सिंहासन पर आसीन होते ही राणा प्रताप ने मातृभूमि को स्वतंत्र कराने का दृढ़ संकल्प लेते हुये कहा था ‘‘जब तक मैं अपनी भारत भूमि को आततायी मुग़लों से स्वतंत्र नहीं करा लेता तब तक सोनी-चांदी की थाली-बर्तनों में भोजन नहीं करूंगा और शाही पलंग पर सोने के स्थान पर घास-फूस पर शयन-विश्राम करूंगा.’’
महाराणा प्रताप के इस संकल्प को सुनकर तत्कालीन शायर एवं विद्वान अब्दुल रहीम खान खाना ने कहा था- ‘‘धमरहसी रहसी धए दिवस जासे खुशराणा अमर विसंभर ऊपर रखियाँ नहचो राणा’’ अर्थात् धर्म रहेगा, पृथ्वी भी रहेगी पर मुगल साम्राज्य एक दिन नष्ट हो जायेगा-हे राणा विश्वम्भर भगवान पर भरोसा करके अपने निश्चय पर अटल रहना.
ऐसे महान वीर योद्धा स्वतंत्रता के अप्रतिम पुजारी महाराणा प्रताप का जन्म विक्रम संवत्1596 ज्येष्ठ सुदी तृतीया रविवार को सेनगट (झालावाड़ा) के प्रतिष्ठित परिवार प्रतिष्ठित सरदार परिवार की पुत्री तथा राणा उदयसिंह के यहां ज्येष्ठ पुत्र के रूप में कुम्हलगढ़ में जन्म लिया था.
महाराणा उदयसिंह के निधन के उपरान्त शौर्य की प्रतिमूर्ति महाराणा प्रताप ने 3 मार्च 1573 को चित्तौड़ से 19 मील उत्तर पश्चिम में गोगंडा को अपनी राजधानी बनाकर मेवाड़ के शासन की बागडोर सम्हाली। राणा प्रताप सिसोदिया वंश के थे, जो अपने आपको सूर्यवंशी मानते हैं.
दिल्ली में मुगल बादशाह अकबर ने उस समय के कतिपय राजपूत राजाओं को बड़े पदों का प्रलोभन देकर मित्रता स्थापित कर ली थी। वह भारत का चक्रवर्ती सम्राट बनने का सपना संजोये हुये था। अनेक राजपूत राजा उसकी आधीनता स्वीकार कर चुके थे.
केवल मेवाड़ का सिसोदिया राजवंश ही मुगलों से लोहा लेने तत्पर रहता था। महाराणा प्रताप ने जीवन भर कठिनाईयों को झेलते हुये संघर्ष किया। अनेक विपत्तियाँ झेली लेकिन हार नहीं मानी, संघर्ष सतत् जारी रहा.
दानवीर भामाशाह की सहायता पाकर वे उन्होंने फिर अजमेर और मण्डल गढ़ में अकबर की भारी भरकम सेना को खदेड़ दिया और मेवाड़ पर पुनः अधिकार कर लिया.
सन् 1597 के जनवरी माह में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। लेकिन अरावली के कण-कण में उनकी वीरगाथायें अंकित हैं, जो शताब्दियों तक आत्मसम्मान और स्वाभिमान का जीवन जीने वालों को प्रेरणा देती रहेगी.
देश प्रेम, आजादी और स्वधर्म की रक्षा के सतत् संघर्ष, अदम्य साहस असीम त्याग का भाव, विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग साहस-इसी का नाम है – महाराणा प्रताप.
इस महावीर की जयन्ती 17 जून को मनायी जाती है। उनका जन्म 1540 में हुआ था। 19 जनवरी 1597 में 56 वर्ष की आयु में माँ भारती के इस लाल ने अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया.
महाराणा प्रताप जैसा राजा इतिहास में शायद ही होगा। वे भूमि और जन जन तक के शासक ही नहीं थे, वे अपनी संस्कृति के सच्चे रक्षक भी थे.