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आज एक सुखद संयोग हैं. आज भगवान नरसिंह और नरसिंह जैसे पराक्रमी छत्रपति संभाजी महाराज की जयंती हैं.

नरसिंह..

पाकिस्तान के मुल्तान मे भगवान नरसिंह प्रकट हुए थे, ऐसी मान्यता हैं. हिरण्यकश्यपु के वध के बाद प्रल्हाद ने वहां अनेक वर्ष राज किया ऐसा माना जाता हैं. मुल्तान मे भगवान नरसिंह का वैभवशाली मंदिर था इसके प्रमाण लगभग ढाई हजार वर्षों से मिले हैं. चिनी यात्री ह्युएन त्सेंग ने सातवी शताब्दी के प्रारंभ मे अपने प्रवास मे, यहां पर संपूर्णतः सोने का मंदिर हैं ऐसा लिखकर रखा हैं.

मुल्तान यह प्राचीन काल मे कश्यपपुर कहलाता था. ॠषि कश्यप ने इस नगरी की स्थापना की, ऐसा माना जाता हैं. बाद मे, हिरण्यकश्यपू का वध करने के लिये भगवान नरसिंह यहां प्रकट हुए थे, इसलिये यह ‘मूलस्थान’ कहलाने लगा, जो बाद मे मुल्तान हुआ.

भगवान नरसिंह के इस मंदिर को इस्लामी आक्रंताओं ने अनेको बार तोडा. लेकिन मुल्तान के हिंदु समुदाय की जिजीविषा इतनी जबरदस्त थी की उन्होने हर बार उसे उतने ही वैभव के साथ पुनः खडा किया. अंग्रेजों ने भी इस मंदिर की भव्यता और समृध्दी के बारे मे लिख के रखा हैं. सन १८१० मे तत्कालिन सिक्ख शासकोंने इसका पुनर्निर्माण किया था. २० सितंबर १८८१ के भयानक दंगों के बाद भी यह मंदिर फिर खडा हुआ.

लेकिन १९४७ मे, भारत के डरपोक और लाचार नेताओं के आगे मुल्तान के हिंदू विवश हुए, पराभूत हुए, हार गए. मुल्तान पाकिस्तान को दे दिया गया. वहां का विख्यात सूर्य मंदिर अब हमारा नही रहा. प्रल्हादपुरी का भगवान नरसिंह मंदिर भी पराया हो गया, खंडहर बन गया. पूरे विश्व मे मनाए जाने वाला होली उत्सव जहां से प्रारंभ हुआ था, वो स्थान भी मनहूस बन गया, हमारा न रहा !

यह तो सौभाग्य रहा की ७५ वर्ष पहले, विभाजन के समय, संत बाबा नारायणदास बत्रा ने भगवान नरसिंह की मूर्ति को हरिद्वार लाकर स्थापित किया. हालांकी यह प्राचीन सोने की मूर्ति नही हैं.

विभाजन के बाद मुल्तान के नरसिंह मंदिर मे मदरसा खोला गया. बाद मे वह खंडहर बन गया. लोग वहां कचरा डालने लगे. लेकिन सन २०१४ के बाद परिस्थिती थोडीसी बदली. भारत मे मजबूत सरकार आने के बाद पाकिस्तान सरकार ने उस मंदिर के खंडहर पर अवैध कब्जा करने वालों को रोका हैं.

हम हिंदुओं की अनास्था के कारण भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह का प्राकट्य स्थल हमसे छिना गया. आज नरसिंह जयंती के अवसर पर, मुल्तान कभी हमारा था, इतना स्मरण कर लिया तो भी बहुत हैं..!

लेखक:- श्री प्रशांत जी पोळ
संपर्क सूत्र :- 9425155551