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“स्वर्णिम मध्यम मार्ग के प्रणेता : गौतम बुद्ध”

भगवान् विष्णु के अंशावतार “गौतम बुद्ध” (तथागत) का अवतरण आज वैशाख पूर्णिमा (बुद्ध पूर्णिमा) को हुआ था। आपके द्वारा स्थापित बौद्ध धर्म, सनातन धर्म का कनिष्ठ सहोदर है। सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) का अवतरण कपिलवस्तु के लुंबिनी ग्राम (563 ई. पू.) में हुआ। पिताश्री का नाम शुद्धोधन एवं माताश्री का नाम महामाया था। सहधर्मचारिणी यशोधरा एवं पुत्र राहुल थे।

महापरिनिर्वाण कुशीनारा (483 ई. पू.) में हुआ। स्वर्णिम मध्यम मार्ग के आलोक में “बौद्ध धर्म” के संस्थापक थे। तथागत के जीवन में सम संख्या और विशेषकर 4का विशेष संयोग रहा है – 4 पूर्णिमा(जन्म से निर्वाण), 4 घटनायें (जिनके कारण 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग किया), 4 महत्वपूर्ण जीवन के पड़ाव (महाभिनिष्क्रमण(गृह त्याग) +संबोधि (बोध गया में निरंजना नदी के किनारे पीपल के वृक्ष के नीचे 6वर्ष की तपस्या फलीभूत हुई), धर्मचक्रप्रवर्तन (सारनाथ में प्रथम उपदेश) +निर्वाण), 4 आर्य सत्य (मुख्य दर्शन), 4बौद्ध संगीतियाँ (राजगृह+वैशाली +पाटलिपुत्र +कुण्डलवन)। वैंसे आष्टांगिक मार्ग (जो कि छांदोग्य उपनिषद से लिए गए हैं) और दस शील के सिद्धांत भी सम संख्या हैं (प्रतियोगी परीक्षार्थियों को याद करने की अच्छी युक्ति है कि बौद्ध धर्म के मूलत:सिद्धांत सम संख्याऔर जैन धर्म के सिद्धांत विषम संख्या में हैं)। इनमें केवल त्रिरत्न(बुद्ध +धम्म +संघ) और त्रिपिटक (विनयपिटक +अभिधम्मपिटक +सुत्तपिटक पालि भाषा में) ही विषम हैं।

“प्रतीत्यसमुत्पाद” ही बुद्ध के उपदेशों का सार एवं उनकी संपूर्ण शिक्षाओं का आधार स्तंभ है। प्रतीत्य (किसी वस्तु के होने पर) +समुत्पाद (किसी अन्य वस्तु की उत्पत्ति) निर्वाण परम लक्ष्य और वह इसी जीवन में ही करता है, जिसके लिए बुद्ध ने जरामरण चक्र के प्रकाश में 12 निदान चक्रों को बताया है, फिर पार करने के लिए 4 आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग, 10 शील के सिद्धांत बताये हैं। बुद्ध अनीश्वरवादी और अनात्मवादी थे, परंतु पुनर्जन्म मानते थे और संसार को क्षणभंगुर भी। स्वर्णिम मध्यम मार्ग के जनक और करुणा के सागर गौतम बुद्ध की जयंती पर शत् शत् नमन है।

लेखक:- डाॅ. आनंद जी सिंह राणा
संपर्क सूत्र – 7987102901