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मध्यप्रदेश ने शिक्षा में भाषा की गुलामी की जंजीरों को आज तोड़ा – ABVP

चिकित्सा शिक्षा का हिन्दी पाठ्यक्रम एक नये युग का आरम्भ


देश एवं प्रदेश के लिये गर्व का विषय है कि स्वाधीनता के अमृत महोत्सव वर्ष में चिकत्सा शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों के लिये हिन्दी में भी मेडिकल की पढ़ाई शुरू की जा रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति से प्रेरणा लेते हुए अब देश में तकनीकी व चिकित्सा शिक्षा के विषयों को मातृभाषा में पढ़ाने की कोशिश की जा रही है। उसी क्रम में ऐतिहासिक पहल कर एमबीबीएस की शिक्षा हिन्दी माध्यम में कराने वाला देश का पहला राज्य मध्यप्रदेश बन चुका है। शिक्षा के क्षेत्र में यह स्वागत योग्य नवाचार है।

अभाविप महाकोशल प्रांत के प्रांत मंत्री आशुतोष तिवारी ने बताया कि मप्र सरकार द्वारा चिकित्सा शिक्षा को अब हिंदी भाषा मे शुरू करना, एक क्रांतिकारी बदलाव की शुरुआत होगी। आज़ादी के बाद से शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय, शासन और प्रशासन में अंग्रेजी के अनावश्यक महत्व ने देश की न केवल विविध भाषाओं के विकास को रोक रखा था, अपितु देश की तीन चार पीढ़ियों को एक विदेशी भाषा का गुलाम बना रखा था। संस्कृत, तमिल, मलयालम, कन्नड़, जैसी कई महान व्याकरण और शब्दकोश से संपन्न वैज्ञानिक भाषाओं से परिपूर्ण होते हुए भी इस राष्ट्र में पिछले 70 सालों से यह विदेशी और औपनिवेशिक मानसिकता वाली भाषा इस देश के करोड़ो युवाओं के भावों का शोषण करता रही है। भारतीय शिक्षा पद्धति के अंतगर्त उच्च शिक्षा प्रणाली में मातृभाषा व भारतीय भाषाओं को पिछले दशकों में वह महत्व नहीं मिला या दिया गया जिसकी वह वास्तविक पात्र है।

कुछ क्षेत्रों में तो अंग्रेजी ही ज्ञान का पर्याय बन चुकी थी। शायद ही दुनिया के किसी अन्य स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र ने किसी विदेशी भाषा की इतनी आसक्ति की हो जितनी कि हमारे देश ने। भारत के पिछले 5 हजार साल के इतिहास में इस देश की पहचान कभी भी किसी भी हथियार निर्माता और उपयोगकर्ता की नही रही है। विश्वगुरु यह देश दुनिया में राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर और नानक के बौद्धिक दर्शन के लिए जाना जाता है।

वास्तव में आज अनेक हिंदीभाषी लोग अपने अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का वास्तविक अहसास भी कर रहे होंगे, क्योंकि दुनिया का हर आम इंसान अपने भावों की श्रेष्ठतम अभिव्यक्ति केवल अपनी मातृभाषा में ही कर सकता है। एक शिक्षक और विद्यार्थी के मध्य ज्ञान के विनिमय का श्रेष्ठतम माध्यम मातृभाषा ही हो सकती है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने अपने 32 वे राष्ट्रीय अधिवेशन (1986) विशाखापट्टनम में पारित किए गए प्रस्ताव में भी भारतीय भाषाओं को सभी विषयों में और सभी स्तरों पर शिक्षा का माध्यम बनाया जाए यह बात कही थी।

सामान्यतः सिखाने व सिखाने की यह प्रक्रिया एक विदेशी के ही अधीन रही है। किंतु एनईपी 2020 में पुरज़ोर तरीके से मातृभाषा व क्षेत्रीय भाषा में ही शिक्षा को प्राथमिकता देने की बात कही गई है।

“शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो” आज इस बात को मध्यप्रदेश सरकार ने धरातल पर उकेरा है। हिन्दी में एमबीबीएस की किताबें आने से विद्यार्थीयों को आसानी होगी व तनाव रहित शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे, अंग्रेज़ी के बिना चिकित्सा की शिक्षा नहीं हो सकती इस मानसिकता से भी समाज अब बाहर आएगा। आज चिकित्सा शिक्षा को हिन्दी में प्रारंभ करना सराहनीय व प्रशंसनीय पहल है।