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समस्त वैश्विक समस्याओं का समाधान : आध्यात्मिक ,हिंदू जीवन मूल्य-भाग-3

समस्त वैश्विक समस्याओं का समाधान : आध्यात्मिक ,हिंदू जीवन मूल्य-भाग-3

( भारत व विश्व की भवितव्यता ) ( 2020–2026)

यूं तो सारा संसार ही भगवान का घर (शरीर )है किंतु भारत उस शरीर का हृदय है ।जिसमें आत्मा( चेतना) विद्यमान है। और उसी चेतना के कारण शरीर का अस्तित्व है ।अतः भारत का भविष्य उज्जवल है। स्वर्णिम है ।

भारत ही भविष्य में विश्व का नेतृत्व , मार्गदर्शन करने वाला है ।यही अब भारत की नियति, भवितव्यता है और यह कार्य भारत अपने आध्यात्मिक जीवन मूल्यों ,प्रेम,दया, करुणा ,वसुधैव कुटुंबकम ,सत्य ,अहिंसा, त्याग के बल पर करेगा ।वैश्विक स्तर पर परिवर्तन के प्रवाह का आरंभ सन 2011 से ही हुआ है ।

 

अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख मनीषी डॉ प्रणव पंड्या इसी बात की पुष्टि करते हुए सन 2010 में कहते हैं कि- “स्वामी रामकृष्ण परमहंस के जन्म से 175 वर्ष का यह एक संधि काल है जो सन 2011 में समाप्त होता है। सन 2011 से ही भारत का भाग्य सूर्य उदय होकर 2026 से धरती पर सतयुग, रामराज्य ,प्रज्ञायुग  1000 वर्ष का ( सतयुग मिलेनियम)आने वाला है।

अतः रामकृष्ण परमहंस का जन्म 1836 में 175 जोड़ते हैं तब 2011 ही आता है ।वैसे सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो 2011 से ही वैश्विक स्तर पर परिवर्तन की बयार प्रमुखता से चली है ।और यह प्रवाह ,क्रांति अब गति पकड़ चुकी है। जो 2020– 2025 के बीच चरमोत्कर्ष पर होगी ।

ऐसे संकेत मिल रहे हैं, कि इस 6 वर्ष के कालखंड में ” भूतो ना भविष्यति” वाला सृजन  ध्वंस का घटनाक्रम होगा।सारी धरती पर खंड- प्रलय ,संछिप्त थर्ड वर्ल्ड वार, प्राकृतिक आपदाएं ,नाना प्रकार की आएंगी चारो दिशा में काल का तांडव होगा ,हाहाकार मचेगा ।

भूकंप ,बाढ़ ,चक्रवात ,तूफान समुद्र सीमा उल्लंघन और भी ना जाने क्या क्या घटित होगा। जिसकी पूर्ण व्याख्या करना कठिन है ।उपरोक्त बातों के संदर्भ में भविष्य वक्ताओं, दिव्य आत्माओं के कथन , भविष्यवाणी निम्नानुसार है। जिनको पढ़कर आप स्वयं भविष्य का अनुमान लगा सकते हैं।–

आज से लगभग 450 वर्ष पूर्व वृंदावन के ‘श्री कृष्ण प्रेमी’ महान संत सूरदास जी महाराज वर्तमान के घटनाक्रम की भविष्यवाणी करते हुए अपनी दिव्य चक्षु से देख कर कहते हैं कि —

रे मन धीरज क्यों धरै ”                                                                                                                                                     संवत दो हजार के ऊपर ,ऐसो योग परै,

पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण ,चहुदिश काल परै । 

अकाल मृत्यु जग माही व्यापै,  प्रजा बहुत मरे

सहस बरस लगी सतयुग व्यपै ,  सुख की दशा फिरे

स्वर्ण फूल बन पृथ्वी फूले,  धर्म की बेल बड़े 

काल व्याल से वही बचेगा , जो हंस का ध्यान धरे

सूरदास हरि की यह लीला। टारे नहीं टरे ।।

अर्थात् सन् 2000 के पश्चात संसार में ऐसा योग( समय) आवेगा। जब भारी मात्रा में तबाही,अकाल मृत्यु होगी। हाहाकार मचेगा ।चारो दिशा में मृत्यु का तांडव होगा। सूर् वाणी  के अनुसार करोड़ों लोग काल के ग्रास बन जाएंगे। और यह सब घटनाक्रम वर्तमान में आरंभ हो चुका है। इस अकाल मृत्यु से बचने के उपाय के रूप में सूरदास जी लिखते हैं कि-

