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हिन्दू भारत में ही सुरक्षित नहीं, क्यों? डाॅ. किशन कछवाहा

प्रख्यात इमाम एवं अनेक इस्लामी संस्थाओं के संचालक सैयद खुर्शीद आलम ने कहा था कि मुसलमान इस्लाम एवं कौम से मुहब्बत करता है, मुल्क से नहीं। जुलाई-अगस्त 1981 में उन्होंने हिन्दूधर्म स्वीकार कर लिया। देश के सेकुलर-वामपंथी बुद्धिजीवी जोर-जोर से गंगा-जमुनी तहजीब की बात अक्सर करते रहते हैं, ऐसी कोई संस्कृति अस्तित्व में न कभी रही है, न आज है।

भारत में मुसलमान और ईसाई भी करोड़ों की संख्या में निवास करते हैं। मुल्ला-मौलबी चाहते हैं, मुसलमान मुख्य धारा से कटे रहें ताकि उनका दबदबा कायम रहे।

सपा के आजम खान पश्चिम उत्तरप्रदेश को मुस्लिम प्रदेश बनाने की माँग सन् 2006 से आम सभाओं में खुले आम करते ही रहे हैं। आज हैदराबाद के औबेसी देश में मुख्य धारा से अलग समानान्तर मुस्लिम नेतृत्व खड़ा करने ऐड़ी- चोटी का पसीना बहा रहे हैं।

सपा नेता अखिलेश ने तो सारी प्रजातांत्रिक मर्यादाओं को लाँघते हुये भारत की अखण्डता के विधातक शत्रु मोहम्मद अली जिन्ना का महिमामंडन ही नहीं किया, वरन् मुस्लिम वोटों की खातिर उसे महात्मा गाँधी, नेहरू व सरदार पटेल के समकक्ष खड़ा कर दिया, जिस जिन्ना ने आजादी के पहले मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हिन्दुओं का नरसंहार लूटपाट व बलात्कार के लिये डायरेक्ट एक्शन का आव्हान करा डाला था।

Rights to Religion Bill 2021: कर्नाटक धर्म के अधिकार संरक्षण विधेयक, 2021 को कैबिनेट ने मंजूरी दीThe cabinet approves the Karnataka Protection of Rights to Religion Bill, 2021

कलकत्ता, नोआखाली सहित अनेक स्थानों पर पूरे के पूरे गाँवों का बन्दूकी नौंक पर मतान्तरण कराया था। गर यह पार्टी और उसके नेता अखिलेश जीत जायें तो किस प्रकार की तुष्टिकरण की राजनीति करेंगे-यह अत्यंत चिन्ता का विषय है।

पं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो और भी दो कदम आगे हैं, इस मामले में ममता बनर्जी की बंगाल में सरकार बनते ही  उनके मजहबी माफिया, रोहिंग्या व बांग्लादेशी मुस्लिमों ने डायरेक्ट एक्शन की उसी तर्ज पर आगजनी हत्यायें व बलात्कार से बचने हजारों हिन्दू परिवारों को पड़ोसी राज्यों झारखंड व असम में शरण लेने बाध्य होना पड़ा था। क्या इन हथकंडों को समझना कठिन है कि ऐसे घिनौने खेल के माध्यम से कैसी-कैसी साजिशें हिन्दूओं के खिलाफ लगातार रची जा रही हैं।

केवल तीन बीघा जमीन हो, चिकन नेक जैसा मामला हो, बाँग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा सुनियोजित Save Asam का आन्दोलन इनसे संकेत साफ समझ में आता है, राष्ट्र विधातक ताकतें चाहतीं क्या हैं?

