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प्रकृति वन्दन – भारतीय जीवन पद्धति का अभिन्न अंग…

प्रकृति वन्दन – भारतीय जीवन पद्धति का अभिन्न अंग…

भारतीय मनीषियों ने आविर्भाव काल से ही प्रकृति का महत्व अनुभूत कर लिया था और सामान्य जन में प्रसारित कर जन-जन को प्रकृति का संरक्षक बनाया. ऋग्वेद का नदी सूक्त एवं पृथिवी सूक्त, अथर्ववेद का अरण्यानी सूक्त, जिन में नदियों, पृथ्वी तथा वनस्पति के संरक्षण की बात कही गई है; इसके प्रमाण हैं।

वेदों में वन क्षेत्र को ‘अरण्य’ कहा गया है – अर्थात रण रहित शान्ति क्षेत्र. वनस्पति सम्पदा द्वारा धरा के समस्त प्राणियों का भरण पोषण करने वाले वन का युद्ध की विभीषिका से सुरक्षित रहना आवश्यक था।

संस्कृत भाषा के सम्पूर्ण ज्ञान के अभाव में विदेशी साहित्यकारों ने इनका उपहास करते हुए कहा कि आर्य लोग प्रकृति से डरते थे, इसलिए उसकी पूजा करते थे. अज्ञानतावश व हीन भावना के कारण समाज के एक वर्ग ने न केवल इस विचार को स्वीकार किया, बल्कि इसे प्रोत्साहित भी किया।

फलस्वरूप हिन्दू धर्म की जीवन पद्धति, जिसमें कंकर-कंकर में शंकर थे, गंगाजल से पूर्वजों का तर्पण था, बरगद व पीपल की महिमा थी; इन सब को अन्धविश्वास व ढकोसले कह कर खण्डन किया जाने लगा. इसका पऱिणाम दूषित वायु, मलिन जल व अपवित्र धरा के रूप में प्रकट हुआ.
प्रकृति जो चिरकाल से प्राणियों का पालन पोषण करती आई है।

प्रदूषण से कराह उठी. जिसका असर बनस्पति व प्राणियों पर लक्षित हुआ. मानव की चेतना तब जा कर जागृत हुई, जब उसे अनेकानेक बीमारियों ने घेर लिया. बात केवल शारीरिक बीमारियों तक ही सीमित न रही. प्रकृति के सामीप्य से दूर होकर मानव जाति अवसाद का शिकार हो गई।

अभी भी समय है अपनी जड़ों की ओर लौटने का क्योंकि मानवता को बचाने का यही एक मात्र उपाय है. इस पुनीत कार्य को करने का बीड़ा उठाया है हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा फाउंडेशन तथा पर्यावरण संरक्षण गतिविधि ने. 30 अगस्त, 2020 (रविवार) सुबह 10 से 11 बजे समस्त भारतवासियों को अपने घर में पेड़ या गमले में लगे पौधे की पूजा कर प्रकृति वंदन करने का आह्वान किया है।

प्रकृति वंदन से हम न केवल प्रकृति का आभार प्रकट करेंगे, बल्कि उसकी समीपता भी अनुभव करेंगे. हमारे घरों के बच्चे हमें ऐसा करते देख कर अनेकानेक प्रश्न पूछेंगे, जिससे उनके ज्ञान में वृद्धि होगी. हमारा एक-एक पेड़ लगाने का संकल्प इस धरा को पुन: हरा भरा कर देगा. वन क्षेत्र बढ़ने से वर्षा की अतिवृष्टि व अनावृष्टि से बचाव होगा।

वन सम्पदा में वृद्धि होने से वन्य प्राणियों का जीवन भी सुलभ होगा. धरा पर धन धान्य की कमी न होगी, इस धरती पर कोई भी प्राणी भूखा नहीं रहेगा. स्वच्छ जलधारा से सभी के तन मन पवित्र होंगे व समस्त प्राणियों में शुद्ध प्राण वायु का संचार होगा।

इए, गणेश जी के श्री चरणों में दूर्वा का अर्पण कर हम यह संकल्प लें कि हम जीवन दायिनी ‘तुलसी’ के आगे दीप जला कर नमन करेंगे. बरगद को जल चढ़ाएंगे, पीपल के पेड़ के पास दीपक जलाएंगे. केले के वृक्ष की पूजा करेंगे. शिव का श्रृंगार बिल्व पत्रों से करते हुए अपनी सस्कृति को पुनर्जीवित करने का प्रण लेंगे।

  डॉ. नीरोत्तमा शर्मा
(सामाजिक लेखिका)