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नशे और जिहाद का कॉकटेल, पकड़ी गई नशे की सबसे बड़ी खेप

पाकिस्तान से सटी वाघा बॉर्डर पर 30 जून को 3200 करोड़ रूपए की हेरोइन बरामद हुई. नमक की बोरियों में छिपाई गई 640 किलो हेरोइन की ये बरामदगी, संभवतः अब तक की सबसे बड़ी बरामदगी है. सड़कों पर आने के बाद हेरोइन की इतनी मात्रा लाखों लोगों के लिए पर्याप्त होती| दशकों से तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान के इलाके और पाकिस्तान, वैश्विक हेरोइन व्यापार और उत्पादन की महत्वपूर्ण कड़ी बने हुए हैं. साल 2018 में अफगानिस्तान में 2 लाख 60 हजार हेक्टेयर भूमि पर अफीम की खेती हुई. जिहादी आतंकियों की सरपरस्ती में अफगानिस्तान में विश्व की 75 प्रतिशत हेरोइन का उत्पादन होता है. इससे मिलने वाले धन से सबसे ज्यादा खून अफगानिस्तान का ही बहाया जाता है.
देह को लगता घुन –
पाकिस्तान से होने वाली मादक पदार्थों की तस्करी में अमृतसर को विश्व मानचित्र में ड्रग्स राजधानी के रूप में स्थापित कर दिया है. सितंबर 2014 में की गई छापेमारी के दौरान इस बात का खुलासा हुआ अमृतसर से दुनिया के अनेक देशों में नशीले पदार्थों के व्यापार को चलाया जा रहा है. यह खुलासा अत्यंत चौंकाने वाला है. भारत के अन्य प्रदेशों में भी मादक पदार्थों का अवैध व्यापार बढ़ता जा रहा है. जम्मू-पंजाब से लेकर तमिलनाडू तक, और राजस्थान से बंगाल तक, नशे का व्यापार फलफूल रहा है. अनेक राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इस आशय के बयान दिए हैं कि इस धंधे से मिलने वाले पैसे से आतंकी फंडिंग भी हो रही है. दुनियाभर के करोड़ों युवा-किशोर और बच्चे इस जानलेवा नशे की चपेट में आ रहे हैं. सबसे खतरनाक हालात तीसरी दुनिया के देशों में हैं, जहाँ समाज में इस बुराई से लड़ने के लिए सामाजिक जानकारी-प्रेरणा और साधनों का अभाव है.
विश्व व्यापी जिहादी तंत्र का बैंक –
भारत, अफगानिस्तान, दक्षिण-पूर्व एशिया, यूरोप, उत्तरी अफ्रीका आदि स्थानों में हुए जिहादी हमलों के सुराग मादक पदार्थों की तस्करी से पैदा होने वाले पैसे से जुड़ते हैं. श्रीलंका में इसी अप्रैल में हुए आतंकी हमले, जिसमें 258 जानें गईं थीं, के तार भी पाकिस्तान से हो रहे मादक पदार्थों के व्यापार से जुड़े थे. भारतीय जांच एजेंसियों के अनुसार इस हमले के लिए आर्थिक स्रोत यही पाकिस्तानी मादक पदार्थ तस्कर बने थे. तस्करी के पुराने मध्य एशियाई और रूसी रास्ते बंद होने के बाद से पाकिस्तानी तस्कर पिछले सात सालों से श्रीलंका के समुद्री रास्तों का इस्तेमाल कर रहे हैं. मादक पदार्थों की खेप कराची बंदरगाह से जहाज़ों और छोटी नौकाओं पर चढ़ाई जाती है, और श्रीलंका की ओर रवाना कर दी जाती है. समुद्री रास्ते पर पकड़े जाने का ख़तरा कम होता है, और संबंधित देशों तक माल पहुंचाना भी आसान होता है. इस तस्करी से मिलने वाले पैसे का बड़ा हिस्सा स्थानीय स्तर पर जिहादी आतंकवाद के वित्तपोषण में काम आता है. 2014 में एक मामले की छानबीन के सूत्र एक पाकिस्तानी राजनयिक से जाकर जुड़े थे, जो एक तस्करी मार्ग को नियंत्रित कर रहा था. दरअसल हुआ ये कि चेन्नई में जाँच एजेंसियों ने दो तस्करों, एक भारतीय मोहम्मद सलीम और एक श्रीलंकाई मोहम्मद सकीर हुसैन को पकड़ा, जो भारत में आतंकी वारदात करने की फिराक में थे. इनको निर्देश देने वाला, कोलंबो के पाकिस्तान हाईकमीशन का एक अधिकारी आमिर जुबैर सिद्दीकी था. एनआइए ने अपनी चार्जशीट सिद्दीकी का नाम जोड़ा और भारत सरकार ने पाकिस्तान पर दबाव बनाना शुरू किया. मामला उछलता देख पाकिस्तान ने सिद्दीकी को हाईकमीशन से हटा दिया. तबसे वो ‘फरार’ है. चीन के सहयोग से नवनिर्मित पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह भी हेरोइन तस्करी का बड़ा लॉन्चपैड बन गया है. जुलाई 2017 में पोरबंदर बंदरगाह पर भारतीय तटरक्षकों ने ग्वादर से आए एक जहाज से डेढ़ टन हेरोइन बरामद की थी. जिसे एक खोखले लोहे के पाइप में भरकर लाया गया था. यह जहाज समुद्र में की जाने वाली खुदाई के लिए माल आपूर्ति करता था.
