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डरे नहीं हैं, अपने कुकृत्यों पर पर्दा डालने की कोशिश है – डाॅ. किशन कछवाहा

दुनिया भर में 5 बार लाऊडस्पीकर पर अजान होती है। अजान से लोगों को दिक्कत होती है। पहले अजान की शब्दावली- ‘‘ला इलाहा इल्लल्लाह मोहम्मद रसूलल्लाह।’’ का अर्थ सामान्यतः लोग नहीं भी समझते थे। इसका अर्थ है- दुनिया में अल्लाह के अलावा कोई ईश्वर नहीं है। अब लोग इस अर्थ से वाकिफ होते जा रहे हैं।
85 प्रतिशत गैर-मुसलमानों के सामने दिन में पाँच बार बोला जाता है। कल कोई मस्जिद के सामने या मुस्लिम इलाकों में लाऊडस्पीकर से यह बोलना शुरू कर दे कि ‘‘भगवान शंकर के अलावा दुनिया में कोई भगवान नहीं है, तब क्या होगा-इसकी कल्पना कभी किसी ने की है?’’
मुसलमानों को छूट मिली है। इसे वे खत्म होने नहीं देना चाहते। यह जिद का सवाल है।
इसी प्रकार हलाला और तीन तलाक बहुत बड़ी कुरीतियाँ हैं। हलाला तो उनके लिये एक बड़ा उद्योग बन गया है। इसलिये ये सब खत्म होना ही चाहिये। भारत में सबके लिये एक समान कानून होना चाहिये।

जावेद अख्तर, आरिफ जकारिया, शाहरूख खान, पटौदी खानदान जैसे लोगों ने कश्मीर में हुये हिन्दुओं पर हुये अत्याचार के खिलाफ जवान क्यों नहीं खोली? मुस्लिमों से जुड़ी कोई छोटी से छोटी घटना हो जाती है, तो सबके सब कहने लगते हैं, इस्लाम खतरे में है। मुसलमान डरा हुआ है।
पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, मशहूर शायर मुनब्बर राणा जैसे लोग हिन्दुओं के प्रति घृणा फैलाते रहते हैं। उन्होंने बयान में यहाँ तक कहा कि यदि योगी आदित्यनाथ दोबारा उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो वे राज्य को छोड़ देंगे।
जब-जब राष्ट्रवादी सरकारें आती हैं, तब ऐसे लोगों को बड़ा मानसिक कष्ट होता है, जो भारत को निजामें मुस्तफा की ओर ले जाना चाहते हैं। ध्यान दिये जाने वाली बात यह है कि ईसाई और पारसी जनसंख्या के हिसाब से बहुत कम है। वे कभी नहीं कहते कि उन्हें डर लग रहा है। करोड़ों की संख्या में रहने वाले मुसलमानों को डर किस बात का है? निश्चय ही यह डर नहीं है, अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने की नायाब कोशिश है।
न्याय, समानता, बन्धुत्व हमारे संविधान के भी स्तम्भ हैं। महिलाओं को इनसे अलग करके नहीं देखा जा सकता और वर्ग विशेष को मनमानी करने की छूट भी संविधान नहीं देता। संविधान सर्वोपरि है। वास्तव समाज का एक वर्ग हिजाब, बुर्का या नकाब के बहाने कट्टरता की ओर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ लोग मजहबी पहचान को बढ़ावा देने पर तुले हैं, बगैर जाने कि इसका दुष्प्रभाव तरक्की और विकास पर ही पड़ना है। हुड़दंगी कहीं भी हो सकते हैं। इस पर ध्यान होना चाहिये कि किस रास्ते पर चलने से तरक्की होगी। ये
मुस्लिम कट्टरवादी महिलाओं को परिवार में कैद करके क्यों रखना चाहते हैं? उन्हें उनके आगे बढ़ने में आपत्ति क्यों होना चाहिये? मुस्लिम समाज की जिद हिजाब या पोशाक के बारे में न होकर प्रगति, मुख्यधारा से जुड़ने मूलभूत सुविधाओं के लिये हो। स्कूल में बच्चों को उनका उज्जवल भविष्य बनाने की शिक्षा दी जाती है, अतः हिजाब को लेकर राजनीति नहीं करनी चाहिए।
डरे हुये लोगों के कारनामे
-17 जनवरी,2022 को सुल्तानपुरी, दिल्ली में हीरालाल गुजराती की हत्या इरफान और उसके गुर्गों ने कर दी। पहले इन दोनों ने हीरालाल की बहन के साथ बलात्कार किया था। विरोध करने पर उनकी हत्या कर दी।
-25 जनवरी,2022 को गुजरात के धुधका में किशन भरवाड की हत्या शब्बीर और इम्तियाज ने कर दी। इस मामले में छह लोग गिरफ्तार हुए हैं।
-2 फरवरी,2022 को मणिपुर के लिलोंग में अब्दुल, हुसैन और आरिफ ने भाजपा के झंडे पर रखकर गोमाता की हत्या की।
-22 मई,2021 की आधी रात को पूर्णिया जिले के बायसी थाने की खपड़ा पंचायत के मझुवा गांव पर करीब 200 मुसलमानों ने हमला कर एक चैकीदार की हत्या कर दी और गांव के सभी घरों में आग लगा दी। इस कारण 250 हिन्दू बेघर हुए।
-12 नवम्बर,2021 को अमरावती में मुस्लिम दंगाइयों ने जमकर हिंदुओं को निशाना बनाया। हिन्दुओं की लगभग 100 दुकान और मकान जला दिए गए।
-15 नवम्बर,2021 को केरल के पल्लकड़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता एस. संजीत की हत्या कर दी गई। हत्या का आरोप एसडीपी आई के गुर्गों पर लगा है। केरल में इस तरह की घटनाएं आम हो गईं हैं।
-12 अगस्त,2021 को बेंगलूरू में पाॅपुलर फ्रंट ऑप इंडिया से जुड़े छात्र संगठन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के समर्थकों ने कांग्रेस के एक विधायक के घर और यहां तक कि पुलिस थाने पर हमला कर दिया।
-2020 में जब कोरोना चरम पर था तब इंदौर, मुरादाबाद, मेरठ, सहारनपुर, रांची, सूरत, पटना, भोपाल जैसे शहरों में कुछ कट्टरवादियों ने पुलिस पर हमले किए।
-16 मई, 2019 को उत्तरप्रदेश के गोंडा जिले में विष्णु गोस्वामी को इमरान, तुफैल, रमजान और निजामुद्दीन ने पेट्रोल डालकर जिंदा जला दिया।
-2 मई, 2019 को तमिलनाडु में वी. रामलिंगम की हत्या निजामअली, सरबुद्दीन, रिजवान, मोहम्मद अजरूद्दीन और मोहम्मद रैयाज ने पीट-पीटकर कर दी।
-16 मई,2019 को दिल्ली के मोतीनगर में धु्रव त्यागी की हत्या उनके परिवार वालों के सामने ही मोहम्मद आलम, जहांगीर खान और अन्य नौ लोगों ने हत्या कर दी।
-9 मई,2019 को हैदराबाद में डाॅ. प्रीति रेड्डी के साथ मोहम्मद पाशा और कुछ अन्य लोगों ने बलात्कार किया और बाद में पेट्रोल डालकर जला दिया।
-8 अक्टूबर,2019 को बंधु प्रकाश, उनकी पत्नी और उनके आठ साल के बेटे की हत्या पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में कर दी गई। इसके सभी आरोपी मुसलमान हैं।
-18 अक्टूबर,2019 को लखनऊ में कमलेश तिवारी की हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड में अनेक लोग शामिल हैं और सभी मुसलमान हैं।
-26 जनवरी, 2018 को उत्तरप्रदेश के कासगंज में चंदन गुप्ता नाम युवक की हत्या मुसलमानों की भीड़ ने कर दी। मुख्य आरोपी का नाम सलीम है।
-1 फरवरी,2018 को दिल्ली के टैगोर गार्डन में अंकित सक्सेना की हत्या दो लोगों ने कर दी। दोनों आरोपी बाप-बेटे हैं।
-23 मार्च,2016 को दिल्ली के विकासपुरी में डाॅ. पंकज नारंग की हत्या कुछ मुसलमानों ने कर दी।
-9अक्टूबर,2015 को कर्नाटक के मेंगलुरू में प्रशांत पुजारी की हत्या हनीफ, इब्राहिम, इलियास और अब्दुल रशीद ने कर दी।
-30 सितम्बर,2013 को बालक विधु जैन की हत्या पंजाब के मलेरकोटला में मुसलमानों की भीड़ ने कर दी।

