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भगवान् शिव प्रकृति के अनुपम देवता…

महादेव याने शिव को सृष्टि का सर्वोत्कृष्ट पर्यावरण विशेषज्ञ सिद्ध करते हैं, हमारे पौराणिक आख्यान । शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप जहाँ एक ओर वेदों के ‘सर्वे भवन्तु सुखिन्ः’ का संदेश देता है, वहीं वह सामाजिक सन्तुलन का बेजोड़ उदाहरण प्रस्तुत करता है।

प्रकृति और पर्यावरण कैलाश और काशी में उनका निवास अविच्छिन्न रूप से जुड़े हुये हैं-यही तो संदेश है जिसे इस पावन अवसर पर, हमें उस ओर संकेत है कि हम उनकी उपासना के समय भगवान की कल्याणकारी शिक्षाओं को सहेजने की कोशिश करें ताकि महाविनाशक आपदाओं से हमारी रक्षा भी हो सके।

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प्रकृति की बिखरी हुयी छटा के बीच जीवन जीना शिवजी के मनोमुग्धकारी चरित्र की कल्याणकारी विशेषता है। शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप जिसमें आदिशक्ति माँ का ममतामय, कोमल कायायुक्त आकर्षक स्वरूप और वहीं भगवान का कठोर तपस्या में लीन महाकाल के प्रतीक।

महादेव का कल्याण और शक्ति के सन्तुलन वाले इस स्वरूप को वैदिक ग्रंथों में सृष्टि के संतुलन का समन्वय निरूपित किया है। यही नहीं महादेव का सम्पूर्ण परिवार प्रकृति के परस्पर भावों का विरोधी होते हुये भी एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। वे आशुतोष भी हैं और रूद्र भी।

शिव बैरागी हैं, खुले आसमान के तले सुशोभित हैं, वहीं उनकी अर्धागिनी जगत् जननी माता पार्वती समूचे संसार को सौभाग्य प्रदान करने वाली ममतामयी मूर्ति हैं। इसी प्रकार उनकी संतति भी स्वभाव, गुण, आकृति में भित्र हैं। इतना ही नहीं साथ में रहने वाले पशु पक्षी, भूत-पिशाच एवं अन्य मानवेतर प्राणी भी बैर भाव त्याग कर प्रकृति के कल्याणकारी कार्यों से बाहर नहीं हैं।

इन सबमें तत्वदर्शन निहित है, जिसे गम्भीरता से समझा जाना चाहिए। भगवान शंकर के माथे पर विराजमान चन्द्रमा, जटाओं से गंगा की निर्मलधारा, गले में सर्पो की माला, नेत्र-त्रिलोचन सूर्य, चन्द्र और अग्नि के प्रतीक (जिससे कामदेव भस्म हुये) मार्गदर्शक, भटकों को राह दिखाने वाले, आपदाओं से सावधान करने वाले।

नीलकण्ठ के नाम से प्रख्यात महादेव-जिनका कण्ठ विष पीने के कारण नीले रंग का हो गया। विष बुराईयों का प्रतीक है, जीवन में ये हावी न हो पाये- मानव का ऐसा ही प्रयास हो। वे मृग-चर्म धारण करते हैं, मुण्डमाला और भस्म यही तो आभूषण हैं। यही संदेश मिलता है कि जन्म लेने वाले का मरण सुनिश्चित है- यही राख-भस्म शेष रहने वाली है।

भगवान शिव का प्रमुख अस्त्र है ‘त्रिशूल’ | ये तीन सत, रज, तम प्रवृत्तियों की सूचक हैं, इन प्रवृत्तियों-गुणों पर भी हमारा नियंत्रण बना रहना चाहिये। इनके वाहन-नन्दी। अत्यन्त सीधे सादे और शक्तिशाली जीव हैं। अथक परिश्रम के प्रतीक। भगवान शिव की पूजा- अर्चना के लिये ‘विल्व-पत्र’ क अत्यधिक महत्व है।

वह भी तीन पत्रों वाला अखण्डित विल्व पत्र पूजन के लिये उपयुक्त माना गया है। शिवपुराण आदि ग्रंथों में इसका विस्तार से उल्लेख मिलता है। ये विल्व पत्र के तीनों पत्ते धर्म, अर्थ, काम के प्रतीक हैं। भगवान शंकर का प्रख्यात वाद्ययंत्र है- ‘डमरू’ इसकी ध्वनि उस समय सुनाई देती है, जब ‘ताण्डव नर्तन’ होता है। वैसे तो वे भोलेनाथ कहे जाते हैं, उनका स्वभाव शांत और सहज ही है,

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लेकिन दुष्ट शक्तियों को नष्ट करते समय उनका रूप क्रोध प्रस्फुरित होने के कारण रौद्र स्वरूप प्रगट होता है। भगवान शिव अपने भक्तों के लिये सदैव कल्याणकारी हैं। उनकी कृपा हम सब पर बनी रहे। उन्हें “भवानी सहितं” बारंबार नमन्। सहस्र नामों से प्रख्यात देवों के देव महादेव भारत में द्वादश ज्योर्तिलिंगों में विद्यमान हैं। सोमनाथ, त्रयम्बकेश्वर उज्जैन के महाकालेश्वर स्वरूप हम सबका कल्याण करें।

वरिष्ठ लेख़क:- डॉ. किशन कछवाह
संपर्क सूत्र :- 9424744170