हमारे पुरखों ने पानी को तभी ईश्वर मान लिया था जब से इस संसार ने सागर को समझना बूझना शुरू किया। हमारी वैदिक संस्कृति का उद्भव ही जल से हुआ। ईश्वर का सर्वप्रिय नाम नारायण है, इसका मतलब भी सभी को जान लेना चाहिए। नारायण में नारा का मतलब नीर से है, जल से है और अयन का अर्थ है निवास।
नारायण का निवास ही जल में है, क्षीरसागर में है। दो साल पहले खजुराहो के जल सम्मेलन में एक प्रोफेसर साहब भगवान का अर्थ बता रहे थे- भ से भूमि, ग से गगन, वा से वातावरण और न से नीर। भगवान के अर्थ की ये खोज विज्ञान के प्रोफेसर साहब की अपनी है लेकिन समायोजित है।
देश इसीलिए भगवान् भरोसे है, कहा जाता है। हमारे समूचे वैदिक वांग्यमय में जल यानी वरूण देवता की सबसे ज्यादा चर्चा है, वह इसलिए कि वैदिक साहित्य ही नदी के किनारे रचा गया। आर्य भारत के उत्तरी हिस्से में रहते थे इसलिए सागर से ज्यादा जिक्र नदियों का हुआ। ऋषियों ने उसे सम्मान देते हुए नदी का नाम ही सरस्वती जो ज्ञान की देवी हैं के नाम रख दिया।
वैज्ञानिक खोजें ये बताती हैं कि यह नदी थी जो बाद में विलुप्त हो गई। इस कथा या घटना का भी प्रतीकात्मक महत्व है। जहाँ ज्ञान का सम्मान नहीं होगा वहां वह ऐसे ही लुप्त हो जाएगा जैसे सरस्वती लुप्त हो गईं। जल का सम्मान नहीं हुआ इसलिए वह अब दुर्लभ होता जा रहा है।
हमारे वांगमय में हर नाम अपने पीछे गूढ़ व अर्थ कथा लिए हुए हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश की जो त्रिदेवियां हैं, वे सभी जल जन्य हैं। लक्ष्मी समुद्र मंथम से निकलीं वे सागर की पुत्री हैं। सागर नाम कैसे पड़ा। सागर के पुत्रों को तारने के लिए भगीरथ ने तप किया तब गंगा का अवतरण हुआ। वे इतनी वेगवान थीं कि धरती ने उन्हें धारण करने से मना कर दिया।
शंकर ने अपनी जटा में उलझाकर उनका वेग कम किया तब कहीं वे बह पाईं। गंगा मिथक नहीं साक्षात् हैं। हिमालय से निकलती हैं। हिमालय का हिम पिघलता है तो गंगा को प्रवाह मिलता है। हिमालय कौन…देवी पार्वती के पिता। एक देवी लक्ष्मी जो समुद्र की पुत्री दूसरी हिमालय की पार्वती इन्हें गंगा जोड़ती हैं। तीसरी सरस्वती… ये हंसवाहिनी हैं।
हंस जलचर है जो मानसरोवर में रहता है। सरस्वती हमारे मानस का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसलिए जिन ऋषि मुनियों ने उनके सानिध्य में साहित्य रचा, संसार को विचारवान बनाया वह नदी ही उन्हें सरस्वती के रूप में दिखीं। जैसे-जैसे हमने उनकी अवज्ञा की वे दूर होती चली गईं।
उसी तरह इन त्रिदेवियों के जनक जल की अवज्ञा करते जाएंगे यह भी हमसे दूर होता जाएगा। अगर न चेते तो अन्य सभी नदियाँ सरस्वती की तरह लुप्त होती चली जाएंगी। इजराइल के पास जल प्रंबंधन का ज्ञान कोई अलग से नहीं आया। हमारे पास यह सदियों से है। पद्मपुराण, मत्स्यपुराण, वाराहपुराण में जल के महत्व और जल प्रबंधन के कितने दृष्टान्त नहीं भरे पड़े हैं।
कुएँ, बाबड़ी तालाब के महत्व बताए गए हैं। दस तालाब माने एक पुत्र और दस पुत्र माने एक वृक्ष। पुराण कथाओं में पाप-पुण्य का भय इसीलिए रचा गया, ताकि कम से कम इनके भय से ही अच्छा काम करें। हम जैसे-जैसे ज्ञानी होते गए इन्हें ढकोसला बताकर खारिज करते गए। जिन पढ़े लिखों पर ये जिम्मेदारी थी कि वे इन सबकी वैज्ञानिक व्याख्या करते ,
वे इसकी खिल्ली उड़ाते रहे। आप पाएंगे जब ये समाज घोर निरक्षर था तब उसे जीवन और प्रकृति के मूल्यों की प्रखर समझ थी। और देखेंगे कि कुएं, बावड़ी तालाब उसी निरक्षर समाज ने बनाए। लाखा बंजारा कौन था… जिसने सागर में झील रच दी। बुंदेलखण्ड के तालाबों का समृद्ध इतिहास रहा है। रीवा रियासत के 6000 तालाबों की आज भी चर्चा होती है।
अनुपम मिश्र की कालजयी कृति… आज भी खरे हैं तालाब ..की चर्चा ही रीवा रियासत के छोटे से गांव जोड़ौरी के तालाबों से शुरू होती है। किताब में देशभर के तालाबों का ब्यौरा है जिनमें से ज्यादातर जनता के बीच से निकले लोगों द्वारा बनवाए गए हैं। देश में जब भी अकाल पड़ता था तब लोग तालाब बनाकर अकाल को जवाब देते थे।
ऐसे-ऐसे तालाब जिनकी धारण क्षमता इतनी कि दस साल भी अकाल पड़े तो पानी का अकाल न हो। मेरे गांव का तालाब ऐसा ही था, जिसकी वजह से हमारा गांव सन् अड़सठ का अकाल झेल गया। अनुपम मिश्र जैसे नए युग के ऋषियों ने जलप्रबंधन और पर्यावरण के पुराण रचे हैं। ये किसी भागवत पुराण से कम नहीं।
हम जन को जगाकर क्या नहीं कर सकते, अनुपम मिश्र ने अलवर को पानीदार बनाकर और अरवरी नदी को जिंदा करके बता दिया। हम अपनी चेतना को जगाएं, पुरखों के अनुभव, ज्ञान की पोटली खोलें और खुद बन जाएं अनुपम मिश्र। इजराइल को रोलमाॅडल बनाने, मानने की जरूरत न हमें पड़ेगी न सरकार को।
वरिष्ठ लेख़क:- जयराम शुक्ल संपर्क सूत्र :- 8225812813