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खाद्यान्न और सब्जियां खेतों से ला रही है घातक बीमारिया…

कृषि और सब्जी जिन खेतों की मिट्टी में ऊगाई जाती है, उस मिट्टी में 12 तरह के पोषक तत्व होते हैं, जो इस मिट्टी से पैदा होने वाले खाद्य पदार्थों में भी पहुंचते हैं। ये ही तत्व हमारी सेहत को भी अच्छा बनाये रखते हैं। लेकिन गत 50 वर्षों में अघि कि पैदावार उपजाने के चक्कर में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का अंधा-धुध इस्तेमाल होने लगा है।

जिससे न केवल खेतों की मिट्टी की मौलिक उर्वरा शक्ति क्षीण हुयी है, वरन् पर्यावरण के साथ-साथ मनुष्य की सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होने के साथ-साथ, पर्याप्त पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ जाने के परिणाम स्वरूप ऐसी मिट्टी में हुयी पैदावार,

फसल सुखाने के लिए जहरीला छिड़काव कर रहे हैं किसान

खाद्य पदार्थों के खाने से कुपोषण एवं अनेक तरह की बीमारियों से व्यक्ति ग्रसित हो रहा है, जो अत्यधिक चिन्ता का विषय है। मिट्टी के असन्तुलित पोषक तत्वों में नाईट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, सल्फर और जिंक आदि शामिल हैं। ये ही तत्व पैदावार-उपज के माध्यम से मानव देह में जाते हैं।

इनका अभाव न केवल कुपोषण वरन् महिलाओं में खून की कमी, नवजवानों में सुगर एवं ब्लडप्रेशन केन्सर के रूप में सामने आ रहा है। मिट्टी में जिंक की कमी आने मे अनाज एवं अन्य उत्पादों में भी इसकी कमी पाया जाना स्वाभाविक है। विशेषज्ञों का मानना है कि जिंक की कमी के कारण मानव शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता के रूप में सामने आता है।

इसके साथ ही निमोनिया, जुखाम, श्वास सम्बंधी समस्यायें पैदा हो रही हैं। आयरन की कमी से रक्त अल्पता के लक्षण सामने आने लगते हैं। इसी प्रकार नाईट्रोजन, फासफोरस प्रोटीन की कमी या अधिकता के मामले भी सामने आ रहे हैं। खेतों की मिट्टी के परीक्षण के दौरान वहाँ की मिट्टी में फासफोरस की कमी पायी गयी।

यह सभी को ज्ञात है कि फासफोरस की कमी मनुष्य के शरीर में पाये जाने पर शरीर की हड्डियाँ बुरी तरह प्रभावित होने लगती हैं। ऐसी ही स्थितियाँ अन्य तत्वों की कमी के कारण पाये जा रहे हैं। खेतों की मिट्टी में पर्याप्त तत्वों के होने पर उपजाये जाने वाले अनाज एवं खाद्य पदार्थों को खाने से हमारे शरीर को पर्याप्त पोषण मिलता है

ऐसा हम अपने बुजुर्गों से सुनते आये हैं, लेकिन आज स्थितियाँ आमूल-चूल परिवर्तित अनुभव हो रही हैं। इसका प्रमुख कारण रासायनिक खाद, कीटनाशक दवाओं का भारी मात्रा में उपयोग ही माना जा रहा है; फसल चक्र में भी बदलाव आया है, जिसके लिये खेती की जमीन-मिट्टी अपनी उर्वरा शक्ति खो रही है,

वहीं पोषक तत्वों में भी कमी आ रही है। ऐसे खेतों से आने वाली पैदावार का उपयोग तो किया जा रहा है, लेकिन उसके साथ साथ बीमारियों को भी निमंत्रण दिया जा रहा है। किसानों के पास भी उर्वरकों का कोई विकल्प नहीं है, उपज भी अधिक से अधिक पैदा करना है। इसके कारण सामने आ रहे बीमारियों के खतरे से जन-जीवन को बचाना भी एक महत्वपूर्ण कड़ी है

जिस पर गम्भीरता से ध्यान दिये जाने की आवश्यकता हमारी जीवन शैली में खान-पान के बदलाव के परिणाम स्वरूप कैंसर जैसी भयानक बीमारी भी दस्तक देती जा रही है। चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि भोजन की गुणवत्ता पर पर्याप्त ध्यान न दिये जाने, प्रदूषित
वातावरण, व्यायाम आदि, परिश्रम न करना कैंसर के प्रशस्त कारण हैं।