काल व्याल से वही बचेगा” ,”जो हंस का ध्यान धरे अर्थात हंस वाहिनी ,मां गायत्री का ध्यान उपासना जो करेगा ।वही सुरक्षित रहेगा ,बचेगा एवं 2026 से एक (मिलेनियम )का सत्युग ,प्रज्ञायुग,रामराज इस धरती पर आने जा रहा है

इतना स्पष्ट जानकर, सुनकर देखकर ,भी यदि मनुष्य ना चेते  और मूढ़ बना रहे तब विनाश अटल है। भविष्य पुराण में अभी सन 2023 से रामराज आने  ,धर्म, सत्य, न्याय का युग आरंभ होने की बात कही गई है विश्व में घटने वाली भवितव्यता  का संत रविदास तो और भी स्पष्ट वर्णन करते हैं। इतना जानकर भी मनुष्य की आंख ना खुले तो फिर समझो कि उसका अंत गया है। संत रविदास वर्तमान संकट जो आरंभ हो चुका है। पिछले जनवरी 2020 से उसके बारे में अपने दिव्यच्छुओ  से साक्षात्कार करते हुए कहते हैं कि  —

भारत में अवतारी होगा । जो अति विस्मयकारी होगा ।

ज्ञानी और विज्ञानी होगा । वह अद्भुत सेनानी होगा  । 

जीते जी कई बार मरेगा  । छदम  बेस में जो विच्रेगा ।

देश बचाने के लिए, होगा एकआहवान ।

युग परिवर्तन के लिए चले प्रबल तूफान ।

तीन ओर से होगा हमला । देश के अंदर द्रोही घपला  ।

सभी तरफ कोहराम मचेगा । कैसे हिंदुस्तान बचेगा   ।

नेता मंत्री और अधिकारी । जान बचाना होगा भारी   ।

छोड़ सब मैदान भागेंगे । सब अपने-अपने घर दूबकेगे ।

जिन जिन भारत मात सताई। जिसने इसकी करी लुटाई ।

ढूंढ ढूंढ कर बदला लेगा । सब हिसाब चुकता कर देगा।

चीन,अरब की धुरी बनेगी । विध्वंसक ताकत उभ्रेगी ।

सभी तरफ संगीन लड़ाई, घाटे में होंगे ईसाई ।

इटली में कोहराम मचेगा । लंदन सागर में डूबेगा ,

युद्ध तीसरा प्रलयंकारी । जो होगा भारी संघारी  ।

भारत होगा विश्व विजेता । भारत होगा विश्व का नेता   ।

दुनिया का कार्यालय होगा, भारत में न्यायालय होगा ।

तब सतयुग दर्शन आएगा, संतराज सुख बरसा आयेगा ।।

हज़ार वर्ष तक सतयुग लागे ।  विश्व गुरु बन भारत जागे।  

 अर्थात  –संत रविदास महाराज इतने सरल शब्दों में साफ-साफ सब भविष्य दर्शन करा रहे हैं ।तो अब वही घटनाक्रम प्रारंभ हो गया ऐसा मानकर चलें ,अतः अपनी जीवन- पद्धति ,जीवनशैली मनुष्य समय रहते, बदल ले इसी में उसकी भलाई है।

 योगी अरविंद भी अपने वक्तव्य में कुल मिलाकर भारत के द्वारा, विश्व के उत्थान की मार्गदर्शन की बात ही करते हैं महर्षि अरविंद कहते हैं कि -“जिसे हम हिंदू धर्म कहते हैं ।वह वास्तव में सनातन धर्म है ।क्योंकि वही वह विश्वव्यापी धर्म है। जो दूसरे सभी धर्मों का आलिंगन करता है।