छद्म युद्ध से उठा नशीला धुंआ –
अफीम की खेती अफगानिस्तान में सदियों पुराना काम है . यहां के दूरदराज के इलाकों में अफीम की खेत सदा लहराते रहे हैं. यहां सीमित मात्रा में अफीम का उत्पादन किया जाता था, जिसे रेशम मार्ग से गुजरने वाले व्यापारी खरीदकर यूरोप और अरब देशों में ले जाते थे. यह काफी हद तक वैध व्यापार था, जो दवा उद्योग के लिए उत्पादन और आपूर्ति करता था. 80 के दशक में जब इस्लामी मुजाहिदीन अफगानिस्तान में सोवियत समर्थित सरकार का तख्तापलट करने का प्रयास कर रहे थे, तब पाकिस्तान ने भी इसमें हाथ डालना शुरू कर दिया था. आई एस आई अमेरिकियों (सीआइए) के इस इलाके में आने के काफी पहले ही मुजाहिदीनों के बीच लोकप्रिय हो चुकी थी. फिर सऊदी अरब का पैसा, अमेरिकियों का पैसा और तकनीकी मदद दोनों, तथा आई एस आई का जमीनी नेटवर्क, इन सबने मिलकर अफगान जिहाद को खड़ा किया. इस महंगी लड़ाई के लिए हर तरफ से पैसा जुटाया गया. आईएसआइ को सीआईए उस्तादों का साथ मिला. जो दुनियाभर में चलने वाले अपने खुफियाअभियानों के लिए अनेक अवैध रास्तों से धन उगाही करती थी. जिसमें मादक पदार्थों का व्यापार भी शामिल था.
अफगानिस्तान में इस व्यापार को बढाने के अनेक उद्देश्यों में से एक उद्देश्य हेरोइन एक की खेप को अफगानिस्तान में तैनात सोवियत सैनिकों तक पहुँचाना और उन्हें इसकी लत लगाना भी था.
पाकिस्तानियों के मुंह खून लगा
पाकिस्तानी इस व्यापार में उतरने को इच्छुक थे. आई एस आई को ये पैसे के स्थायी स्रोत के रूप में दिख रहा था. इस गठजोड़ के फलस्वरूप पाकिस्तान में चलने वाली नशे की मंडियों और फैक्ट्रियों को मादक पदार्थों के वैश्विक बाजार में प्रवेश मिल गया. अफगानिस्तान में अफीम की खेती होती रही और पाकिस्तान में उसे महंगे नशीले उत्पादों में बदला जाता रहा, और ये सारा कारोबार आई एस आई के नियंत्रण में चलता रहा. इसकी बदौलत अगले 10 सालों में अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान दुनिया के सबसे बड़े मादक पदार्थों के बाजार में तब्दील हो गए. स्वाभाविक रूप से इस धंधे से जुड़े अपराधियों का गढ़ भी ये इलाके बन गए. बाद में, अफगानिस्तान में सोवियत पराजय और वापसी के साथ ही अमरीकियों ने अपने हाथ खींच लिए. लेकिन पाकिस्तानियों के मुंह खून लग चुका था. अफगानिस्तान और भारत में आतंकवाद की आपूर्ति करने के लिए उसे धन की अनवरत आवश्यकता थी. इसके अलावा इस पैसे से आई एस आई के गुर्गों और फ़ौज के संबंधित अफसरों की जेबें भी गरम होने लगी. फिर ये धंधा पाक फ़ौज के लिए कमाई का बड़ा ज़रिया बन गया. इसलिए ये व्यापार आज भी बदस्तूर जारी है.