विश्व भर में हर आयु वर्ग के लोग इस को विनाशकारी बीमारी की चपेट में आ रहे हैं, जो कि अत्यन्त चिन्ताजनक विषय है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केन्द्र ने गत कुछ महीनों पहले ‘राष्ट्रीय कैन्सर रजिस्ट्री’ कार्यक्रम के अंतर्गत प्रस्तुत रिपोर्ट के जरिये बतलाया था कि वर्ष 2025 तक भारत देश में साढ़े सात लाख से अधिक पुरूष और आठ लाख से अधिक महिलायें कैन्सर जैसी बीमारी की चपेट में आ सकते हैं।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और इन्टरनेशनल एजेन्सी फार रिसर्च ऑन कैन्सर ने भी भारत को लेकर अपनी गहरी चिन्ता व्यक्त की है। इस समय भारत में कैन्सर के मरीजों की संख्या दो गुनी हो गयी है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकडों के अनसार देश में प्रतिवर्ष ग्यारह लाख
लोग कैन्सर से पीड़ित होते हैं। इनमें दो तिहाई ऐसे लोगों की संख्या है

जिन्हें बहुत देर बाद पता चलता है कि कैन्सर से पीड़ित है। ऐसे लोगों की मदद करने में चिकित्सक लगभग असफल ही रहते हैं। इस मामले में देश के अन्य हिस्सों की तुलना में पंजाब की स्थिति ज्यादा ही गम्भीर है। इस रोग का इलाज कराने के लिये पंजाब के लोग भारी संख्या में बीकानेर (राजस्थान) स्थित कैन्सर अस्पताल जाते हैं,

जहाँ मुफ्त इलाज मिलता है। ऐसा नहीं है कि पंजाब में इस किस्म का अस्पताल नहीं है। अस्पताल है, पर मरीजों को पैसा खर्च करना पड़ता है। पंजाब से बीकानेर एक ट्रेन चलती है, जिसका नाम ही ‘कैन्सर ट्रेन’ हो गया है। पंजाब के अधिकतर किसान वहाँ इस ट्रेन के माध्यम से ही जाते हैं।

इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा, जबकि इस महत्वपूर्ण और बुनियादी समस्या के लिये जोरदार माँग पंजाब सरकार से की जाना चाहिये थी। इस प्रश्न पर भी गम्भीरता से विचार और चिन्तन होना चाहिये कि पंजाब और हरियाणा में ही कैन्सर के मरीज अधिक संख्या में क्यों मिलते हैं? यहाँ भी उसी कारण की ओर संकेत दिया जा रहा है

कि यहाँ खेतों में रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अंधाधुंध उपयोग किया जा रहा है। वह भी कि किसी भी हालत में भारी मात्रा में उपज होना चाहिये। इसके लिये चाहे पीने का पानी जहरीला बने या खेती की जमीनों की खाद्यान्न उपजाने की ताकत कम होती जाये। खेती के लिये जमीन के अंदर के पानी को बहुतायत से उपयोग किया जाता है, सिंचाई के लिये।

इस सब का मिला जुला परिणाम यही आ रहा है कि रोगियों की तादाद भी तेजी से बढ़ती जा रही है इसमें आ रहे बदलाव की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। जब कि यह एक बड़ा गम्भीर किस्म का खतरा दस्तक दे रहा है। यह मात्र कीटनाशकों दवाओं के छिड़काव का कारण बताया जा रहा है जिसके कारण ही मरीजों की संख्या में बढोत्तरी हो रही है।

चिकित्सा क्षेत्र के शोधकर्ताओं का मानना है कि कुछ बीमारियाँ ऐसी भी हैं जिनके लक्षण पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा देखे जाते हैं। इनमें एंग्जायटी, ब्रेस्ट कैन्सर स्ट्रोक, आस्टियोपोरोसिस आदि हैं। एक रिपोर्ट  के अनुसार अभी सन् 2020 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनसार लगभग 7.12 लाख महिलाओं की मौत कैन्सर से हुयी।

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इस शोध के माध्यम से यह भी पता चलता है कि 6 प्रकार के कैन्सर महिलाओं को पुरूषों की अपेक्षा ज्यादा होते है। स्ट्रोक और एंग्जायरी के भी मामले ऐसे ही हैं, जिनसे महिलायें ज्यादा प्रभावित होती हैं। बीते दिनों नेशनल डिफेंस एकेडमी द्वारा भी इसी प्रकार की चिन्ता व्यक्त की जा चुकी है

कि ड्रग्स और कीटनाशकों के अधिकाधिक प्रयोग होने के परिणाम स्वरूप सेना को भी पहले जैसे दमखम वाले जवान पंजाब से नहीं मिल पा रहे हैं। इतने खतरनाक परिणामों से रूबरू होने के बाद भी क्या देश में जैविक खेती और उस ओर तेजी से कदम बढ़ाने की बात क्या नहीं सोची जा सकती।

लेखक:-डॉ. किशन कछवाहा

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