यदि कोई धर्म विश्वव्यापी ना हो तो वह सनातन भी नहीं हो सकता हिंदू धर्म क्या है ।वह धर्म क्या है। जिसे हम सनातन धर्म कहते हैं। वह हिंदू धर्म इसी नाते हैं कि हिंदू जाति ने इसको रखा है। क्योंकि समृद्ध और हिमालय से गिरे हुए इस प्रायद्वीप के एकांतवास में यह फला- फूला है ।क्योंकि इस पवित्र और प्राचीन भूमि पर इसकी युगो तक रक्षा करने का भार आर्य जाति को सौंपा गया था ।

परंतु यह धर्म किसी एक देश की सीमा में घिरा नहीं है ।यह संसार के किसी सीमित भूभाग के साथ विशेष रूप से और सदा के लिए बना नहीं है ।कोई संकुचित धर्म, सांप्रदायिक धर्म ,अनुदार धर्म कुछ काल और किसी मर्यादित हेतु के लिए ही रह सकता है। यही एकमात्र धर्म है ।जो जड़ वाद पर विजय प्राप्त कर सकता है ।और मानव जाति के दिल में यह बात बिठा देता है ।

कि भगवान हमारे निकट हैं ।जिनके द्वारा मनुष्य भगवान के पास पहुंच सकते हैं। इस पर जोर देता है कि भगवान हर आदमी हर चीज में हैं। विश्व की भलाई के लिए भारत की रक्षा करनी होगी ।क्योंकि एक मात्र भारत ही विश्व को शांति और एक नवीन व्यवस्था प्राप्त करा सकता है।

भारत का भविष्य एकदम स्पष्ट है भारत जगतगुरु है । विश्व का भावी संगठन भारत पर निर्भर है ।भारत एक जीवंत आत्मा है  भारत आध्यात्मिक ज्ञान को विश्व में मूर्तिमान कर रहा है।

 महर्षि अरविंद आश्रम पांडिचेरी की श्री मां मीरा अल्फअंसा ने 15 अगस्त 1947 को भारत के आजादी पर ,भारत का ध्वज फहराया व संपूर्ण वंदे मातरम का गायन के पश्चात अपने संबोधन में कहा कि – हिंदुस्तान की स्वाधीनता का प्रश्न हल नहीं हुआ है ।

हिंदुस्तान के पूण: अखंड होने तक हमें प्रतीक्षा करनी होगी ।तब तक हमारी एक ही घोषणा होगी ।हिंदू चैतन्य, अमर है। उन्होंने आश्रम पर भारत का ध्वज फहराया इस पर श्रीलंका और ब्रह्मदेश सहित अखंड भारत का मानचित्र था ।संपूर्ण वंदे मातरम का सामूहिक गान किया ।

भारत का विभाजन असत्य है ।इस को मिटाना चाहिए और यह मिटकर रहेगा। भारतीय सनातन धर्म है ।और सनातन धर्म ही भारत है ।इस सृष्टि का भविष्य भारत के भविष्य पर निर्भर है। भारत कोई भूखंड नहीं अपितु साक्षात माता है।”

स्वामी विवेकानंद भी अपने गुरु भाइयों को 1890 – 94 के बीच पत्र में युग परिवर्तन की बात करते हुए कहते हैं कि- 1836 में जब स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ तो एक युग परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हुई। एक स्वर्ण युग का प्रारंभ हुआ ।

युग संधि का काल 175 वर्ष का होता है जैसे दिन के बाद रात और रात के बाद दिन होता है। किंतु उसके बीच का समय संधि काल होता है 1836 में 175 जोड़ने पर 2011 आता है 2011 से भारत का भाग्य पूरी दुनिया में चमकना प्रारंभ होगा।  भारत एक बार फिर समृद्धि तथा शक्ति की महान ऊंचाइयों पर उठेगा और अपनी समस्त प्राचीन गौरव को पीछे छोड़ जाएगा ।

भारत का विश्व गुरु बनना  केवल भारत ही नहीं अपितु विश्व के हित में है अतीत से ही भविष्य बनता है। अतः यथासंभव अतीत की ओर देखो और उसके बाद सामने देखो और भारत को उज्जवल भविष्य तक पहले से अधिक पहुंचाओ। हमारे पूर्वज महान थे ।

