Trending Now

कोरोना और उससे उत्पन्न हुये रोग – डाॅ. किशन कछवाहा

लम्बे समय के अंतराल के बाद यह अहसास होना स्वाभाविक ही है कि इस महामारी से अब हम निजात पा चुके हैं। यह पूरी तरह सच नहीं है। यद्यपि कोरोना की रोकथाम के लिये लगाई गयी पाबंदियाँ सरकार द्वारा वापिस ले ली गयीं हैं। यहाँ तक कि रात्रिकालीन कफ्र्यू भी हटा लिया गया है।
कोरोना की दूसरी लहर ने लोगों को बुरी तरह भयभीत कर दिया था। रिस्तों की मिठास को कम कर दिया था। लेकिन अब जैसे कोरोना की भयावहता धीरे-धीरे कम होने लगी है, जिन्दगी पुनः पटरी पर आने को बेताब है। कहीं कहीं बीच-बीच में यह भी एहसास करा दिया जाता है कि उसकी कहीं भयावहता को भुला तो नहीं चुके हैं?
साफ हवा, साफ वातावरण आज भी हमारे लिये कितना आवश्यक है? इस तथ्य को भी याद कर ले जब डाॅक्टर्स वैज्ञानिक शोध कर्ताओं ने यह भी सलाह दी थी कि जिसकी इम्युनिटी अच्छी होगी, उस पर कोरोना का दुष्प्रभाव कम होगा। हम अपने भोजन के बारे में भी सचेत हो गये थे। हाथ मिलाना, गले लगना भी तो बंद कर दिया था, सोशल डिस्टेंसिंग, हाथों को सेनीटाईज करना शुरू कर दिया था। तब ध्यान देने योग्य बात यह है कि भारतीय परम्परा ओर संस्कृति जो हमारी मूल्यवान धरोहर है, उनके संदेशों से भी हम दूर हो गये थे। अब उसी संस्कृति और परम्परा को पुनः स्थान दिये जाने को क्यों न आवश्यक समझें, जिस पर हमने विपदा के समय पर भी गर्व किया था।

कोरोना लॉकडाउन: ग़रीब और कमज़ोर तबके की मदद के लिए क्या उपाय किया जा सकते  हैं

इस कोरोना महामारी ने न केवल भारत को वरन् सारे विश्व के जन जीवन को बुरी तरह से झकझोर कर रख दिया था। कमजोर होती कोरोना की तीसरी लहर ने जितना डरा दिया था, उसे भुलाया जाना आसान तो नहीं है, फिर भी कोरोना प्रोटोकाॅल का पालन करना अभी भी छोड़ा जाना खतरनाक साबित हो सकता है। क्योंकि कोरोना संक्रमित हो चुके मरीजों से संबंधित जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उससे ऐसी संभावना तो बनी ही रह सकती है कि यह महामारी अभी जल्दी अपना प्रभाव छोड़ने वाली नहीं है, इसीलिये स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा यह सुझाव दिया जा रहा है कि कोरोना संक्रमित मरीज रह चुके व्यक्ति इसके संक्रमण के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होने वाली बीमारियों से सचेत रहें और उनकी उपेक्षा न करें।
इस संक्रमण से उबरने में भले ही आठ-दस सप्ताह का समय लगता हो, लेकिन इस बीमारी के कारण उत्पन्न अन्य रोगों का खतरा बना रह सकता है। इसीलिये विशेषज्ञों की सलाह पर ध्यान दिया जाना आवश्यक हो जाता है।
खास तौर से हृदय संबंधी समस्यायें सामने आ रहीं हैं। यह तथ्य प्रशंसनीय है कि मोदी सरकार द्वारा व्यापक पैमाने पर किया गया टीकाकरण बेहतर सुरक्षा कवच सिद्ध हुआ है। लेकिन अभी भी खतरा पूरी तरह से टला नहीं है। कहीं सांस लेने की परेशानी, तो कहीं पेट संबंधी समस्यायें, थकान, दर्द और बेचैनी जैसी बीमारियाँ कोरोना जनित ही मानी जा रही हैं, वे भी सामने आती जा रही हैं। इसे भी ‘‘कोरोना आफ्टर इफेक्ट’’ के रूप में लिया जाना चाहिये।
सावधानी इसलिये भी आवश्यक है कि वैज्ञानिक अब चैथी लहर का अनुमान-आशंका व्यक्त कर रहे हैं। यह आगामी 23 जून के बीच तक संभावित है, जिसके 24 अक्टूबर तक बने रहने का अनुमान व्यक्त किया जा रहा है। इससे पूर्व कोविड शोधकर्ताओं द्वारा जो भविष्य वाणियाँ की गयीं थीं, वे सही साबित हुयीं हैं।
ओमिक्रोन के बाद चैथी लहर कितनी खतरनाक होगी-यह नया वेरियंट किन-किन पर प्रभाव डालेगा- यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कितने लोगों को वैक्सीन और बूस्टर डोस लग चुकी है।
यद्यपि तीसरी लहर का प्रभाव हल्का पड़ता जा रहा है। और नया वेरियंट आने में समय लग सकता है।

लेखक:- डाॅ. किशन कछवाहा