1989- 90 में आई एस आई के प्रमुख रहे जनरल हामिद गुल का नाम आतंक की दुनिया में जाना माना है. वास्तव में हामिद गुल आईएसआई से रिटायर होकर भी कभी रिटायर नहीं हुआ. डीजी आई एस आई रहते हुए हामिद गुल ने अफीम और हेरोइन से मिलने वाले पैसे का उपयोग आई एस आई के खुफिया अभियानों में करने के लिए बकायदा एक अलग डेस्क का निर्माण किया.
पाकिस्तानी फ़ौज की तिजोरी भरने लगी –
धीरे धीरे नशीले पदार्थों की तस्करी से आने वाला पैसा पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के वैध हिस्सों में भी तब्दील होता गया. पाकिस्तानियों को इस पैसे की बहुत जरूरत भी है. उसने अपनी अपनी जरूरत और क्षमता दोनों से ज्यादा, फ़ौज खड़ी कर रखी है. वास्तव में फौज अपना विस्तार स्वयं करती जा रही है. पाकिस्तान भले ही भीख मांगने की स्थिति में पहुंच गया है, लेकिन उसकी लाखों की फौज पूरे ऐशो -आराम के साथ रह रही है. पाकिस्तान के ही एक विश्लेषक के अनुसार पाकिस्तान के विदेशी कर्जे का 80 % तक हथियारों की खरीद में खर्च हुआ है. ये कोई आज के आंकड़े नहीं है. दशकों से यही सिलसिला चला आ रहा है.
भारत से लड़ने के लिए पाकिस्तान ने सारी दुनिया से हथियार जमा किए हैं. उसने चीन और उत्तर कोरिया से मिसाइलें खरीदी. यह 90 के दशक की बात है. इन मिसाइलों का भुगतान कुछ नगद में किया गया और शेष अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से आयातित गेहूं के रूप में. फ्रांस से उसने पनडुब्बी और मिराज लड़ाकू जहाज खरीदे थे. अमेरिका से उसने एफ-16 लड़ाकू विमान प्राप्त किए. चीन से तो टैंक, लड़ाकू जहाज, बम बंदूकें, नाभिकीय रिएक्टर में लगने वाले हजारों रिंग मैग्नेट व अन्य चीजें तथा सैन्य में महत्त्व की अनेक सामग्री प्राप्त कीं. आज उसकी अधिकांश सैन्य आपूर्ति चीन ही कर रहा है. कई साजो- सामान लेबनान ऑस्ट्रेलिया और यूक्रेन से खरीदे. अपने परमाणु कार्यक्रम पर भी उसने काफी खर्चा किया. इस सारे भुगतान के लिए पाकिस्तान की फौज पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था का खून चूसती आई है, लेकिन वह भी कम पड़ता है. इसलिए वो मादक पदार्थों के धंधे से होने वाली उगाही पर बहुत निर्भर करते हैं. यानी, भारत की सड़कों पर बिकने वाली हेरोइन, चरस और स्मैक से भारत के खिलाफ उपयोग किए जाने वाले हथियार और गोला बारूद खरीदे जाते हैं. पाक फौज के लिए यह बहुत फायदे का सौदा है. एक अनुमान के मुताबिक़ साल दो हजार में ही पाक समर्थित हेरोइन व्यापार डेढ़ बिलियन अमरीकी डॉलर सालाना तक पहुँच चुका था. आज के हिसाब से ये लगभग साढ़े चौबीस हजार करोड़ पाकिस्तानी रूपए के बराबर होता है. दुनिया की 41 वें क्रम की पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के लिए ये बहुत बड़ी रकम है. सूत्रों के अनुसार आज पाकिस्तान इस धंधे से 11 बिलियन डॉलर सालाना कमा रहा है. यानी 1 लाख 79 हजार करोड़ पाकिस्तानी रूपए.