हम भारत के गौरवशाली अतीत का जितना ही अध्ययन करेंगे ।हमारा भविष्य उतना ही उज्जवल होगा ।भारत अपने पुराने गौरव को प्राप्त करेगा ।और यह अवश्यंभावी है। देश का पुराना गौरव ,विज्ञान ,राज्य सत्ता अथवा धन ,बल  से नहीं वरन  आध्यात्मिकता के बल पर लौटेगा।

 फ्रांस के विश्व प्रसिद्ध भविष्य वेता नास्त्रेदमस सहित कई अन्य विद्वानों ने भी इस दौर में ही “युग परिवर्तन “होने की भविष्यवाणी की हुई है। उन्होंने तो यहां तक कहा था। कि दुनिया में तीसरे महायुद्ध की स्थिति सन 2012 से 2025 के मध्य उत्पन्न हो सकती है ।

तृतीय विश्व युद्ध में भारत शांति स्थापक  ‘गुरु ‘ की भूमिका निभाएगा ।सभी देश उसकी सहायता की आतुरता से प्रतीक्षा करेंगे भारत में एक महान नेता होगा जो दुनिया का मुखिया होगा और विश्व में शांति लाएगा।

युगऋषि ,वेदमूर्ति , अध्यात्मवेता पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य तो इस युग परिवर्तन में भारत की ‘विश्वगुरु ‘की भूमिका, भीषण संघार ,वैश्विक परिवर्तन के घटनाक्रमों के बारे में बड़े विस्तार से आज से 45 -50 वर्ष पहले ही लिख गए है ।प्रवचनो  में सब बता गए हैं ।एवं इस युग परिवर्तन के विराट अभियान में गायत्रि  परिवार, युग निर्माण योजना की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होगी।

गायत्री परिवार के 100 से अधिक देशों में शक्तिपीठ हैं। शाखाएं हैं। एवं करीब 15 करोड़ साधक, युग सेनानी, सदस्य हैं ।जो हिमालय की  दिव्य ऋषि सताओं के, मार्गदर्शन,संरक्षण में आध्यात्मिक रास्ट्र, विश्वराष्ट्र निर्माण, सृजन साधना ,में अपनी अतुल्य, अद्भुत, अविस्मरणीय भूमिका निभा रहे हैं।

परिवर्तन के घटनाक्रम की विवेचना करते हुए बन्ग्मय क्रमांक 29 पृष्ठ क्रमांक 1.48 मैं आचार्य कहते हैं कि–“पिछले दिनों जिस कुमार्ग पर मनुष्य जाति चलती रही है ।उसके दुष्परिणाम क्रमश: अधिक परिपक्व होते चले आए हैं ।और अब वह स्थिति उत्पन्न हो गई है ।जिससे आगे भी देर तक चलने दिया जा सकना असंभव हो गया है।

इस स्थिति का आमूलचूल परिवर्तन हुए बिना और कोई रास्ता अब रहा नहीं ।दो ही विकल्प हैं एक सर्वनाश दूसरा परिवर्तन -परिवर्तन के लिए हम तत्पर नहीं होते हैं ।तो फिर सर्वनाश के लिए तैयार होना पड़ेगा। सर्वनाश से बचना है ।तो परिवर्तन का स्वागत करना होगा। बीच का कोई रास्ता नहीं है।

 इसी क्रम में आचार्य अपने बांगमय ‘ गायत्री साधना की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि’ के प्रश्न क्रमांक 7 •10 पर लिखते हैं- यह  वर्णन दिल दहला देने वाला विस्मयकारी है ।इस समय मनुष्य जाति की दुर्गति चोटी पर पहुंच जाएगी। जल -थल सुर्य आदि जो जीवन के मुख्य आधार हैं ।यही सब मनुष्यों को उनके पाप कर्मों का फल देने लगेंगे ।

