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श्रीलंका में ‘पिल्लईयार’ और ‘गणदेवी’ के रूप में गणेश…

वैश्विक गणेश / 6

श्रीलंका में ‘पिल्लईयार’ और ‘गणदेवी’ के रूप में गणेश…

श्रीलंका के मानचित्र के बगैर, भारत का मानचित्र पूरा नहीं होता. अगर श्रीलंका को छोडकर, केवल भारत का मानचित्र सामने रखा, तो वह आधा – अधूरा सा लगता हैं. भारत – श्रीलंका संबंध समझना हो तो यह भावना समझना आवश्यक हैं।

श्रीलंका के रग रग में हिन्दू संस्कृति रची – बसी हैं. इसलिए श्रीलंका में भगवान गणेश का अनन्यसाधारण महत्व हैं. किसी भी कार्य का प्रारंभ करते समय, श्री गणेश की आराधना की जाती हैं. अभी २२ अगस्त को, श्रीलंका के लंदन स्थित उच्चायोग ने, ‘श्री वेल मुरुगन मंदिर’ में गणेश चतुर्थी के अवसर पर गणेश भगवान की विधिवत पूजा की।

श्रीलंकन सरकार ने उनके विदेश विभाग की वेबसाइट पर, बड़े ही गर्व के साथ यह समाचार साझा किया हैं. (समाचार की लिंक कमेंट में दी हैं). यह इस बात का प्रमाण हैं की विघ्नहर्ता गजानन को श्रीलंका में सभी स्तर पर पूजा जाता हैं।

श्रीलंका में गणेश भगवान का नाम ‘पिल्लईयार’ हो जाता हैं. श्रीलंका में ७४% सिंहली लोग हैं. इनमे से अधिकतर बौध्द मत मानने वाले हैं. किन्तु वे सभी भगवान गणेश के प्रति श्रध्दा और आस्था रखते हैं।

श्रीलंका के अधिकतर बौध्द विहारों में और स्तूपों में भगवान गणेश की उपस्थिती प्रमुखता से हैं. अनेक स्थानों पर प्रतिमाओं के रूप में, तो कुछ स्थानों पर म्यूरल्स के रूप में गणेश विद्यमान हैं. श्रीलंका में कुछ अपवाद छोड़कर, अधिकतर गणेश प्रतिमाएं काले पत्थर से बनी हुई हैं।

अंग्रेजों ने श्रीलंका पर शासन करने से पहले के, सिंहली भाषा में अनेक ग्रंथ उपलब्ध हैं. ऐसा ही एक ग्रंथ हैं, ‘गणदेवी हल्ला’. (सिंहली भाषा में गणेश जी को ‘गणदेवी’ कहा जाता हैं). इस पुस्तक में ४९ विभिन्न छंदों के माध्यम से गणेश जी की स्तुति की गई हैं. इन में से एक हैं –

 

Ganadeviyan nuwana denna
Sarasawathi pahala venna
Siyalu roga durukaranna
Nitara vandimi thunuruvanna

श्रीलंका में 18% तमिल हैं, जो गणेश जी को मानते हैं. इसलिए तमिल बहुल क्षेत्र, अर्थात अनुराधापुर, जाफना, बट्टिकओला, त्रिंकोमाली, कीलिनोच्ची आदि क्षेत्रों में अनेक गणेश मंदिर हैं, या मंदिरों के समूह में गणेश भगवान विराजित हैं।

किन्तु श्रीलंका के, सिंहली बहुल दक्षिण भाग में भी, प्राचीन गणेश मंदिर बड़ी संख्या में हैं. केंडी – जाफना हाइवे पर एक प्राचीन बौध्द मंदिर हैं – ‘दंबुला गुफा मंदिर’ या ‘दंबुला गोल्ड टैम्पल’. यह पहाड़ों को खोदकर, गुफाओं में बनाया गया विशाल मंदिर हैं. इस मंदिर के गुफा (या विहार) क्रमांक २ में गणेश जी की एक अति प्राचीन, सुंदर मूर्ति हैं. यह स्थान संरक्षित स्मारक हैं।

कोलंबो से सवा दो सौ किलोमीटर की दूरी पर, किसी जमाने में घने जंगलों के बीच, ‘कटरागामा मंदिर’ यह भी गणेश भक्तों की आस्था का केंद्र हैं. कुछ वर्षों पूर्व तक, यहां पर पहुचना अत्यंत कठिन होता था।

 

किन्तु अब वहां तक पक्का रास्ता बन गया हैं. यह बौध्द – हिन्दू मत का मिलाजुला मंदिर हैं. लगभग दो हजार वर्ष पूर्व तक, यह स्थान सिंहली राजाओं की राजधानी हुआ करता था।

श्रीलंका के गणेश मंदिरों में प्रमुख हैं, कोलंबो के उपनगर में स्थित ‘केलानिया मंदिर’. इसका पूरा नाम हैं – ‘केलानिया राजा महा विहार’. मूलतः यह बौध्द विहार हैं. इसकी एक स्वतंत्र दीवार पर, बड़े से चूहे पर बैठे गणराज, श्रीलंकन आस्था के केंद्र हैं।

किसी समय लंका पर राज करने वाला रावण, शिवभक्त था. इसलिए प्राचीन काल से श्रीलंका में शिव मंदिर बड़ी संख्या में हैं. लगभग सभी मंदिरों में गणेश जी के लिए स्वतंत्र स्थान होता हैं. आज भी श्रीलंका में किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले, गणेश जी को पूजा जाता हैं।