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अमर बलिदानी: राजेंद्र नाथ लाहिड़ी

!! जरा याद करो कुर्बानी !!

देश को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए शहीद हुए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को उनके बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित.

29 जून 1901 को पावना जिले में (बांग्लादेश) जन्मे राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने वाराणसी से इंटरमीडिएट परीक्षा पास कर रेब्यूलेशन पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी. देश को आजादी दिलाने के लिए हथियारों की जरूरत थी. इसके लिए धन होना जरूरी था. धन की व्यवस्था के लिए पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, नवाब अशफाक उल्ला, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी आदि ने लखनऊ के पास काकोरी ट्रेन का सरकारी खजाना लूट लिया लेकिन दुर्भाग्यवश क्रांतिकारी वीर पकड़े गए.

बाद में अंग्रेज़ी हुकूमत ने उनकी पार्टी ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन’ के कुल 40 क्रान्तिकारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया, जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को फाँसी की सज़ा सुनायी गयी. इस मुकदमें में 16 अन्य क्रान्तिकारियों को कारावास हुआ.

‘काकोरी काण्ड में लखनऊ की विशेष अदालत ने 6 अप्रैल, 1927 को जलियांवाला बाग़ दिवस पर रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ को एक साथ फांसी देने का निर्णय लेते हुए सज़ा सुनाई.

17 दिसंबर 1927 को निर्धारित समय से दो दिन पहले ही सुबह चार बजे फांसी दे दी गई. महान क्रांतिकारी राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने वंदेमातरम् की हुंकार भरी और फांसी के फंदे पर झूलकर हमेशा के लिए अमर हो गए.

लेखक–जयराम शुक्ल
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