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आजाद हिंद फौज ने ब्रिटिश साम्राज्य को किया जमींदोज 

1921-1941 में पूर्ण स्वतंत्रता के लिए अपने रुख के कारण नेताजी सुभाष चंद्र बोस को विभिन्न जेलों में 11 बार जेल की सजा हुई। उन्हें सबसे पहले 16 जुलाई 1921 को 6 महीने के कारावास की सजा दी गई। 1941 में एक मुकदमे के सिलसिले में उन्हें कलकत्ता की अदालत में पेश होना था, लेकिन वे किसी तरह अपना घर छोड़कर जर्मनी चले गए। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी पहुंचकर वहां के चांसलर हिटलर से मुलाकात की। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1942 में भारत को अंग्रेजों के कब्जे से स्वतंत्र कराने के लिये आजाद हिन्द फौज नामक सशस्त्र सेना का गठन जापान मे किया गया। आजाद हिंद फौज के बनने में जापान ने बहुत सहयोग किया था। आजाद हिंद फौज में करीब 85000 सैनिक शामिल थे। इसमें एक महिला यूनिट भी थी जिसकी कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन थी। इस फौज में बर्मा और मलाया में स्थित भारतीय स्वयंसेवक भी भर्ती किए गए। पहले इस फौज में वे लोग शामिल किए गए, जो जापान की ओर से बंदी बना लिए गए थे। बाद में इस फौज में बर्मा और मलाया में स्थित भारतीय स्वयंसेवक भी भर्ती किए गए। साथ ही इसमें देश के बाहर रह रहे लोग भी इस सेना में शामिल हो गए। आजाद हिंद फौज के लोगों ने 1944 को 19 मार्च के दिन पहली बार झंडा फहराया था।  राष्ट्रीय ध्वज फहराने वाले लोगों में कर्नल शौकत मलिक, कुछ मणिपुरी और आजाद हिंद के लोग शामिल थे।

सुभाष ने भारत की सरकार बनाई –

21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई। जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दे दी। आजाद हिन्द सरकार की आजाद हिंद फौज ने बर्मा की सीमा पर अंग्रेजों के खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी थी। जापानियों द्वारा ब्रिटिश सेना के अनेक सैनिक युद्ध बंदी बना लिए गए थे। उनमें एक सैनिक अधिकारी कैप्टन मोहन सिंह थे जिन्होंने भारतीय युद्ध बंदियों को संगठित करके फरवरी 1942 में आजाद हिंद फौज की स्थापना की। इस फौज की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य भारत की मुक्ति के लिए संघर्ष करना था। सुभाष चंद्र बोस 1943 में जापान पहुंचे तो रासबिहारी बोस ने आजाद हिंद फौज के संचालन का कार्य उनको सौंपा। सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का नेतृत्व संभालने के पश्चात घोषणा की, ‘ईश्वर के नाम पर मैं पवित्र शपथ लेता हूं कि मैं भारत को उसके 38 करोड़ लोगों को स्वतंत्र कर आऊंगा और मैं इस पवित्र युद्ध को अपने जीवन की अंतिम सांस तक जारी रखूंगा।’

स्वतंत्र भूमि पर लहराया तिरंगा –

इसके अतिरिक्त सुभाष चंद्र बोस ने ‘दिल्ली चलो’ का नारा भी लगाया था। 1942 को रंगून से प्रस्थान कर बर्मा यानी म्यांमार में अंग्रेजों को पराजित करने के पश्चात भारत में प्रवेश किया। भारत की भूमि पर आजाद हिंद फौज ने युद्ध किए तथा अनेक बार ब्रिटिश सेनाओं को परास्त किया। बर्मा यानी म्यांमार भारत सीमा पार कर प्रथम बार 1942 ईस्वी में आजाद हिंद फौज ने भारत की स्वतंत्र भूमि पर तिरंगा लहराया। इसके पश्चात नागालैंड तथा कोहिमा पर भी अधिकार कर लिया, परंतु आगे उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा। प्रचलित 1945  में एक वायुयान दुर्घटना में सुभाष चंद्र बोस के बलिदान की खबर मिली। इसी वर्ष अंग्रेजी सरकार ने आजाद हिंद फौज के प्रमुख सैनिकों- सहगल, डिल्लन, तथा शाहनवाज खान आदि पर मुकदमा चलाया। देशभर में उनकी रक्षा के लिए आवाज उठी, अतः ब्रिटिश सरकार को मजबूर होकर आजाद हिंद के सभी सैनिकों को मुक्त करना पड़ा जिससे भारतीय जनता में आजाद हिंद फौज के प्रति एक अपार निष्ठा की भावना बड़ी तथा भारत की नौसेना तथा वायु सेना को शासन के विरुद्ध विद्रोह करने की प्रेरणा मिली। वास्तव में आजाद हिंद फौज ने ब्रिटिश साम्राज्य को जमींदोज किया।

दिल में पैदा कर दी देशभक्ति –

सुभाष चंद्र बोस देश के उन महानायकों में से एक हैं और हमेशा रहेंगे, जिन्होंने आजादी की लड़ाई के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया.श। सुभाष चंद्र बोस के संघर्षों और देश सेवा के जज्बे के कारण ही महात्मा गांधी ने उन्हें देशभक्तों का देशभक्त कहा था। महानायक सुभाष चंद्र बोस को ‘आजादी का सिपाही’ के रूप में देखा जाता है साथ ही उनके जीवन के वीरता के किस्सों के साथ याद किया जाता है। भारत का सबसे श्रद्धेय स्वतंत्रता सेनानी माने जाने वाले सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था। उनके प्रसिद्ध नारे ‘तुम मुझे खून दो, मैं तूम्हें आजादी दूंगा’ ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे उन तमाम भारतीयों के दिल में देशभक्ति पैदा कर दी थी। आज भी ये शब्द भारतीयों को प्रेरणा देते हैं।

    लेख़क
हेमेन्द्र क्षीरसागर
9424765570