रही है। और यही एक धर्म है, जिसने समय के सूक्ष्मतम से लेकर वृहतम माप् जो समान्य दिन रात से लेकर 8 अरब 64 करोड़ वर्ष के ब्रह्मा दिन रात तक की गणना की है। जो स्ंयोग से आधुनिक खगोलीय मापों के निकट है । यह गणना पृथ्वी व सूर्य की उम्र से भी अधिक है। तथा इनके पास और भी लंबी गणना के माप हैं।”
शांतिकुंज -हरिद्वार के मनीषी ,गायत्री साधक प .नमो नारायण पांडे जी ब्रह्मांड की चर्चा करते हुए कहते हैं कि – ” ‘सविता’ गायत्री का देवता है किंतु सविता व सूर्य एक नहीं है। बूंद व सागर ,बीज व वृक्ष बराबर अंतर है दोनों में। ब्रह्मांड में अनंत सूर्य हैं। उन्हीं में से एक हमारा सूर्य है अपनी आकाशगंगा में। ब्राह्मण्ड में करोड़ों आकाश गंगाऐं हैं। रोज सूर्य पैदा होते हैं व मरते हैं । सूर्य जब सभी ग्रहों को निगल लेगा तभी वह मरेगा। सृष्टि में सूर्य से भी ऊपर बहुत कुछ है। पृथ्वी सूर्य से उत्पन्न (निर्भर) है व चंद्रमा पृथ्वी से। जैसा हम सभी जानते हैं कि बच्चा अपनी मां के आस -पास ही घूमता है। ब्रह्मांड में एक ‘अतिसूर्य’ है। सभी सूर्य उस अतिसूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। उसी से सभी सूर्यों की उत्पत्ति हुई है। यह सभी सूर्य भी अतिसूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। अतिसूर्य की उत्पत्ति महासूर्य से है। सभी अतिसूर्य भी महासूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। महासूर्य ही ‘सविता’ गायत्री का देवता है। परब्रह्म है।वही उत्पत्ति- पालन -संहार कर्ता है। उसी में यह जगत लय होता है । वही ‘अनादि ईश्वर’ है।”
पश्चिमी जगत के समय पर रिसर्च करने वाले वैज्ञानिक ‘स्टीफन हॉकिंस’ the brief history of time में लिखते हैं कि – “सृष्टि व समय एक साथ प्रारंभ हुए जब ब्रह्मांड उत्पत्ति की करणी भूत घटना आदिद्रव्य में बिग -बैंग (महा विस्फोट) हुआ और इस विस्फोट के साथ ही अव्यक्त अवस्था से ब्रह्मांड व्यक्त अवस्था में आने लगा । इसी के साथ समय भी उत्पन्न हुआ अतः सृष्टि और समय एक साथ प्रारंभ हुए।”
स्टीफन हॉकिंस की ‘बिग- बैंग थ्योरी ‘ भी विश्व की उत्पत्ति की थोड़ी सी, धुंधली सी व्याख्या मात्र करता है। क्योंकि जब space (अंतरिक्ष) व matter (पदार्थ) था ही नहीं तो फिर पिण्ड कहां से आया व कैसे विस्फोट हो सकता है??? किंतु भारत के ऋग्वेद के ‘नसदीय सूक्त’ में सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए कहता है कि – “तब ना सत था, ना असत था। ना परमाणु था ना अवकाश, तो उस समय क्या था? तब न मृत्यु थी, न अमृत्व था ,न दिन था न रात थी। उस समय स्पंदन शक्तियुक्त वह एक तत्व था। सृष्टि पूर्व अंधकार से अंधकार ढका हुआ था। और तप की शक्ति से युक्त एक तत्व था। सर्वप्रथम इच्छाशक्ति के प्रभाव से वह साम्यावस्था टूटी और अव्यक्त (सूक्ष्म अवस्था) अवस्था से स्थूल अवस्था में ब्रह्मांड की उत्पत्ति प्रारंभ हुई। इसके साथ ही काल की भी यात्रा प्रारंभ हुई। इस प्रकार काल की ,सृष्टि की यात्रा साथ- साथ चलती है। अतः सृष्टि ,समय व इतिहास की यात्रा व आयु समान है।
महामुनी सुखदेव कहते हैं कि- ” विषयों का (रूपांतर) बदलना ही काल का आकार है। उसी को निमित्त बना वह काल तत्व अपने को अभिव्यक्त करता है। वह अव्यक्त से व्यक्त होता है। अतः कॉल अनंत (अक्षय ) व अमूर्त है ।सब उसी से उत्पन्न होकर उसी में समा जाता है। एवं परब्रह्मा परमात्मा (भगवान) का एक रूप विराटकाल (महाकाल) भी है।”
