हिंदू शब्द अति प्राचीन व व्यापक अर्थ को समाहित किए हुए हैं। अनादि काल से दैवी चेतना/ सत्य सनातन धर्म/ अध्यात्म का जो अखंड प्रवाह चला आ रहा है उसे ही हिंदू / भारतीय / आर्य /वैदिक /सनातन/देव संस्कृति इत्यादि नामों से पुकारा गया है। इसे ही ‘अध्यात्म’ Spiritual शब्द से भी संबोधित किया गया है। यह अनादि Beginning less अनंत Infinite अखंड Monolithic अतुल्य Incredible अद्वितीय Unique अनुपम Matchless है।
इस हिंदू विचारधारा का मानना है कि सृष्टि के कण-कण में, संपूर्ण चराचर में एक ही दिव्य परमात्म चेतना Divine energy व्याप्त है। वही जड़ -चेतन, अणु -अणु , वृक्ष- वनस्पति ,जीव- अजीब- सजीव ,संपूर्ण चराचर में व्याप्त है। यह सारा जगत ही उसकी अभिव्यक्ति /कृति है। इसलिए श्रीरामचरितमानस में चौपाई आती है कि-
सकल विश्व यह मोर उपाया। सब पर कीन्ही समानी दाया।।
तथा उपनिषद में कुछ इस तरह से व्यक्त किया गया है कि –
“ईशावाश्य मिदम्ं सर्वं यत किंचित जगतत्यां जगत”
अथवा
“हरि व्यापक सर्वत्र समाना “
संत टुकड़ोंजी महाराज इन शब्दों में इसे व्यक्त करते हैं-
हर देश में तू ,हर वेश में तू । तेरे नाम अनेक ,तू एक ही है ।। तेरी रंगभूमि, यह विश्वंभरा । सब खेल में मेल में, तू ही तो है ।।
हिंदू धर्म शाश्वत/ कालजयी है। यह Eternal law of Universe ‘ब्रह्मांड का शाश्वत नियम (धर्म)’ है। यह ईश्वर द्वारा निर्मित है। इसे ही कालांतर /इतिहास में मानवधर्म/ भारतीय/वैदिक /आर्य /सनातन इत्यादि नामों से पुकारा गया है। यह मूल्य आधारित आध्यात्मिक धर्म है।
हमारे देश की एक आत्मा ‘चिति’ है। जिसे हम हिंदुत्व के नाम से जानते हैं। इस हिंदुत्व की प्रथम अभीव्यक्ति हमारे वैश्विक विचार के रूप में हुई, तत्वज्ञान के रूप में हुई उसी को हम हिंदू दर्शन कहते हैं। इसमें अनुभव किया गया है कि मूल में एक ही तत्व है। जड़ -चेतन सब कुछ वही है। कहीं चींटी से भी अणु परमाणु बना ,सब जीव जगत का रूप लिया, कहीं पर्वत वृक्ष विशाल बना, सौंदर्य तेरा तू एक ही है। जिसे वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ऊर्जा Energy कहते हैं। तो महर्षि व्यास अपने’ ब्रह्मसूत्र ‘में ‘ परम चेतना ‘ के रूप में वर्णन करते हैं। यह संपूर्ण जगत उसी परमात्म चेतना के सूक्ष्म रुप से स्थूल में उत्पन्न हुआ है। व अंत में उसी सूक्ष्म चेतना में लीन/ विलीन हो जाता है। वही सर्व व्यापक, अखंड,नित्य ,अनादि सनातन है। अकाल पुरुष भी वही है। वही उत्पत्ति -पालन- संहारकर्ता है। इसी परमात्म चेतना /भगवत/ दैवी चेतना/ परब्रह्म की आराधना- उपासना- भक्ति में सदा लीन रहने के कारण हिंदुस्तान को ‘भारत’ के नाम से भी जाना जाता है। ‘भा’ अर्थात दिव्य प्रकाश है।
महर्षि अरविंद कहते हैं कि- “जिसे हम हिंदू धर्म कहते हैं। वह वास्तव में सनातन धर्म है, क्योंकि यही वह विश्वव्यापी धर्म है जो दूसरे सभी धर्मों का आलिंगन करता है। यदि कोई धर्म विश्वव्यापी ना हो तो वह सनातन भी नहीं हो सकता।”
“इस एकांतवास में, मेरे अंदर क्या हुआ, यह कहने की प्रेरणा नहीं हो रही, बस इतना काफी है कि वहां दिन- प्रतिदिन भगवान ने अपने चमत्कार दिखाएं और मुझे हिंदू धर्म के वास्तविक सत्य का साक्षात्कार कराया। पहले मेरे अंदर अनेक प्रकार के संदेह थे। मेरा लालन-पालन इंग्लैंड में विदेशी भावों और सर्वथा विदेशी वातावरण में हुआ था। एक समय मैं हिंदू धर्म की बहुत सी बातों को मात्र कल्पना समझता था, यह समझता था कि इसमें बहुत कुछ केवल स्वप्न, भ्रम या माया है। परंतु अब दिन- प्रतिदिन मैंने हिंदू धर्म के सत्य को, अपने मन में, अपने प्राण में और अपने शरीर में अनुभव किया ।”
हिंदू धर्म की महानता के बारे में स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि –
“जो व्यक्ति अपने पूर्वजों के प्रति लज्जा का अनुभव करने लगे, तो समझो कि उसका अंत आ गया। यहां मैं हूं हिंदू जाति में से क्षुद्रतम घटक, फिर भी मुझे अपनी जाति पर गर्व है, अपने पूर्वजों पर गर्व है। मुझे अपने-आपको हिंदू कहलाने में गर्व है, मुझे गर्व है कि मैं आपका तुच्छ सेवक हूं। मुझे गर्व है कि मैं आप में से एक देशवासी हूं; आप जो ऋषियों के वंशज हैं। विश्व के सर्वाधिक गौरवशाली ऋषियों के वंशज।”
“I am proud to call myself a Hindu.”