मुस्लिम आक्रान्ताओं ने पराजित हिन्दुओं का नरसंहार करते हुये नरमुन्डों की मीनारें बनवायीं थी कुतुबुद्दीन ऐबक, अलाउद्दीन खिलजी, तैमूर, बाबर, अकबर, औरंगजे, नादिरशाह हुमायूँ आदि ने जब विजय हासिल की, तब हिन्दुओं पर भारी अत्याचार किये गये। इतिहास के इन काले पन्नों को जानबूझ कर बाहर नहीं आने दिया गया। मुसलमान हमलावरों ने अपने हिसाब से लेखन करवाया।
आज भी धर्म निरपेक्षता का चोला धारण करने वाली ताकतें सक्रिय हैं, जो नहीं चाहती कि मुसलमान अपराधी और आतंकियों के बारे में लोग कुछ जान सकें। हिन्दुओं को कुचलने का यह प्रयास भारत में सदियों से चला आ रहा है। अतीत में हिन्दुओं के कुचलने के लिये कैसी-कैसी क्रूरतायें की गयीं थीं, अब क्रमशः सामने आती जा रहीं हैं।
इतिहास की जघन्य घटनाओं को छिपाने के लिये सेकुलरों ने ‘‘गंगा-जमुनी तहजीब’’ की बात निकाली और देश के लोग इनके झाँसे में आ गये। यही कारण है कि भारत के टुकड़े होते जा रहे हैं। यदि हम भारतीय चाहते हैं कि भारत का अब कोई और विभाजन न हो तो हमें अपने इतिहास से सबक लेना चाहिये।

लेखक:- डाॅ. किशन कछवाहा