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अबू धाबी मंदिर में लग रहे 350सेंसर बताएंगे कि कैसे हमारे मंदिर हजारों साल से ज्यों के त्यों हैं

स्वामीनारायण संस्था बीएपीएस के प्रतिनिधि जब अबू धाबी में प्रस्तावित मंदिर का खाका पास करवाने पहुंचे तो एजेंसियों ने 108 फीट का ढांचा बिना लोहे-स्टील के खड़े किए जाने पर सवाल उठाया। कैसे संभव है कि एक पर दूसरा पत्थर रखकर आधार से शिखर तक इमारत खड़ी हो जाएगी?

संस्था ने कहा कि भारत के सभी प्राचीन हिंदू मंदिर इसी शिल्प से बने हैं, हम उसी का अनुसरण कर रहे हैं। यही हुआ भी। अब जबकि इन इंटरलॉकिंग पत्थरों के कॉलम और स्लैब से आधार तैयार भी हो चुका है तो नई बात यह कि जहां पत्थर आपस में जुड़ रहे हैं वहां 350 सेंसर लगाए जा रहे हैं। ये सेंसर दबाव, तापमान और भूगर्भीय हलचल की जानकारी देते रहेंगे। अबू धाबी की खलीफा यूनिवर्सिटी के छात्र इस डेटा की स्टडी कर पता लगाएंगे कि कैसे भारत के भव्य मंदिर अपने शिल्प की बदौलत हजारों साल से ज्यों के त्यों हैं।

हम जब मंदिर निर्माण स्थल पर पहुंचे तो दक्षिण अफ्रीका के पूर्व क्रिकेटर लांस क्लूजनर सहित कुछ क्रिकेटर पूजा में बैठे थे। संस्था के अक्षरातीत स्वामीजी बताते हैं- अबू धाबी आने वाला हर पर्यटक और यहां रहने वाले एशियाई लोगों की आस्था अभी से इस स्थल में अपार है।

इस मंदिर का कम से कम हजार साल तक कुछ नहीं बिगड़े, यह लक्ष्य लेकर चल रही टीम के प्राेजेक्ट डायरेक्टर मधु पटेल ने भास्कर को बताया- नीचे का पूरा ढांचा तैयार हो चुका है। अभिषेक मंडप का काम चल रहा है और फिर शिखर खड़ा होगा। निर्माण में 30 हजार से ज्यादा पत्थर लगेंगे ओर एक अनोखा स्टोन मैनेजमेंट सिस्टम बनाया गया है जो सुनिश्चित करता है कि राजस्थान में गढ़ा जा रहा हर कॉलम और स्लैब मंदिर में सही जगह, सही तरीके से स्थापित हो।

ट्रस्टी प्रणव देसाई के अनुसार हर पत्थर को एक यूनीक नंबर दिया गया है। इटली से आ रहे मार्बल को भी राजस्थान में ही गढ़ा जा रहा है और राजस्थान के रेड सेंडस्टोन पर भी कलाकृतियां वहीं उकेरी जा रही हैं। अबू धाबी में बस इन्हें एक के ऊपर एक जमाया जा रहा है। हर कॉलम पर धर्मग्रंथों के प्रसंग इतने करीने से उकेरे जा रहे हैं कि एक कॉलम एक व्यक्ति को दिया जाए तो एक साल में तैयार हो।

सभी धर्मों के लोगों को आजादी से रहने, अपने धर्म का पालन करने का वातावरण देने वाले देश की छवि बनाने के लिए यूएई ने सहिष्णुता मंत्रालय तक बना रखा है। बीएपीएस मंदिर से कुछ दूर ही सरकार ने एक सीएसआई चर्च और एक इथोपियन चर्च के लिए भी जगह दी है। ये भी जल्द बन कर तैयार होंगे। अबू धाबी में भी आप जगह-जगह मिनिस्ट्री ऑफ टॉलरेंस का काम देखेंगे। दुबई में तो एक ब्रिज को नाम ही ब्रिज ऑफ टॉलरेंस दिया गया है।

– मुकेश माथुर