(-‘Lectures from Colombo to Almora’)
हिंदू धर्म साम्यवादी नहीं समन्वयवादी, मानवतावादी है। सबमें समांजस्य निर्माण करके चलना, विविधता को ग्रहण करना, व्यवस्था की रचना करते हुए अधिकाधिक विशाल समष्टि का निर्माण करते जाना यही मानवीय मार्ग है। हिंदुओं के राष्ट्रधर्म की परंपरा मानव परंपरा है। इसीलिए ‘मनुस्मृति’ के प्रत्येक अध्याय के अंत में ‘इति मानव सूत्राणि’ लिखा हुआ है। जैसे देह में हृदय है वैसे ही संसार में भारत का स्थान है। हृदय अपने लिए कुछ नहीं चाहता है, लेकिन यदि उसका स्पंदन बंद हो जाए तो शरीर का विनाश हो जाएगा। दुनिया में मानव के लिए अगर कोई आश्रय स्थान है तो वह केवल भारतवर्ष है। श्रेष्ठ सिद्धांतों, आदर्शों, मूल्यों पर सच्ची श्रद्धा रखकर बर्ताव करने वाले केवल हिंदुस्तान के हिंदू हैं। यदि हिंदुओं का स्वधर्म बिछड़ता रहा तो मानवता का संकुचन होगा।
इसी संदर्भ में योगी अरविंद कहते हैं कि-
“भारतवर्ष, दूसरे देशों की तरह, अपने लिए ही या मजबूत होकर दूसरों को कुचलने के लिए नहीं उठ रहा है । वह उठा रहा है सारे संसार पर वह सनातन ज्योति बिखेरने के लिए जो उसे सौंपी गई है। भारत का जीवन सदा ही मानव जाति के लिए रहा है, उसे अपने लिए नहीं बल्कि मानव जाति के लिए महान होना है। “
महान वैज्ञानिक डॉ एपीजे कलाम ‘द इनसाइक्लोपीडिया ऑफ हिंदुइज्म’ के उद्घाटन अवसर पर कहते हैं कि-
” शक्ति की आराधना करनी चाहिए। उसको छोड़ दिया इसलिए हम हजारों वर्षों से गुलाम हैं। शक्ति सेना की, सरकार की, पुलिस की, शस्त्रों की नहीं होती ,शक्ति लोगों की होती है।”
हिंदुत्व के विषय पर संघ प्रमुख डॉ. मोहन राव भागवत कहते हैं कि-
“दुनिया की पीठ पर अगर कोई एक ऐसा देश है जो यदि इस दुनिया का सर्वेसर्वा बनेगा तो उससे दुनिया सुखी ,सुंदर, समृद्ध नई दुनिया बन जायेगी, तो वह एकमात्र ऐसा देश हमारा भारत ही है क्योंकि इसका यह स्वभाव है, इसकी यह संस्कृति है, जैसे मनुष्य का स्वभाव होता है वैसे ही राष्ट्र की प्रकृति होती है। और उसे ही राष्ट्र की संस्कृति कहते हैं। हमारे इस राष्ट्र की संस्कृति जनगणमंगलदायिनी हिंदू संस्कृति है।”
जैसे पुष्प में खुशबू है, जल में शीतलता, अग्नि में तेज है जिसे अलग नहीं किया जा सकता। वैसे ही इस हिंदुस्तान- भारतभूमि में हिंदू व हिंदुत्व है। हिंदुत्व ही इस राष्ट्र का राष्ट्रीयत्व /गुरुत्व /शक्ति /आत्मा है। अतः राम का रामत्व व कृष्ण का कृष्णत्व ही हिंदुत्व है ।
हिंदुत्व की यह दिव्य विश्वबंधुत्व की विचारधारा ही संकट ,विनाश की कगार पर खड़े संपूर्ण विश्व को सृजन – उज्जवल भविष्य के मार्ग पर ले जावेगी और विश्व में शांति, सौहार्द ,प्रेम का मंगलमय वातावरण निर्मित करेगी। तभी यह परमात्मा का विश्व उद्यान- विश्व वसुधा सुंदर व समुन्नत बनेगा । यही अब भारत की नियति है।