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वैश्विक आर्थिक परिवेश में भारत

कोरोना तथा यूक्रेन- रूस युद्ध के कारण विश्व की अर्थव्यवस्था उपजे संकट के रूप में इक्कीसवीं शताब्दी के सबसे चुनौतीपूर्ण समय से गुजर रही है। इन चुनौतियों में आपूर्ति श्रृंखला बाधाओं के चलते कच्चे माल की आपूर्ति व वस्तुओं की किल्लत, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण उपजी मुद्रास्फीति की समस्या और देश के विदेशी मुद्राभंडार में कमी प्रमुख हैं। इन चुनौतियों के परिणाम श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल, अर्जेंटीना, नाइजीरिया, केन्या इत्यादि देशों की खराब वित्तीय स्थिति के रूम में हम सभी के समक्ष है। अमेरिका तथा यूरोप के बहुत से देश जहां 30-40 वर्षों की सबसे अधिक मुद्रास्फीति की दर का सामना कर रहे हैं वहीं विश्व को मुद्रास्फीति जनित मंदी के रूप में एक नयी समस्या का भय सताने लगा है। ऐसे समय में हमारी अर्थव्यवस्था की दशा तथा दिशा के विषय में चिंता होना स्वाभाविक है।

यह कहना सही नहीं होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक घटनाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है बावजूद इसके ऐसे भारतीय अर्थव्यवस्था जिस गति से आगे बढ़ रही है वह निःसंदेह इसकी ताकत तथा क्षमताओं का सही परिचायक है। किसी भी देश की खराब वित्तीय स्थिति का कारण  एक या दो घटनाएं नहीं होती बल्कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका आधार उस देश की सरकार द्वारा लम्बे समय के लिए गए खराब आर्थिक निर्णय तथा वित्तीय कुप्रबंधन होते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था ने भी 1980 के दशक में लगभग ऐसी ही स्थिति का सामना किया था, जब खाड़ी युद्ध के कारण उपजी स्थिति में देश दिवालिया होने की कगार तक पहुंच गया था। लेकिनउ उस समय के भारत तथा वर्तमान भारत में अंतर हम सभी के समक्ष है।

वर्तमान में भारत अपने पड़ोसी देशों ही नहीं बल्कि कई विकसित देशों से भी बेहतर स्थिति में हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था इस खराब माहौल में भी 7 से 8 प्रतिशत की विकास दर से वृद्धि कर रही है जो इसकी शक्ति को प्रदर्शित करता है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार, 2021-22 में भारत के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 8.7 प्रतिशत रही तथा 2022-23 में यह 7 प्रतिशत से अधिक रहने का अनुमान है।

एक ऐसे समय में जब विश्व के बड़े से बड़े देश मुद्रा स्फीति की समस्या से जूझ रहे हैं, भारत में यह दर 6 से 8 फीसदी के मध्य दर्ज की गयी जो देश के केन्द्रीय बैंक तथा वर्तमान सरकार की आर्थिक कुशलता का परिचायक है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा सूमय≤ पर मौद्रिक नीति में परिवर्तन के माध्यम से मुद्रस्फीति को नियंत्रित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई है। देश की मुद्रास्फीति के लगभग सभी घटकों की कीमतों में भले ही वृद्धि दर्ज की गयी हो लेकिन अन्य देशों की तुलना में यह वृद्धि नियंत्रण  में हैं।

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत सरकार ने जिस प्रकार अमेरिका तथा यूरोपीय देशों के दबाव में न आकर आर्थिक मोर्चो पर निर्णय लिए यह उसी का परिणाम है कि देश इस समय कई पैमानों पर तुलनात्मक रूप से एक बेहतर स्थिति में है। वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल तथा अन्य वस्तुओं की कीमतों में हुई वृद्धि और डॉलर की मांग में वृद्धि के चलते रूपये की कीमतों में कमी के कारण देश के विदेशी मुद्राभंडार में कमी आई है। 27 मई 2022 को भारत का विदेशी मुद्राभंडार 601.4 बिलियन  अमेरिकी डॉलर था जो लगभग एक वर्ष के  आयात को वहन करने की क्षमता रखता है।

अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा को प्रदर्शित करते आंकड़े जैसे वस्तु एवं सेवा कर, टोल संग्रह, आयात तथा निर्यात इत्यादि समग्र रूप से सकारात्मक स्थिति को प्रकट कर रहे हैं। अभी पिछले कुछ समय में जिस प्रकार विश्व के अधिकतर देशों ने अपने देशों में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से महंगी मौद्रिक नीति को अपनाया है उसका प्रतिकूल प्रभाव भारत के पूंजी प्रवाह, वित्तीय बाजारों  तथा भारत की विनियम दर पर पड़ना लाजमी है, किन्तु हमारे देश की बड़ी उपभोक्ता शक्ति तथा बाजार के आकार के कारण उस स्थिति का सामना करने के लिए भी हमारी अर्थव्यवस्था तैयार दिखाई पड़ती है। इसलिए यह अनुमान लगाना की रूपये की कमजोरी के कारण देश को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है, वर्तमान स्थिति में एक हास्यास्पद कथन ही जान पड़ता है। विश्व की कोई भी अर्थव्यवस्था बिना किसी उतार-चढ़ाव के निरंतर बढ़ती ही रहे ऐसा सम्भव नहीं है। अर्थव्यवस्थाओं में उतार-चढ़ाव का आना एक सामान्य प्रक्रिया है, इस बार हमें यह इसलिए अधिक प्रतीत हो रहा है क्योंकि वैश्विक स्थितियाँ इन सभी तर्कों को बल देती दिख रही है कि वैश्विक स्तर पर हालात ठीक नहीं है। समकालीन वैश्विक घटनाओं का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ना अवश्यम्भावी है लेकिन किस देश पर कितना प्रभाव पड़ेगा यह उस देश की आर्थिक स्थिति और आर्थिक प्रबंधन पर निर्भर करता है। जो तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग भारत को श्रीलंका जैसी स्थिति में जाने का भ्रम फैलाने का कार्य कर रहे हैं, उन्हें तुलनात्मक अध्ययन  करने से पहले दोनों देशों की आर्थिक क्षमता और सामाजिक पृष्ठभूमि को देख लेना चाहिए।

– महाकौशल सन्देश