विदेशी कालगणना में अनेकों विसंगतियां है। चिल्ड्रंस ब्रिटानिका वॉल्यूम 1.3 ,1964 में कैलेंडर का इतिहास बताया गया है ।अंग्रेजी कैलेंडर में अनेकों बार संशोधन करने पड़े हैं । इसमें वर्ष की गणना सूर्य की गति पर आधारित है। पश्चिमी जगत के लोगों ने ईसा के जन्म को इतिहास की निर्णायक घटना माना ।अतः कालक्रम को B.C. ( befor christ ) और A.D. (Anno domini) अर्थात In the year of our lord में बांटा गया ।किन्तु यह पद्धति ईसा के जन्म के कुछ सदियों तक प्रचलन में नहीं आई। रोमन कैलेंडर- आज के ईश्वी सन का मूल रोमन संवत् है । यह ईसा के जन्म के 753 वर्ष पूर्व रोम नगर की स्थापना से प्रारंभ हुआ। तब इसमें 10 माह थे।( प्रथम माह मार्च से अंतिम माह दिसंबर तक) 304 दिन का वर्ष होता था। बाद में राजा नूमा पिम्पोलीम्स ने 2 माह (जनवरी-फरवरी) जुड़वा दिए ।तबसे वर्ष 12 माह अर्थात 355 दिन का हो गया। यह ग्रहों की गति से मेल नहीं खाता था। तब जुलियस सीजर ने इसे 365 और 1/4
दिन करने का आदेश दिया। इसमें कुछ माह 30 व 31 के बनाए और फरवरी 28 का रहा जो 4 वर्षों में 29 का होता है। जिसे लीप ईयर कहा गया। इस प्रकार यह गणना प्रारंभ से ही अवैज्ञानिक, असंगत, असंतुलित, विवादित एवं काल्पनिक रही । जिनका कोई खगोलीय, भूमंडलीय ,प्रकृति सम्मत आधार नहीं है । बाइबल के अनुसार दुनिया की आयु मात्र 8000 वर्ष है।तब हम सोच सकते हैं कि,,,,।
भारतीय उत्सवों में भावनाओं के साथ- साथ सत्य ,ज्ञान -विज्ञान ,तर्क ,इतिहास ,संस्कृति का आधार है । भारतीय नव वर्ष के पीछे भी वैज्ञानिकता, ऐतिहासिकता ,तार्किकता व सत्यता है। ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि का निर्माण प्रारंभ किया था। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यह भारतीय नव वर्ष भी है। यह देवी आराधना/आध्यात्मिक शक्ति/ उपासना का आरंभ दिवस है। यह दिवस हिंदू नव संवत्सर का प्रारंभ है। इसी दिन भगवान राम व युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था। यह दिवस शक्ति व भक्ति का आरंभ दिवस है। यह विक्रमी संवत का आरंभ दिवस भी है। इसी दिन राजा शालिवाहन ने हुर्णो को परास्त कर शक संवत का प्रारंभ किया था।
भगवान झूलेलाल व गुरुअंगद देव का प्राकट्य दिवस भी है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिवस आर्य समाज की स्थापना की थी। इसी दिन संघ संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार जी का जन्म दिवस भी है। इसी दिन से वसंत ऋतु का आरंभ होता है। प्रकृति में नूतनता, कोमलता, सृजनात्मकता का संचार होता दिखाई देता है। नवीन पुष्प,कोपलें , सुगंध, श्रंगार प्रकृति में अनुभूत दृश्य है।
अतः भारतीय संस्कृति विश्व की प्रथम, अनादी संस्कृति है। जिसका हिंदू सनातन पंचांग वैज्ञानिकता ,ऐतिहासिकता, महत्ता से भरा हुआ है। यह हिंदू पंचांग ऋषियों की प्रज्ञा ,सूक्ष्म वैज्ञानिक दृष्टि,गहन शोध व काल की सूक्ष्म गणना पर आधारित है। यह भारत वर्ष का विश्व को अजस्र अनुदान है। यह अद्वितीय, अनुपम व अतुल्य है। यह संपूर्ण विश्व को अनादिकाल से प्रकाशित, मार्गदर्शन करता आ रहा है। यह ईसा व मूसा के जन्म से करोड़ों- असन्ख्यो वर्ष पूर्व से है। इसकी वैज्ञानिकता कि विश्व के मूर्धन्य विद्वान मुक्त कंठ से प्रशंसा करते नहीं थकते हैं। यह भारतीयों की विरासत है। जिस पर प्रत्येक भारतवासी को गर्व होना चाहिए।
लेखक- डॉ. नितिन सहारिया