कुछ दिन पहले जो लोग ऐस -आराम मैं मस्त पड़े होंगे। वह सब निरंतर रोते -चिल्लाते और शोक करते ही दिखलाई पड़ेंगे। इस समय कितने ही दिन तक सूर्य पृथ्वी के ऊपर इतनी अधिक गर्म और जलाने वाली किरण डालेगा। मनुष्यों को अपने घर भट्टी की तरह जान पडने लगेंगे ।तीसरे महायुद्ध में जब 20 मेगा टंन हाइड्रोजन बमओं का प्रयोग होगा तब ऐसी हालत प्रत्यक्ष दिखाई देगी।

क्योंकि उनका तेज और गर्मी  सूय सदृस्य ही होती है। और उसके द्वारा मनुष्य और जीवित प्राणी नहीं ,पत्थर और मिट्टी भी जलकर धुआं के रूप में हो जाते हैं ।भविष्यवाणी के करता को ध्यान की अवस्था में निम्नलिखित दृश्य दिखाई पड़ा- की एक फरिश्ता सूर्य के प्रकाश में खड़ा है ,और कह रहा है…

कि ,आसमान में उड़ने वाले पक्षियों इकट्ठे होकर आओ और ईश्वर के दिए हुए भोजन में शामिल होओ ,इसमें तुमको बड़े- बड़े, बादशाहो, राजाओं, कप्तान ,ताकतवर मनुष्य ,घोड़ों और उन पर बैठने वालों और सब प्रकार के बड़े और ऊंचे दर्जे के मनुष्यों का मांस खाने को मिलेगा।

भविष्यवक्ता  महात्मा जान ने अपनी ध्यान अवस्था में देखा- मैंने एक फरिश्ते को आसमान से आते देखा उसने शैतान को बांधकर अथाह गड्ढे में फेंक दिया और फिर धरती पर सत्ययुग, स्वर्ण युग आया जो 1000 वर्ष तक पृथ्वी पर (मिलेनियम )रहेगा।

इसकी व्याख्या करते हुए एक विद्वान ने लिखा है कि इन 7 वर्षों 2020 से 2026 की महा भयंकर घटनाओं में संसार की पूर्ण रूप से कायापलट हो जाएगी। लड़ाई और महामारीओं से करोड़ों व्यक्ति खत्म हो जाएंगे ।और बड़े-बड़े शहर सुनसान दिखाई पड़ेंगे।

इसके बाद जब पृथ्वी की शासन व्यवस्था धार्मिक और नैतिक विचारों के संतपुरुष करने लगेंगे तो लोगों की सब तकलीफें मिट जाएंगे ।उस समय लोग ईश्वरी नियमों के अनुसार रहने लगेंगे। और पाप तथा स्वार्थ के भावों को छोड़ देंगे तब फौजी और जहाजी बेड़ों का नाम भी ना रहेगा और लोग तलवारों को तोड़कर हल्का फार बना लेंगे।

एक देश के निवासी दूसरे देश वालों से झगड़ा ना करेंगे। और युद्ध सदा के लिए बंद हो जाएगा। जंगल के खूंखार जानवर भी शांत बन जाएंगे ।कोई मनुष्य छोटी उम्र में ना मारेगा ।इस युग में हुकूमत केबल उन्हीं लोगों के हाथ में रहेगी जिनका चरित्र -शुद्ध तथा पवित्र होगा जो नम्र, विनयशील और गरीबी, गरीबों को पसंद करने वाले होंगे।

 एक अन्य दृष्टांत में ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आगामी 5 वर्ष और अनिष्ट के दिखाई पड़ रहे हैं जय भयंकर ता कितनी होगी इसका माप यह है कि मनुष्य जाति के सामूहिक दुष्कर्म जितने अधिक होंगे उतना ही कस्ट  संसार को सहना पड़ेगा ।

यह 2020 का वर्ष तो अशुभ कर्मों के फूट पड़ने का अनुकूल अवसर मात्र है। इस दृष्टि से हम मनुष्य जाति के वर्तमान कालीन तथा निकट भूतकाल के असुभ  कर्मों पर दृष्टि डालते हैं तो लगता है कि व्यक्तिगत जीवन की पवित्रता,संयम -शीलता ,उदारता ,क्षमाव्रत भाव ,सेवा एवं त्याग की सत प्रव्रतियों को एक कोने में उठाकर रख दिया गया है और लोगों ने कानूनी तथा गैर कानूनी ,शोषण ,अपहरण, अन्याय ,उत्पीड़न ,छल ,असत्य ,स्वार्थ, परिग्रह की अति कर दी है,

