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भगवान् नरसिंह (नृसिंह) प्रगटोत्सव एवं भगवान् शिव का शरभपुरीय अवतार : एक अनूठा उपाख्यान

 भगवान् विष्णु के नरसिंह अवतार के आलोक में भगवान् शिव के शरभपुरीय अवतार का सनातन धर्म में अद्भुत एवं अद्वितीय उपाख्यान है। प्रस्तुत अद्भुत कथा का उद्देश्य केवल धार्मिक नहीं है, वरन् अहम की मनोवृत्ति को साझा करना है कि- “अहम ही,वहम है, अहम ही सर्वनाश है”। किस प्रकार से महादेव ने, भगवान् विष्णु को ये समझाया!परंतु वास्तव में ये दोनों महाशक्तियों की लीला थी!

भगवान् विष्णु के “नरसिंह” स्वरुप में अवतरण आज नरसिंह चतुर्दशी को हुआ था। एतदर्थ आप सभी आत्मीय जनों को नरसिंह चतुर्दशी की अनंत कोटि शुभकामनाएं। अब कथा विस्तार से इस प्रकार है कि श्री विष्णु ने नरसिंह अवतार तो ले लिया परंतु हिरण्यकशिपु (हिरण्यकश्यप) के वध के उपरांत क्रोधाग्नि और भड़क गयी। भक्त प्रह्लाद ने मनाने की बहुत कोशिश की पर नरसिंह शांत नहीं हुए, फलस्वरूप ब्रह्मांड की उष्मा बढ़ने लगी और भयावह वातावरण बनने लगा था और भस्म हो जाने की आशंका होने लगी। तब ऐंसी विषम परिस्थिति में सभी देवी-देवताओं ने ब्रम्हा से याचना की, तदुपरांत सभी महादेव के पास पहुंचे। सारा वृत्तांत महादेव को सुनाया। महादेव ने भगवान् नरसिंह को समझाने के लिए वीरभद्र को भेजा पर बात नहीं बनी वरन् भगवान् नरसिंह और उग्र हो गये।

भगवान् नरसिंह ने वीरभद्र पर आक्रमण कर दिया परिणामस्वरूप भयंकर युद्ध आरंभ हो गया परंतु कोई अनिष्ट हो इसके पूर्व ही वीरभद्र ने इस अनिर्णायक युद्ध की सूचना महादेव तक पहुंचाई। अब महोदव स्वयं उपस्थित हुए, यह देखकर भगवान् नरसिंह और भड़क गये और उन्होंने महादेव पर आक्रमण कर दिया। फिर क्या था? महादेव को भी क्रोध आ गया और उन्होंने एक अति भयंकर स्वरूप ले लिया जिसे “शरभपुरीय” (सिंह +पक्षी +गज का मिश्रित आठ हाथों वाला स्वरूप) अवतार कहते हैं।

18 दिनों के महाविनाशकारी युद्ध के उपरांत भगवान् नरसिंह क्रोध की चरम सीमा पार कर गये और चेतना समाप्त हो गयी परंतु महादेव पूरी चेतना में थे और उन्हें लगा कि यदि युद्ध और चला तो कहीं उनकी चेतना भी समाप्त न हो जाए और यदि ऐंसा हुआ तो महाप्रलय आ जायेगा और सृष्टि ही समाप्त हो जाएगी। इसलिए शरभ (महादेव) ने भगवान् नरसिंह को अपनी पूंछ में लपेट लिया और पाताल में प्रवेश कर लिया। एक लंबे अंतराल तक नरसिंह ने संघर्ष किया पर शरभ की पूंछ से न छूट सके। शनैः शनैः भगवान् नरसिंह का क्रोध शांत हुआ और वो महाकाल को पहचान गये तथा क्षमा याचना की। नारायण और ब्रह्मा ने भी मनाया तब शरभ (भगवान् शिव) ने भगवान् नरसिंह को छोड़ा।

भगवान् नरसिंह ने अपने अवसान के पूर्व भगवान् शिव से प्रार्थना की, कि उनके इस स्वरूप को त्यागने पर शिव उनके चर्म (चमड़े) पर आसन ग्रहण करेंगे। महादेव ने भाव विभोर होकर स्वीकार किया और तबसे महादेव उसी आसन पर विराजमान होते हैं। शिवमहापुराण, शतरुद्र संहिता में यह घटना बहुत रोचक ढंग से वर्णित है l नरसिंह बोले —

यदा यदा ममाज्ञेयं मति: स्याद् गर्वदूषिता l
तदा तदा अपनेतव्या त्वयैव परमेश्वर ll
अर्थात्, हे परमेश्वर !जब जब भी मेरी बुद्धि अहंकार दोष से दूषित हो जाय तब आप मेरी इस दुर्बुद्धि को दूर करें l भक्त प्रह्लाद के कारण दो महान् अवतारों के दर्शन प्राप्त हुए।।

लेखक:- डाॅ. आनंद जी सिंह राणा
संपर्क सूत्र – 7987102901