तामिलनाडु में स्वतंत्रता के बाद से ही जनसंख्या में ईसाईयों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है। कन्याकुमारी के साथ-साथ कांचीपुरम, तिरूबल्लूर, तिरूचिरापल्ली, तंजाबुर, नागा पत्तनम् इत्यादि जिलों में भी कन्वर्जन और अतिक्रमण के मामले में बढ़ोत्तरी हुयी है। शहरों और नगरों के नाम भी कन्वर्ट करने के प्रयास हुये हैं।

क्या तामिलनाडु धर्म निरपेक्ष राज्य है? यह हिन्दू-विरोधी राज्य बन चुका है। चर्च का अधिपत्य बढ़ा है। डी.एम.के. के शासन काल में मंदिरों की भूमि लूट के लिये प्रयुक्त होती रही है। हिन्दुत्व में विश्वास रखने वालों की पक्की धारणा बन चुकी है कि डीएएम.के. का कन्वर्जन को खुला समर्थन है। सुनियोजित अतिक्रमण और कन्वर्जन से सांस्कृतिक हमले किये जा रहे हैं।

AIMPLB On Surya Namaskar | केंद्र के सूर्य नमस्कार कार्यक्रम का ऑल इंडिया  मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने किया विरोध, कह दी ये बात | Navabharat (नवभारत)

आल इंडिया मुस्लिम लाॅ बोर्ड द्वारा सूर्य नमस्कार का विरोध किया जाना, इस्लामी कट्टरता का प्रतीक है। पश्चिम बंगाल, असम और सीमावर्ती राज्यों में विभाजन के बाद से अब तक घुसपैठ क्रमशः बढ़ती ही चली गयी। तत्कालीन सेकुलर दलों, विशेषकर कांग्रेस, वामदल और तृणमूल कांग्रेस ने वोट बैंक के लोभ में इस अवैध घुसपैठ को बढ़ावा दिया। हिन्दु जिन इलाकों में बहुसंख्यक थे, अब इस घुसपैठ के कारण अल्पसंख्यक हो गये हैं। इन इलाकों से हिन्दुओं को पलायन करना पड़ रहा है।

पूर्वी बंगाल (अब बंगलादेश) इस विभाजन के बाद हिन्दुओं के साथ न केवल भेदभाव हुआ, वरन् भारी अत्याचार भी हुये थे। उनकी सम्पत्तियों पर दूसरों ने कब्जा कर लिया था। हाँलाकि यह अकाट्य सत्य है और ऐतिहासिक भी, कि भारत के 90 प्रतिशत से अधिक मुसलमानों  के पूर्वज हिन्दू ही थे-यह तथ्य पिछले पाँच सौ वर्षों के क्छ। ज्मेज के जरिये उजागर हो चुका है। लेकिन इतने से ही देश के प्रति निष्ठा को स्वीकार करके नहीं चला जा सकता।

मजहब और कुरान मुसलमानों को इस बात की इजाजत नहीं देती है कि वे गैर- मुलसमानों पर विश्वास करें, उनके साथ सामाजिक संबंध जोडे़ं। पूर्व इतिहास पर दृष्टिपात करें तो पता चलता है कि फीरोजशाह तुगलक और सिकन्दर लोदी का जन्म हिन्दू माताओं के गर्भ से हुआ था, किन्तु वे दल्ली के किसी भी अन्य सुल्तान की अपेक्षा कहीं अधिक उन्मादी सिद्ध हुये।

मुसलमान भले ही इस विशाल भारतीय समाज के अंग बन चुके हैं; लेकिन ये कन्वर्टेड मुसलमान भारत में बसे विदेशी मुसलमानों की अपेक्षा मजहबी दृष्टि से कट्टर साबित हुये हैं।

दूसरी तरफ विभिन्न प्रकार की आलोचनाओं और विरोधी प्रचार के चलते हिन्दुत्व पर आस्था व्यक्त वाले दल साम्प्रदायिक नहीं हो सकते क्योंकि उनके समक्ष देश के सौ करोड़ से अधिक हिन्दू समाज की सेवा का लक्ष्य है।