लोगों के व्यक्तिगत जीवन में स्वार्थ का बोलबाला है। दूसरों की गर्दन काटने की होड़ लगी हुई है। श्रेष्ठता और सन्मार्ग की ओर नहीं ,वासना और तृस्ना के चश्मा की ओर हर एक की आंख लगी हुई है। आध्यात्मिक दिव्य दृष्टि से देखने पर यह स्पष्ट दिखाई देता है कि आज  आसुरी विचारों एवं कर्मों ने आकाश को बुरी तरह तम्सछ्ं कर रखा है ।इन काली घटाओं को जब भी बरसने का अवसर मिलेगा गजब ढा देने की परिस्थिति पैदा कर देंगे। 

युगऋषि  पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जो स्वयं एक उच्च स्तरीय अध्यात्मवेता, लेखक ,भविष्यवक्ता ,दृष्टा -सृष्टा है । आपने गायत्री की 24 वर्ष तक गहन साधना की है ।एवं देवात्मा हिमालय के दुर्गम क्षेत्र में जहां युगों-युगों के ऋषिकल्प आत्माएं ,साधना में लीन हैं ।उनका साक्षात्कार करके महा साधना की है।

तथा उसके पश्चात ऋषियों के मार्गदर्शन। संरक्षण में, युग निर्माण योजना की शुरुआत करके युग परिवर्तन , राष्ट्र निर्माण- विश्व निर्माण का महानतम कार्य प्रारंभ किया है।नवयुग के आगमन के विषय में आचार्य जी कहते हैं कि–” समय बदल रहा है रात्रि का पलायन और प्रभात का उदय हो रहा है।

उसका निमित्त कारण एक ही बनने जा रहा है ।लोग अपने को बदलेंगे ,स्वभाव में परिवर्तन करेंगे ।गिरने और गिराने के स्थान पर, उठने और उठाने की नीति अपनाएंगे। और पतन के स्थान पर उत्थान का मार्ग गृहण  करेंगे ।यही नवयुग है। यही सतयुग है ।जो अब निकट से निकटतम आता जा रहा है।

 भगवान अपना कार्य किन्ही  महामानवो एवं देवदूतों के माध्यम से कराते हैं ।इन दिनों भी ऐसा ही हो रहा है मनुष्य शरीर में प्रतिभावान देवदूत प्रकट होने जा रहे हैं। इनकी पहचान एक ही होगी कि वे अपने समय का अधिकांश भाग -प्रभु की प्रेरणा के लिए लगाएंगे ।

शरीर कुछ ना कुछ साधन उपार्जन करता है नर पशु उसे  स्वयं ही खर्चते हैं। पर देवमानवों की प्रकृति यह होती है कि अपने उपार्जन में से बे न्यूनतम अपने लिए खर्च करें और शेष को परमार्थ प्रयोजनों के लिए लगा दें।

नवयुग का प्रधान स्वरूप है -लोकमानस का परिष्कार ।यही अपने समय की साधना ।पुण्य परमार्थ  और धर्मधारणा है। इसके लिए जो जितना समय और साधन लगाता दिख पड़े ।समझना चाहिए कि भगवान उसी के माध्यम से अपना अभिस्ट  पुरुषार्थ पूरा करा रहे हैं ।नवयुग का आगमन व अवतरण निकट है ।

उसे सृष्टा किसके माध्यम से पूरा करने जा रहे हैं, यह जानना हो तो समझना चाहिए ,कि युगावतरण आ स्रेय उन्हीं को उपहार स्वरूप ,भगवान दे रहे हैं ,जो उनके काम में लगे हैं। ऐसे लोगों को ही बड़भागी  और सच्चा भगवत भक्त मानना चाहिए।

डॉ. नितिन सहारिया
(लेखक सामाजिक चिंतक एवं विचारक)