अकूत काले धन वाले ब्रिगेडियर और जनरल –
पाकिस्तान के बड़े जनरलों और ब्रिगेडियरों के लिए ये धंधा काली कमाई का कितना बड़ा जरिया है, और कितने बड़े स्तर के खिलाड़ी इसमें शामिल है, इसकी मिसाल है ब्रिगेडियर इम्तियाज का किस्सा. ब्रिगेडियर इम्तियाज वह शख्स है जिसने पाकिस्तानी सियासत में नवाज शरीफ को पैदा किया. इम्तियाज आई एस आई के राजनैतिक डेस्क का प्रमुख था. सन 1980 में वो नवाज शरीफ से मिला, जो दुबई में रहकर अपना मझोले आकार वाला कारोबार कर रहे थे. इम्तियाज ने नवाज शरीफ को पाकिस्तान वापस लौटने और पाकिस्तान मुस्लिम लीग की कमान संभालने का न्योता दिया. पाक फौज बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व वाली पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के पर कतरना चाहती थी. इसलिए नवाज शरीफ को यह आश्वासन भी दिया गया कि पाकिस्तान की राजनीति में पैर जमाने के लिए उन्हें फ़ौज और आई एस आई की भरपूर मदद मिलेगी.
नवाज शरीफ तैयार हो गए, और उनकी राजनैतिक पारी की शुरुआत हुई. उनके पहले फौजी आका ब्रिगेडियर इम्तियाज़ भी हीरोइन के धंधे से मोटी कमाई कर रहे थे.
ब्रिगेडियर इम्तियाज़ की नवाज शरीफ से होने वाली मुलाकातों के बारे में बेनजीर भुट्टो जानती थी, इसलिए जब 1988 में उन्होंने पाकिस्तान की कमान संभाली तो ब्रिगेडियर इम्तियाज़ को पाकिस्तान की राजनीति में दखल देने के आरोप में बर्खास्त कर दिया. 2 साल बाद जब नवाज शरीफ सत्ता में आए तो उन्होंने ब्रिगेडियर इम्तियाज़ को दोबारा बहाल कर दिया. इतना ही नहीं, शरीफ ने ब्रिगेडियर इम्तियाज़ को इंटेलिजेंस ब्यूरो पाकिस्तान का प्रमुख भी बना दिया.
1993 में बेनजीर भुट्टो की सत्ता में वापसी हुई. उन्होंने इम्तियाज को फिर बर्खास्त किया, गिरफ्तार करवाया और अवैध गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप में मुकदमा चलाया, लेकिन इम्तियाज बच निकला.
नवाज शरीफ से ज्यादा ही करीबी की सजा ब्रिगेडियर इम्तियाज़ को फिर भुगतनी पड़ी. 12 अक्टूबर 19 99 को परवेज मुशर्रफ ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का तख्ता उलट दिया, और पाकिस्तान में फौजी हुकूमत आ गई. मुशर्रफ ने फौज और प्रशासन में से ढूंढ-ढूंढकर नवाज के करीबियों को ठिकाने लगाना शुरू किया. ब्रिगेडियर इम्तियाज़ का भी नंबर आया. उन्हें गिरफ्तार किया गया और आई एस आई तथा इंटेलिजेंस ब्यूरो के अफसर के रूप में आय से अधिक संपत्ति इकट्ठी करनेके मामले में मुकदमा चलाया गया.

हेरोइन से अरबों कमाने वाले ब्रिगेडियर इम्तियाज़ अहमद
31 जुलाई 2001 को अदालत ने ब्रिगेडियर को मुजरिम करार दिया. नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो पाकिस्तान द्वाराअदालत में पेश किए गए साक्ष्यों के अनुसार ब्रिगेडियर इम्तियाज के पास 20 मिलियन डॉलर कीमत का फॉरेन एक्सचेंज बेयरर सर्टिफिकेट बरामद हुआ. इसके अलावा बैंक में 200 करोड़ रुपए, एक डच बैंक में 19 मिलियन डॉलर, 5 बंगले, 5 व्यवसायिक भवन और तीन दुकानें भी उसके नाम थी. यह सारा पैसा हीरोइन की तस्करी से प्राप्त किया गया था.
एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तानी फौज और आईएसआई में कार्यरत अथवा सेवानिवृत्त हो चुके 35 से अधिक अफसरों ने ब्रिगेडियर इम्तियाज जितनी संपत्ति हीरोइन की तस्करी से जमा की है. छोटे-मोटे करोडपति अफसरों की गिनती ही क्या. चूंकि उन्होंने अपने वरिष्ठों को अपनी किसी हरकत से नाराज नहीं किया है इसलिए वो आराम से अपनी इस काली कमाई के मजे लूट रहे हैं.