यद्यपि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि मुस्लिम जगत् में अपने मजहब से दूर होना ‘‘जंगल की आग’’ जैसा ही फैलता चला जा रहा है। इस्लाम छोड़ने वाले जिस ठसक और हौसले के साथ यह बात कह भी रहे हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। अभी तुर्कीमूल की लेखिका लालेगुल की ‘‘मैं जीना चाहती हूँ’’ सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तक में अनेकों प्रभावी घोषणाये की हैं। यह सब बदलाव अनेक मुस्लिम देशों में इसे कठोर इस्लामी कायदे छोड़ना, सभी मजहबी कायदों से छुट्टी करना, नास्तिक हो जाना, दूसरे धर्म को अपना लेना आदि रूपों में देखने में आ रहा है।

इस्लामिक स्टेट, तालिबान आदि के कारनामों का मुसलमानों के एक वर्ग पर राजनैतिक इस्लाम को लेकर बुनियादी रूप से कई प्रकार के संदेह भी पैदा हो गये हैं। मुल्ला-मौलवियों द्वारा सब प्रकार के फैसले लेने-देने की परम्परा तेजी से टूट रही है। मिस्त्र में इस्लामी संगठनों को शंका की निगाह से देखा जाने लगा है, कभी कभार उनकी सरे आम पिटाई भी कर दी जाती है।

वसीम रिजवी इस्लाम छोड़ आज से हिन्दू बने, यति नरसिंहानंद सरस्वती ने कराई सनातन धर्म में वापसी - wasim rizvi becomes hindu accept sanatan dharma islam yati narsinghanand saraswati ...

भारत में वसीम रिजवी जाना पहचाना नाम है, जिन्होंने अभी हाल ही में इस्लाम छोड़कर हिन्दूधर्म में घर-वापिसी की है। उनके साहसिक कदम से मुस्लिम बिरादरी में भारी हलचल मची हुयी है। रिजवी ने अपनी पुस्तक ‘‘मुहम्मद’’ में जो कुछ लिखा है, बहुत साफ साफ है। किसी ने उनके आरोपों को झूठा नहीं कहा। उन्होंने कहा कि इस्लाम का सच बहुत कम लोग बताते हैं, जो बोलना चाहता है, उसके साथ गलत व्यवहार हो रहा है। हर जगह विस्फोट, हर जगह आतंक, हर जगह आई.एस.आई., कसाब को देखा, अल्ला-हूँ-अकबर कहकर लोगों की गर्दन काटी। ये सारी चीजें 1400 साल से वैसी की वैसी ही चली आ रही हैं। इस्लाम के आने का जो मकसद है, उसको उजागर करने का काम ‘‘मुहम्मद’’ पुस्तक ने किया है। रिजवी साहब ही उसके साहसी  लेखक हैं।

इस्लाम क्यों छोड़ रहे मुस्लिम? शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी का ही इस्लाम छोड़ना सामान्य घटना नहीं है। आँधी की शुरूआत यूरोप से हुयी हैं, अब उसका प्रभाव सारी दुनिया में देखा जा रहा है। इस्लामी मुल्क भी इस बदलाव की आँधी से बच नहीं सके हैं। भारत जैसे देश में भी लगभग 6 प्रतिशत मुसलमानों का अपने अल्लाह पर भरोसा टूटा  है। आखिर प्रश्न यह है कि इस मोहभंग का मूल कारण क्या है? झूठ को लम्बे समय तक ताकत के बल पर टिकाये नहीं रखा जा सकता।

अब दुनियाभर में इस्लाम के संरक्षक कहे जाने वाले सऊदी अरब ने ही कट्टर सुन्नी इस्लामी संगठन तबलीगी जमात पर प्रतिबंध लगा दिया है। वहीं से और खाड़ी देशों से उसे करोड़ों रूपयों की फंडिंग मिलती रही है।

लेखक:- डाॅ. किशन कछवाहा
सम्पर्क सुत्र:- 9424744170