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“भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस और अंतरिम सरकार”

स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के आलोक में अब समय आ गया है कि 21 अक्टूबर 1943 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रुप नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में स्थापित भारत की प्रथम स्वतंत्र अंतरिम (अस्थाई) सरकार के विषय में विस्तार से लिखा जाए और पाठ्यक्रमों में सम्मिलित कर विसंगतियों को दूर किया जाए। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में स्थापित की गई अंतरिम सरकार की 79 वीं वर्षगांठ पर वर्तमान और भविष्य पीढ़ी को यह जानना नितांत आवश्यक होगा कि भारत की प्रथम स्वतंत्र सरकार कौन सी थी और प्रथम प्रधानमंत्री कौन था? क्योंकि बरतानिया सरकार के निर्देशन और प्रावधानानुसार अंतरिम सरकार के उपरांत सन् 1947 को भी एक सरकार बनी थी और प्रधानमंत्री का दायित्व पंडित जवाहर लाल नेहरु को दिया गया था। ऐंसे में प्रथम सरकार और प्रथम प्रधानमंत्री किसे माना जाए, यह अत्यंत विचारणीय और जटिल प्रश्न है? उपर्युक्त तर्कों के आलोक में सिंहावलोकन करने से यह स्पष्ट हो जाता है,नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में स्थापित अंतरिम सरकार भारत की अंग्रेजों के प्रभाव से मुक्त प्रथम स्वतंत्र सरकार थी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे।

5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने सुप्रीम कमाण्डर के रूप में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी ने सेना को सम्बोधित करते हुए दिल्ली चलो! का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर बर्मा सहित आज़ाद हिन्द फ़ौज रंगून (यांगून) से होती हुई थलमार्ग से भारत की ओर बढ़ती हुई 18 मार्च सन 1944 ई. को कोहिमा और इम्फ़ाल के भारतीय मैदानी क्षेत्रों में पहुँच गई, जहाँ ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से जमकर मोर्चा लिया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपने अनुयायियों को “जय हिन्द” का अमर नारा दिया और 21 अक्टूबर 1943 में सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अंतरिम (अस्थायी) सरकार आज़ाद हिन्द सरकार की स्थापना की। उनके अनुयायी प्रेम से उन्हें नेताजी कहते थे। आज़ाद हिन्द फ़ौज का निरीक्षण करते सुभाष चन्द्र बोस अपने इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा सेनाध्यक्ष तीनों का पद नेताजी ने अकेले ही संभाला। इसके साथ ही अन्य दायित्व जैसे वित्त विभाग एस.सी चटर्जी को, प्रचार विभाग एस.ए. अय्यर को तथा महिला संगठन लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपा गया। उनकी इस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशों ने मान्यता दे दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। नेताजी उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया। अंडमान का नया नाम शहीद द्वीप तथा निकोबार का स्वराज्य द्वीप रखा गया।

30 दिसम्बर 1943 को इन द्वीपों पर स्वतन्त्र भारत का ध्वज भी फहरा दिया गया। इसके बाद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर एवं रंगून में आज़ाद हिन्द फ़ौज का मुख्यालय बनाया। 4 फ़रवरी 1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा भयंकर आक्रमण किया और कोहिमा, पलेल आदि कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया। 21 मार्च 1944 को दिल्ली चलो के नारे के साथ आज़ाद हिंद फौज का हिन्दुस्तान की धरती पर आगमन हुआ।

22 सितम्बर 1944 को शहीदी दिवस मनाते हुये सुभाषचन्द्र बोस ने अपने सैनिकों से मार्मिक शब्दों में कहा “हमारी मातृभूमि स्वतन्त्रता की खोज में है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा। यह स्वतन्त्रता की देवी की माँग है।”

इति सिद्धम् ।  
!! जय हिंद जय भारत !!
– डॉ. आनंद सिंह राणा
7987102901