नाटो असफलता की नशीली जड़ें –
नाजुक सी पॉपी (अफीम का फूल) मिसाइलों और बमों को परास्त कर रही है. अफगानिस्तान में अमरीकी नेतृत्व में लड़ रही नाटो फौजें हेरोइन से पस्त हो रही हैं. अफगानिस्तान में नाटो ‘सहयोगी’ पाकिस्तान का दोगलापन तो है ही. नवंबर 2017 में अमेरिकी जनरल जॉन निकोलसन का बयान आया कि तालिबानी आतंकी पाकिस्तान की सुरक्षित पनाहगाहों में हेरोइन के पैसे पर ऐश कर रहे हैं. अमरीका अफगानिस्तान में अपने 23 सौ से अधिक सैनिक खो चुका है. 95 हजार करोड़ डॉलर रक्षा खर्च कर चुका है. 10 हजार करोड़ डॉलर अफगानिस्तान के नवनिर्माण और साढ़े तीन लाख अफगानी सैनिकों के प्रशिक्षण में लगा चुका है. लेकिन सफलता अभी कोसों दूर है. कारण है अफगानिस्तान की धरती पर जारी अफीम की खेती से जिहादियों को मिलने वाला अथाह धन.
 नशे की मोटी कमाई पर पलती पाक फौज
अफीम की खेती यहाँ इतने बड़े पैमाने पर होती है, कि इसके कारण अफगानिस्तान में भुखमरी तक फ़ैल चुकी है, क्योंकि मुनाफ़ा इतना है कि किसान और कुछ उगाना नहीं चाहता. बात उन दिनों की है जब अफगानिस्तान पर खूंखार तालिबानियों का शासन था. हालात काबू के बाहर होने लगे तो उन तालिबानियों ने ही इसकी खेती पर प्रतिबंध लगा दिया, जो इसकी कमाई से ही सत्ता में आए थे. लेकिन इस प्रतिबंध ने तालिबानियों की कमर तोड़कर रख दी. उद्योग-धंधे तो थे नहीं, अतः राजस्व समाप्तप्राय हो गया. उस समय की दो करोड़ की आबादी में से 33 लाख अफगानी बेरोजगार हो गए सो अलग. जनता में असंतोष फ़ैल गया. तालिबानी कंगाल हो गए, बची-खुची कसर अमरीकी बमबारी और मिसाइलों ने पूरी कर दी. अब सत्ता से बाहर तालिबानी और हक्कानी के लड़ाके एक बार फिर इसी पर फल-फूल रहे हैं. दूरदराज़ कबीलों में बंटे, हथियारों से लैस किसानों से भरे देहातों, और तालिबानियों के नियंत्रण वाले इलाकों में, काबुल में कैद अफगान सरकार हुकूमत चलाने में फिलहाल सक्षम नहीं है. इसलिए अमेरिकी युद्ध मशीन भी विफल हो रही है.
 
जानलेवा नशे की गिरफ्त में करोड़ों जीवन
जंग जारी रहेगी
ये कठिन लड़ाई अभी लंबी चलेगी. पाकिस्तान ऋण जाल में फंस चुका है. अर्थव्यवस्था चौपट है. ऐसे में वो मुनाफे के इस सौदे को छोड़ने वाले नहीं हैं. खेतों में अफीम अभी उगती रहेगी. ग्वादर और कराची से गर्द की खेपें रवाना होती रहेंगी. भारत और दुनियाभर के शहरों-कस्बों में ज़हर की खेपें पहुंचेंगी. सरकार और सुरक्षा एजेंसियां अपना काम कर रही हैं. नागरिक के रूप में हमारी जिम्मेदारी है कि इस ज़हर के तन-मन-समाज और देश पर पड़ने वाले असर का अध्ययन करें, और सामाजिक जागरूकता का बड़ा अभियान हाथ में ले. देशभक्त नागरिकों को भी ये समझना पडेगा कि देश में बिकने इस ज़हर की हर पुड़िया से दुश्मन की बन्दूक में गोलियां भरी जाती हैं. ज़हर की इस खुराक से इधर गाँव-शहर-कस्बे का जवान मरता है, उधर सीमा पर सेना का जवान भी बलिदान होता है. यहाँ घर टूटते हैं, वहां इस धन से शत्रु का हौसला बढ़ता है.

– पांचजन्य में प्रकाशित प्रशांत वाजपेयी का आलेख